सुदामा पाण्डेय धूमिल का साहित्यिक जीवन परिचय

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सुदामा पाण्डेय धूमिल का साहित्यिक जीवन परिचय dhumil ka sahityik parichay kavi dhumil ka jeevan parichay समकालीन कविता dhumil vyaktitva aur krtitva

सुदामा पाण्डेय धूमिल का साहित्यिक जीवन परिचय


सुदामा पाण्डेय धूमिल का साहित्यिक जीवन परिचय dhumil ka sahityik parichay सुदामा पाण्डेय धूमिल का जीवन परिचय धूमिल की जीवनी kavi dhumil ka jeevan parichay समकालीन कविता dhumil vyaktitva aur krtitva - नई कविता के समर्थ और सफल कवियों में सुदामा पाण्डेय "धूमिल" का नाम महत्वपूर्ण है। इनका जन्म १९३६ में बनारस के खेवली नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित शिवनायक था और माँ का नाम रसवंती देवी था । ये एक मध्यवर्गीय परिवार से थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के निकटवर्ती स्कूल में हुई। हाई स्कूल की शिक्षा हरहुआ बाज़ार के काशी इंटर कॉलेज में संपन्न हुई थी । धूमिल हाई स्कूल परीक्षा पास करने वाले अपने गांव में प्रथम व्यक्ति थे। इसके बाद ये विज्ञान से इंटर करने के लिए बनारस आए ,परन्तु शहर में पढ़ाई के खर्चे वहन न कर पाने के कारण इनकी पढ़ाई का क्रम यही से टूट गया। 

अपने पैतृक कार्य कृषि को अपर्याप्त मान कर,रोज़गार के लिए , ये कलकत्ता चले आए। यहाँ पर ये , लोहा और लकड़ी ढोने का काम करते रहे। पर मालिक से नही बन पाने के कारण ये वापस लौट आए । नौकरी से बचे पैसो से १९५८ में बनारसी में विद्युत् डिप्लोमा पास किया । इसके बाद ये विद्युत् अनुदेशक पद पर काम करने लगे । लेकिन इनकी कार्यकुशलता और क्षमता के बावजूद इनकी अधिकारियो से नही बनी। इसी कारण इनका, सीतापुर ,बलिया ,सहारनपुर में ट्रान्सफर होता रहा। जीवन संघर्षो से जूझते हुए, ये काव्य -रचना में निरंतर योगदान देते रहे। १० फरवरी ,१९७५ को ब्रेन ट्यूमर के असाध्य रोग से पीड़ित धूमिल ने लखनऊ के अस्पताल में अपना दम तोड़ दिया । असमय में ही इनका देहांत हो जाने के कारण आधुनिक हिन्दी साहित्य इनके सफल व्यतिक्त्व और कृति से वंचित रह गया।

धूमिल का रचनात्मक व्यक्तित्व

डॉ.कुमुद शर्मा के शब्दों में धूमिल के रचनात्मक व्यक्तित्व का जन्म एक गीतकार के रूप में हुआ। १९५७ -१९६३
सुदामा पाण्डेय धूमिल का साहित्यिक जीवन परिचय
तक उनका रुझान गीत रचना तक था। सृजन के लिए उद्देलित करने वाली उनकी ग्रामीण धरती खोखली थी। उन्होंने गीत ,बिरहा ,दोहा ,शेर आदि लिखे। कहानी फिर भी वह जिन्दा है (साकी जून १९६० ) में प्रकाशित रूप में सामने आई। उसके बाद गीतों का प्रकाशन चलता रहा। नयी कविता की संभावनाओं को प्रकट करता हुआ नयी कविता और उसके बाद भारती पत्रिका में प्रकाशित हुआ। 

धूमिल की कविताओं की संख्या भले ही कम रही मगर उनकी गूँज ,उनकी पहुँच ,उनका असर बड़ा कारगर हुआ। गर्मजोशी के इस कवि ने युवा जनमानस में अपनी सर्जनात्मकता से नया विस्फोट पैदा कर दिया। उनकी मोचीराम तथा पटकथा जैसी रचनाएँ आधुनिक हिंदी कविता के इतिहास में मील का पत्थर है। 

देश के आजाद होने के पश्चात, देश की समृधि तथा आम जनता के हित के लिए लोगो ने कुछ सपने पाल रखे थे। लेकिन आजादी के बाद तत्कालीन सरकार उसी रंग में रंगी पायी गई ,जिसे तोड़ने के लिए लोगो ने अंग्रेजो से लड़ाईयां लड़ी थी। अब अपनी ही सरकार कभी क्षेत्रीय हित,साम्प्रदायिकता ,तो कभी धर्म ,भाषा ,सुरक्षा के नाम पर लोगों का शोषण और दमन कर रही थी। ऐसी स्थिति में धूमिल कैसे चुप बैठते । उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से व्यवस्था के शोषण चक्र तथा दरिन्दिगी को उजागर किया और लोगो को नया सोचने समझने तथा विचारयुक्त होकर सामाजिक विसंगतियो को दूर करने की प्रेरणा दी।




धूमिल का कवि ह्रदय ,लोकमानस के तकलीफों व दर्द को दूर करने के लिए प्रयासरत है ,इसीलिए वे कविता को हथियार के रूप में प्रयोग करते है। धूमिल उस पूंजीवादी एवं सामंतवादी व्यवस्था के विरोध में है ,जो स्वाधीनता के बाद भी आमजनता को उसके अधिकार से वंचित किए है,लेकिन गरीब इस व्यवस्था की चालाकी को समझ नही पाता। इसीलिए धूमिल ने लिखा है -

लोगों ने सुविधा के लिएबनिया सच्चाई है। 
यह महंगाई हैजिसने बाज़ार को चकमा दिया है। 


धूमिल की काव्य संवेदना

धूमिल की काव्य कला ,संवेदना तथा सामाजिक पक्षधरता को समझने के लिए उनकी कविता "पटकथा" बहुत आवश्यक है । यह कविता हिन्दी साहित्य की लम्बी कविताओं में से एक है । नेमीचन्द्र जैन ने पटकथा पर लिखा है कि " देश की और अपनी ऐसी बेरहम तस्वीर इनती बेबाकी से उतार सकना एक समर्थ सर्जनात्मक प्रतिभा द्वारा ही संभव है और उचित ही ,यह कविता धूमिल को समकालीन कवियों में एक अलग ,ख़ास और उच्चा दर्जा देती है।" धूमिल ने मात्र विषय के स्तर पर ही नही ,वल्कि भाषा एवं शैली के स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाई है। भाषा के स्तर पर उन्होंने सपाटबयानी एवं भदेशपन को प्रमुखता दी। उनकी भाषा में आक्रामकता ,तीखापन एवं व्यंग है साथ ही ग्रामीण जीवन की सरलता भी है । धूमिल के बाद के अनेक कवियों ने इस शैली को अपनाया । इसलिए धूमिल को जनवादी कविता का पथप्रदर्शक कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । धूमिल की कविता के कुछ उदाहरण इस प्रकार है :-

समझदार लोग/चीजों को/घटी हुई दरों में कुतते हैं
और कहते हैं / सौन्दर्य में स्वाद का मेल /जब नही मिलता
कुत्ते महुए के फूल पर मूतते है । 
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जो बीमार है /उसे रोशनी में
नंगा होने का पुरा अधिकार है। 
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एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो रोटी बेलता है , रोटी खाता है । 
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मै पूछता हूँ -
यह तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है । 

धूमिल की रचनाएँ

धूमिल जी मात्र तीन काव्य कृतियाँ प्रकाशित हुई :- "संसद से सड़क तक" (१९७२ ),"कल सुनना मुझे" (१९७७) और "सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र" (१९८४)। "कल सुनना मुझे" पर इन्हे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला था।


COMMENTS

Leave a Reply: 6
  1. धूमिल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। फिरभी उनका परिचय पढना अच्‍छा ही लगा। आभार।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  2. aapke maadhyam se main dhumil ji ke vishay mein jaan paaya,jabki main bhi beras ka hi hoon.iske liye aapko & apke team ko bahut-bahut sadhuwad

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut hi badhiya ! iss parichyatmakta ke liye hindi kunj ka bhavnagar vishva vidhyalay abhaar vykt karti hai.....

    जवाब देंहटाएं
  4. धूमिल जी के माँ नाम रसवंती देवी नहीं बल्कि रजवंती देवी था। कृपया edit करे......

    जवाब देंहटाएं
  5. धूमिलजी का साहित्य मे अद्वितीय स्थान है.

    जवाब देंहटाएं
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