साखी कबीरदास Sakhi by Kabir Das साखी summary साखी के दोहे का अर्थ साखी कविता का सारांश साखी सबदी दोहरा साखी शब्द का अर्थ साखी कविता का अर्थ साखी class 10 कबीर साखी अर्थ सहित class 11 साखी summary साखी के दोहे का अर्थ साखी कविता का सारांश साखी सबदी दोहरा साखी class 10 साखी कविता का अर्थ साखी शब्द का अर्थ साखी का भावार्थ class 9
साखी कबीरदास
Sakhi by Kabir Das
पीछे लागा जाई था, लोक वेद के साथि।
आगैं थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया साथि॥
व्याख्या - कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जीवन में पहले सांसारिक माया मोह में व्यस्त था . लेकिन जब मुझसे इससे विरक्ति हुई ,तब मुझे सद्गुरु के दर्शन हुए .सद्गुरु के मार्गदर्शन से मुझे ज्ञान रूपी दीपक मिला इससे मुझसे परमात्मा की महत्ता का ज्ञान हुआ .यह सब गुरु की कृपा से ही संभव हुआ .
२.कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरष्या आइ।
अंतरि भीगी आत्मां, हरी भई बनराइ॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में प्रेम के महत्व के बारे कहते हैं कि मेरे जीवन में प्रेम बादल के रूप में वर्षा की . इस बारिश से मुझे अपनी आत्मा का ज्ञान हुआ . जो आत्मा अभी मेरे अंत स्थल में सोयी हुई थी ,जाग गयी .अतःउसमें एक प्रकार की नवीनता आ गयी .मेरे जीवन हरा - भरा हो गया .
३.बासुरि सुख, नाँ रैणि सुख, ना सुख सुपिनै माहिं।
कबीर बिछुट्या राम सूं, ना सुख धूप न छाँह॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि मनुष्य सांसारिक भाव भाधाओं में उलझा रहता है .उसे सुख की तलाश हमेशा रहती है . वह दिन -रात सुख की तालाश करता रहता है .लेकिन फिर में उसे सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती है , वह सपने में भी सुख - शान्ति की तलाश करता रहता है .वास्तव में मनुष्य की आत्मा ,राम रूपी परमात्मा से जब बिछुड़ती है ,तो तभी से उसे दुःख प्राप्त हो जाता है . उसके दुःख दूर करने का एकमात्र उपाय राम रूपी परम्तामा की प्राप्ति है .
४.मूवां पीछे जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लौह सब, पारस कोणें काम॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मृत्यु के बाद परम्तामा की प्राप्ति किसी काम की नहीं है .यदि हमें जीवित रहते ही भगवत प्राप्ति हो जाए तो जीवन सफल हो जाएगा .इसीलिए हमें चाहिए कि इसी जीवन में परमात्मा प्राप्ति का उपाय करें. जब तक लोहा पारस को नहीं प्राप्त करता ,तब टक वह लोहा ही रहता है .पारस से स्पर्श के बाद ही वह सोना बन पाटा है .
५.अंखड़ियाँ झाईं पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़िया छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा अपने प्रेमी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए दिन रात बाट जोहते -जोहते उसकी आखें थक जाति है .मुँह से अपने प्रेमी रूपी परमात्मा का नाम लेते लेते उसके जीभ में छाले पड़ जाते हैं .इस प्रकार वह अपने परमात्मा रूपी प्रेमी राम को पुकारता रहता है .
६.जो रोऊँ तो बल घटै, हँसौं तो राम रिसाइ।
मनहि मांहि बिसूरणां, ज्यूँ घुंण काठहि खाइ॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि उनकी आत्मा की दशा ऐसी हो गयी है कि वे न हँस सकते हैं क्योंकि इससे प्रभु नाराज़ होंगे ,रोयेंगे तो बल घटेगा .इस प्रकार वे अपने परमात्मा रूपी प्रेमी को याद करके घुटते रहते हैं .जिस प्रकार लकड़ी के अन्दर का घुन उसे खा जाती है ,उसी प्रकार वे अपने परमात्मा रूपी प्रेमी को याद करके घुटते रहते हैं .
७.परवति-परवति मैं फिर्या, नैन गँवाये रोइ।
सो बूटी पाँऊ नहीं, जातैं जीवनि होइ॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मैं पर्वत - पर्वत घूमता रहा ,मैं रोते - रोते अपनी दृष्टि गँवा बैठा ,लेकिन परमात्मा रूपी संजीवनी बूटी मुझे कहीं नहीं मिली .इस प्रकार जीवन अकारथ ही गया .
८.आया था संसार मैं, देषण कौं बहु रूप।
कहै कबीरा संत हौ, पड़ि गयां नजरि अनूप॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मैं इस संसार की मायावी जीवन में रमा ही था .संसार की विविधता को देख रहा था ,लेकिन परमात्मा की कृपा से मेरा जीवन ही बदल गया .अब मैं आत्मा में ही रम गया .अब मुझे जीवन के बाहरी सौन्दर्य में कोई दिलचस्पी नहीं बची .
९.जब मैं था तब हरि नहिं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहिं॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि जब टक मेरे मन के द्वेष , ईर्ष्या ,क्रोध ,मोह आदि की भावनाएँ थी ,तब तक परमात्मा मुझसे दूर थे ,लेकिन जब जीवन से अन्धकार मिटा तो मुझे प्रभु दिखाई पड़े और मेरे जीवन का अहंकार मिट गया .
१०.तन कौं जोगी सब करैं, मन कौं विरला कोइ।
सब विधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ॥
व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि लोग बाहरी दिखावें के लिए साधू का वेश धारण करते हैं ,लेकिन मन से साधू नहीं होते हैं .अतः हमें वेश भूषा से साधू नहीं बल्कि मन से साधू होना चाहिए .मन से साधू होने पर ही परमात्मा की प्राप्ति होती है .
समाज सुधारक कबीर samaj sudharak kabir das in hindi
कबीर के सम्बन्ध जाता है कि वह स्वभाव से संत ,परिस्थितियों से समाज सुधारक और विवशता से कवी थे। निश्चय ही तत्कालीन परिशतियाँ ने इस महँ संत को समाज सुधारक का बीड़ा उठाने के लिए बाध्य किया।भारत में मुस्लिन राज्य स्थापित हो जाने के बाद हिन्दू समाज के अत्याचार होने लगे।इन अत्याचारों से पीड़ित होने के कारण हिन्दू तथा मुसलामानों के ह्रदय में घिरना तथा कटुता की दरार बढ़ती गयी जिसने कालांतर समाज को बुरी तरह झकझोर दिया।समाज की इस दयनीय दशा को देखकर कबीर का ह्रदय व्याकुल हो उठा और फक्कड़ तथा मस्तमौला के नाते वह समाज सुधार के मैदान में एकदम कूद पड़े. उन्होंने कविता को अपना अस्त्र बनाकर कुरीतियों तथा अंध विश्वासों पर करारा प्रहार किया और दोनों धर्मों के ढोंगों का पर्दाफाश किया। एक ओर उन्होंने हिन्दुओं की मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद की निंदा की -
"पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार। ताते यह चाकी भली ,पीस खाय संसार।
तो दूसरी ओर उन्होंने मुसलामानों को बाँग देने के फटकारा -
"काँकर पाथर जोरि के, मसजिद लई चुनाय । ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, बहिरा हुआ खुदाय ।।"
कबीर की यह फटकार का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा. इस प्रकार हिंदी और मुसलामानों की कटुता को दूर कर उन्हें एक दूसरे के निकट लाने का उन्होंने सफल प्रयास किया।कबीर ने बुराइयों का सदैव विरोध किया चाहे वह किसी भी वर्ग ,जाती अथवा समुदाय की क्यों न हों।बाहरी आडम्बरों की उन्होंने कसकर खिंचाई की और मन तथा विचारों की शुद्धि पर बल दिया। वह तीरथवत करने तथा नामाज ,रोजा रखने आदि के।उनका कहना था कि हिन्दू और मुसलमान में कोई भेद नहीं हैं इसीलिए राम तथा रहीम के नाम पर आपस में लड़ना मूर्खता है -
"हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।"
कबीर हिंसा के कट्टर विरोधी थे और अहिंसा को परम धर्म मानते थे। वह समाज को सुधारने से पहले व्यक्ति को सुधारना चाहते हैं। इसीलिए कथनी और करनी की एकता पर उन्होंने बल दिया।उनका आविर्भाव समाज में एक महान उपदेशक के रूप में हुआ ,कवि बनने की चाह उनमें बिलकुल न थी।यह बात दूसरी है कि उन्होंने उपदेश ही उत्तम काव्य बन गए। इस प्रकार कला पक्ष की दृष्टि से कबीर के काव्य का भले ही उतना महत्व न हो ,किन्तु भावपक्ष दृष्टि से उनकी वाणी में सम्पूर्ण मानव जाती के लिए प्रेम तथा एकता का सन्देश है और इसी से इतने दिनों के बाद भी आज उनका काव्य समाज की अमूल्य निधि है।
कबीर की भक्ति भावना
कबीरदास जी यह बतलाया है कि ईश्वर की सत्ता अनंत है।वह सर्वशक्तमान व सर्वव्यापक हैं।अतः जो सर्वदेशिक सार्वकालिक है उसके गुणों का वर्णन करना मनुष्य की शक्ति के परे हैं। ईश्वर तो सर्वत्र व्यापक हैं ,ऐसी निष्ठा संत कबीरदास की है।कबीरदास ईश्वर के निराकार रूप को स्वीकार करते हैं।उनके अनुसार ईश्वर का कोई एक निश्चित रूप व अकार नहींहै।अतः यह केवल मंदिरों, मस्जिदों ,तीर्थस्थानों ,गिरजाघरों में ही व्याप्त न होकर सवत्र व्याप्त है। परन्तु अज्ञान के मोहपाश में फँसे होने के कारण हम उसे देख नहीं पाते हैं।सांसारिक कृपया कलापों व माया में हम इतने निमग्न हो जाते हैं कि ईश्वर के विषय में सोचते ही नहीं है।ईष्वर के नाम पर हम मंदिरों ,तीर्थस्थानों को छानकर अपने समय व धन को नष्ट करते हैं।कबीर कवि होने के साथ -साथ धर्मोपदेशक भी थे। अतः उन्होंने मनुष्यों को आगाह करते हुए ईश्वर प्राप्त का स्थान बता दिया है।कबीर के अनुसार जिस प्रकार मृग कस्तूरी को अपने भीतर ईश्वर को रखते हुए उसकी सुगंध पाने के लिए जंगलों की ख़ाक छानता फिरता है उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर ईश्वर को रखते हुए मंदिरों ,मस्जिदों में ईश्वर को पाने के लिए चक्कर लगाता रहता है। अगर मनुष्य अपने भीतर के अज्ञान को नष्ट करके ज्ञान का दीपक जला ले तो वह ईश्वर का दर्शन कर सकता है।
कबीर के अनुसार ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग अत्यंत कठिन है। यह कोई मामा का घर नहीं है कि इच्छानुसार प्रवेश कर सकते हैं। हम ईश्वर तक केवल प्रेमरूपी पथ पर चलकर ही पहुँच सकते हैं। इस पथ पर चलने हेतु हमें अपना सर्वशी समर्पण कर देना पड़ता है।
अंत में कबीरदास ने समाज में ब्रहादाम्बरों को फैलाने वाले साधू महात्माओं की खबर ली है। कबीर के अनुसार हम माला फेरकर ईश्वर को नहीं प्राप्त कर सकते हैं ,बल्कि मन को शुद्ध कर तथा भगवान् नाम का स्मरण कर अपने को ईष्वर तक पहुँचा सकते हैं।अतः मन की वृत्तियों का परिमार्जन करना ही वास्तविक भक्ति है। हम अपने अंदर के अहं व मद को समाप्त कर ईश्वर कृपापात्र बन सकते हैं क्योंकि बिना अहंकार नष्ट किये हुए भक्त का मिलान ईश्वर से नहीं हो सकता। अतः ईश्वर का भक्त बनने के लिए हमें अपने मन के अंदर से कपट के भाव और अहंकार की भावना को निष्काषित करना होगा ,तभी ईश्वर के मधुर मिलान की कल्पना की जा सकती हैं।
अतः भक्ति की अंतिम विशेषता बताते हुए कवि कहता है कि ईश्वर के प्रति प्रेम होने से ही हमें इस संसार से विरक्ति हो सकती है।व्यक्ति इस संसार में आकर मायारुपी जाल में फँसकर अपने आपको भूल जाता हैं।जब ईश्वर से प्रेम करने लगता है तो संसार से विरक्ति हो जाती है और वह वैरागी बन जाता है।इस प्रकार भगवान् के दर्शन पाकर वह संतुष्ट हो जाता है और उसे सवत्र ईश्वर ही दृष्टिगोचर होते हैं।
MCQ Questions with Answers Sakhi Kabirdas
बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
१. कबीरदास के गुरु का नाम बताएं .
a. रामानंद
b. हरिहरदास
c. समर्थरामदास
d. सूरदास
उ. a. रामानंद
२. कबीरदास किसके उपासक थे ?
a. साकार ईश्वर के .
b. कृष्ण के
c. निर्गुण ब्रह्म के
d. श्रीराम के
उ. c. निर्गुण ब्रह्म के
३. कबीरदास की मृत्यु कब हुई थी ?
a. ११८०
b. १४९५
c. १८५४
d. ११८७
उ. b. १४९५
४. कबीरदास का पालन पोषण किसने किया था ?
a. नीरू और नीमा ने
b. कमाल और कमाली ने
c. रामबोला ने
d. रामानंद ने
उ. a. नीरू और नीमा ने
५. कबीरदास किस शाखा के कवि थे ?
a. भक्तिकाल
b. आधुनिक काल
c. निर्गुण भक्ति शाखा
d. वीरगाथा काल
उ. c. निर्गुण भक्ति शाखा
६. कबीरदास ने किसे महान माना है ?
a. परिवार को
b. पुत्र को
c. गुरु को
d. ईश्वर को
उ. c. गुरु को
७. कबीरदास ने दीपक का क्या अर्थ बताया है ?
a. उजाला फैलाना
b. ज्ञान का प्रकाश
c. अन्धविश्वास
d. श्रेष्ठज्ञान
उ. b. ज्ञान का प्रकाश
8. कबीरदास किस भाषा में उपदेश देते थे
a. खड़ी बोली
b. लोकप्रचलित भाषा
c. अवधी भाषा
d. ब्रजभाषा
उ. b. ब्रजभाषा
९. "मन को जोगी " से कवि का क्या अभिप्राय है ?
a. मन को संसार में लगाना .
b. मन को परिवार से लगाना
c. मन पर नियंत्रण होना
d. मन को भटकने देना
उ. c. मन पर नियंत्रण देना
१०. कबीरदास जी किस राम की पूजा करते हैं ?
a. दशरथ के पुत्र श्रीराम की पूजा करते हैं .
b. निराकार राम की
c. अयोध्या के राम की
d. कौशल्या के पुत्र राम की
उ. b. निराकार राम की .
11. कबीरदास जी किन बुराइयों से दूर रहने को कहा है ?
a. चोरों की संगत से
b. मांस मदिरा से
c. पाखंडी लोगों से
d. सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों से .
उ. d. सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों से .
१२. सतगुरु से कवि का क्या तात्पर्य है ?
a. श्रेष्ठ या सच्चा गुरु
b. रामानंद गुरु को
c. आध्यात्मिक गुरु
d. शिक्षा प्रदान करने वाला गुरु
उ. a. श्रेष्ठ या सच्चा गुरु .
१३. "परवति-परवति मैं फिर्या " के द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं ?
a. हमें भ्रमण करना चाहिए .
b. प्रकृति का आनंद लेना चाहिए .
c. इस वाक्य के द्वारा कवि घूमने को व्यर्थ बताते हैं .
d. यह भी एक आडम्बर है .
उ. c. इस वाक्य द्वारा कवि घूमने को व्यर्थ बताते हैं .
१४. कबीरदास जी रातदिन किसे पुकारते हैं ?
a. अपने प्रियतम राम को .
b. अपने गुरु को
c. संसार के लोगों को
d. अपने पुत्र को .
उ. a. अपने प्रियतम राम को .
१५. कबीरदास की मृत्यु कहाँ हुई थी ?
a. काशी
b. लमही
c. मगहर
d. बनारस
उ. c. मगहर
१६. कबीरदास जी की पत्नी का नाम लिखो .
a. तारा
b. लोई
c. बिष्णु देवी
d. कमाली
उ. b. लोई .
१७. कबीरदास जी की रचनाओं का संग्रह क्या कहलाता है ?
a. साखी
b. सबद
c. रमैनी
d. बीजक
उ. d. बीजक
१८. "पीछे लागा जाई था, लोक वेद के साथि।" इसके बाद वाली सही पंक्ति चुनिए .
a. सो बूटी पाँऊ नहीं, जातैं जीवनि होइ.
b. सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहिं॥
c. सब विधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ .
d. आगैं थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया साथि॥
उ. d. आगैं थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया साथि॥
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जवाब देंहटाएंBhut ache se samjhaya👌
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Very nice
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंSakhi ke Hindi anuvad
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