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मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥
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ijonkzmkrdezign
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बहुत बढ़िया प्रस्तुति... काफी दिनों बाद रसखान जी की पंक्तियाँ पढ़ने मिली...आभार
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