नयनों के डोरे लाल गुलाल-भरी खेली होली !
प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
एक वसन रह गई मंद हँस अधर-दशन अनबोली
कली-सी काँटे की तोली !
मधु-ऋतु-रात मधुर अधरों की पी मधुअ सुधबुध खो ली,
खुले अलक मुंद गए पलक-दल श्रम-सुख की हद हो ली-
बनी रति की छवि भोली!
नयनों के डोरे लाल - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता
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niraala ki itani khoobsoorat kavita padhane ka soubhagya mila .. aapko isake liye bbahut badhayi .
उत्तर देंहटाएंBhadiya
हटाएंBahot bahot dhanyawad.....
उत्तर देंहटाएं(h):>)
उत्तर देंहटाएंNirala jee ki kavitayen padh kar man fir se bachha bankar bachpan ki or chala gya.Man bhauk ho utha.
उत्तर देंहटाएंअद्भुत कविता
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