सुमित्रानंदन पंत की काव्यगत विशेषताएँ

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सुमित्रानंदन पंत की काव्यगत विशेषताएं पंत का प्रकृति चित्रण पंत की काव्य चेतना सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली सुमित्रानंदन पंत का भावपक्ष और कलापक्ष

सुमित्रानंदन पंत की काव्यगत विशेषताएँ


सुमित्रानंदन पंत की काव्यगत विशेषताएं पंत का प्रकृति चित्रण पंत की काव्य चेतना सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली sumitranandan pant ki kavyagat visheshta सुमित्रानंदन पंत का भावपक्ष और कलापक्ष  सुमित्रानंदन पंत की काव्य में देन प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत prakrati ke sukumar kavi sumitranandan pant सुमित्रानंदन पंत की दो रचनाएं भाव पक्ष कला पक्ष साहित्य में स्थान - सुमित्रानंदन पन्त हिंदी साहित्य के आधुनिक युग के ऐसे बहुमुखी प्रतिभावाले कवि हैं ,जिन पर आधुनिक युग की अनेक विचारधाराओं का एक साथ ही प्रभाव पड़ चुका है। पन्त जी का कवि जीवन सुन्दरम की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ। वीणा ,ग्रंथि ,पल्लव और गुंजन में पन्त जी ने प्रकृति के सुकुमार रंगीन चित्रों को प्रस्तुत किया है ,जिसमें सौन्दर्य ,मादकता ,अल्हड़ता नवीनता ,चंचलता और गहराई है। यही कारण है कि कवि ने प्रकृति को माँ ,शिक्षक या पथ निर्देशक ,प्रियतमा और परमात्मा का विराट रूप आदि अनेक रूपों में देखा है। प्रकृति वर्णन के क्षेत्र में पन्त जी अद्वितीय हैं। प्रकृति से प्रेरणा लेकर ये ईश्वर तथा संसार के विभिन्न क्षेत्रों का दर्शन करते हैं। 

पन्त जी की विचारधारा बिलकुल ही स्वतंत्र है। ईश्वर ,जीव ,सुखदुख की जीवन मीमांसा ,प्रकृति ,छायावाद ,रहस्यवाद ,प्रगतिवाद ,समाज देश आदि पर कवि के विचार बिलकुल स्वतंत्र हैं। पन्त जी प्रकृति को नारी रूप में चित्रित करते हैं। उसमें आध्यात्मिक सत्ता का भी अनुभव करते हैं। पन्त जी छायावादी कवियों में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। पन्त जी के काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित है - 

पंत का प्रकृति चित्रण  

पंतजी की प्राकृतिक सौन्दर्य चेतना सर्वप्रथम हिम्च्चादित पर्वतमालाओं ,बादलों ,इंद्रधनुष ,नक्षत्र और सरिताओं की सुषमा देख सजग हुई और उनका कवि ह्रदय आनंद से भाव विभोर हो उठा। यौवन के प्रथम चरण में उन्होंने किसी किशोरी के बाल जाल में अपने लोचन उलझाने की आकांक्षा की थी ,फिर भी वृक्षों की छाया को छोड़ प्रेयसी के केशों में उलझना उन्हें स्वीकार नहीं हो सका - 

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया, 
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?

विचारों की परिवर्तनशीलता 

सुमित्रानंदन पंत की काव्यगत विशेषताएँ
विचारों की परिवर्तनशीलता पंतजी के काव्य की मुख्य विशेषता है। इनके काव्य का प्रारंभ सुन्दरम के उद्देश्य को लेकर प्रारंभ हुआ ,फिर धीरे -धीरे उसमें सत्यम और शिवम् का भी समावेश हुआ। प्रारम्भ में कवि विहग छायावाद की आकाशीय उड़ान भरता था। फिर प्रगतिवाद के क्षितिज से गुजरते हुए धरती पर उतर आया। प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की मान्यता स्वीकारने में उसे कोई आपत्ति नहीं हुई। सच पूछिए तो पन्त जी प्रगतिवाद के प्रधान प्रवक्ता हो जाते हैं। गांवों की दयनीय दशा देखकर उनका कवि ह्रदय क्षुब्ध है - 

यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित, 
यह भारत का ग्राम,-सभ्यता, संस्कृति से निर्वासित। 
झाड़ फूँस के विवर,--यही क्या जीवन शिल्पी के घर? 
कीड़ों-से रेंगते कौन ये? बुद्धिप्राण नारी नर? 
अकथनीय क्षुद्रता, विवशता भरी यहाँ के जग में, 
गृह- गृह में है कलह, खेत में कलह, कलह है मग में!


पंत की काव्य चेतना

पन्त जी का काव्य युग चेतना का प्रतिक है। युग पथ की रचना के पश्चात युगांत ,युगवाणी और ग्राम्या में पन्त जी ने भाव और कल्पना के स्थान पर जीवन का मूर्तरूप प्रस्तुत किया है। इस प्रकार इनके काव्य में भौतिकवादी दर्शन और गांधीवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखलाई पड़ता है। पंतजी के संवेदनशीलता विद्रोही भावना कार्ल मार्क्स से प्रभावित है किन्तु यह भाव भी स्थायी नहीं हैं। मार्क्स का बहिर्मुखी और भौतिकवादी दर्शन अधिक दिनों तक उनको प्रभावित नहीं रख सका। अरविन्द से भेंट होने पर उनमें भारतीय आध्यात्म और पाश्चात्य विज्ञान का अद्भुत समन्वय दिखलाई पड़ता है। इस प्रकार पंतजी के काव्य में अब मानवता की प्रतिष्ठा के प्रेशनीय स्वर सुनाई पड़ते हैं - 

वृथा पूर्व पश्चिम का दिग्भ्रम मानवता को करें न खंडित ,
बहिर्नयन विज्ञान हो महत ,अंतर्दृष्टि ज्ञान से योजित। 


राष्ट्र प्रेम की भावना 

पंतजी के काव्य में प्रकृति सौन्दर्य और युग चेतना के साथ साथ राष्ट्र प्रेम की भावना भी विद्यमान है। कवि को अपने देश से स्वाभाविक प्रेम है। भारत माता का सजीव चित्र देखिये - 

भारत माता ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,वह अपने घर में प्रवासिनी।

कवि को देश की आर्थिक विपन्नता के प्रति कितना विक्षोभ है ,वह इस काव्य में स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। 

सुधारवादी दृष्टिकोण 

पन्त जी के काव्य में केवल राष्ट्रप्रेम की भावना ही नहीं है ,द्विवेदीयुगीन उपेद्शात्मक प्रवृत्ति से प्रभावित सुधारात्मक दृष्टिकोण भी विद्यमान है। वे जाती -पांति के बन्धनों को तोड़कर पारस्परिक प्रेम और सद्भावना को जगाना चाहते है - 
जाती - पांति की कड़ियाँ टूटे , द्रोह  मोह  मर्सर छुटे ,
जीवन के वन निर्झर फूटे वैभव बने पराभव |

रहस्यात्मकता 

पंतजी के काव्य में रहस्यात्मकता पारलौकिक प्रेम चित्रण के साथ साथ लौकिक प्रेम की अभिव्यंजना भी बड़े सुन्दर ढंग से हुई है। संयोग की अपेक्षा वियोग इन्हें विशेष प्रिय है। विरह को पंतजी काव्य प्रेरणा का स्रोत मानते है - 

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, 
निकल कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान! 

सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली 

पंतजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है ,फिर भी भाषा में कोमलता और माधुर्य कूट कूट कर भरा हुआ है। कहीं कहीं फ़ारसी और ब्रजभाषा के शब्द भी दिखलाई पड़ता है। भाषा में लोकोक्तियों और मुहावरों का अभाव है। बंगला ,संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य से प्रभावित कुछ लाक्षणिक पदावलियों के भी प्रयोग पंतजी की भाषा में दिखलाई पड़ता है। पंतजी अपनी कोमल कान्त पदावली के लिए प्रसिद्ध है। उनकी भाषा अत्यंत ही चित्रमयी तथा बिम्ब योजनाओं से परिपूर्ण है। यथा - 

विपुल मणि-रत्नों का छबि-जाल,
इन्द्रधनु की-सी छटा विशाल-
विभव की विद्युत्-ज्वाल
चमक, छिप जाती है तत्काल;
मोतियों-जड़ी ओस की डार
हिला जाता चुपचाप बयार !

पंतजी के काव्य में गीतात्मक मुक्तक शैली का प्रयोग हुआ है जो बंगला ,अंग्रेजी और संस्कृत कवियों से प्रभावित है। हिंदी के लिए यह शैली सर्वथा नवीन है। उसमें सरसता ,संगीतात्मकता ,माधुर्य और व्यंजन शक्ति की अधिकता है। इनके गीतों में भावों और विचारों की प्रधानता है। वर्णात्मक कविताओं के भी चिंतन की प्रधानता है ,जैसे नौका विहार ,परिवर्तन आदि। 

सुमित्रानंदन पंत का भावपक्ष और कलापक्ष 

भाव और कला पक्ष दोनों दृष्टियों से विचार करने पर पंतजी आधुनिक युग के प्रतिनिधि कवि कहे जाते हैं। इनके काव्य में विचारों की गहनता के साथ साथ भावों की व्यंजन इतनी कोमल -कमनीय पदावली में हुई है कि यह निर्णय कर पाना कठिन है कि पंतजी कवि अधिक है अथवा विचारक या शिल्पी। सचमुच ही पंतजी प्रकृति के सुकुमार कवि हैं ,युग के महान चिन्तक हैं और काव्य के सुन्दर शब्द शिल्पी हैं। 


COMMENTS

Leave a Reply: 4
  1. बेनामीमई 21, 2022 8:57 am

    प्रिय प्रवास का महत्व

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  2. बेनामीमई 21, 2022 9:54 am

    प्रिय प्रवास की महत्व

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामीमई 21, 2022 9:54 am

    कुमारी चौहान की जीवन संसारकुमारी चौहान की जीवन संसार

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 20 मई 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
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