स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

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स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Stri Shiksha ke Virodhi kutarkon ka khandan

पाठ का सार summary - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन ,महावीरप्रसाद द्विवेदीजी द्वारा लिखित निबंध का ऐतिहासिक महत्व है। प्रस्तुत निबंध में द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा के विरोधी मतों को ध्वस्त किया है।उनके काल में स्त्रियों को पढ़ाना - लिखाना ,गृह सुख के नाश का कारन माना जाता था।  अच्छे अच्छे विद्वान जन भी जो संस्कृत के ग्रन्थ साहित्य और धर्म शाश्त्र का विद्वान भी स्त्री शिक्षा के विरोधी है।  ऐसे लोगों को मानना है कि - 
१. पुराने संस्कृत नाटकों में महिलाएँ संस्कृत भाषा न बोलकर प्राकृत भाषा जो कि जन समुदाय की भाषा थी ,बोलती थी। अतः वे पुरातन काल से ही गंवार थी।
२. शकुंतला आदि नारियाँ काम पढ़कर भी अपने पति दुष्यंत को कटु वाक्य कहे. शंकुन्तला ने जिस भाषा में श्लोक कहा वह जानवरों की भाषा थी।

लेखक का कहना है कि स्त्रियों का प्राकृत भाषा में बात करना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। भवभूति और कालिदास के समय में कुछ वर्ग ही ससंकृत  प्रयोग करता था ,अन्य वर्ग जनसमुदाय प्राकृत का ही प्रयोग करता था।इसका उदाहरण बौद्धों का त्रिपिटक ,गाथा सप्तसती ,सेतु बांध महाकाव्य ,कुमारपाल चरित आदि ग्रन्थ प्राकृत में रचे गए।  जिस प्रकार आज के ज़माने में हिंदी ,बांग्ला ,मराठी आदि भाषा जनसमुदाय की भाषा है। नाट्य शाश्त्र के नियम एक सिमित वर्ग द्वारा बनाया गया था।उसी वर्ग ने संस्कृत और प्राकृत में विभेद किया।

प्राचीन समय में स्त्रियाँ वर्ग के पठन -पाठन के लिए कोई नियमित विद्यालय -विश्वविद्यालय न था।पुराणों में विमानों -जहाज़ों का वर्णन है ,लेकिन आज उसका कोई प्रमाण नहीं है।बहुत सारी विदुषी स्त्रियाँ जिनमे शीला ,विज्जा ,बौद्ध ग्रन्थ त्रिपतिक के थेरीगाथा आदि का नाम आता है ,अपने विद्धवता से सारे समाज को लाभवनवित किया।अत्रि की पत्नी ,मंडान मिश्र की पत्नी , गार्गी आदि अपने पांडित्य से सभी हरा दिया।  अतः हमें स्त्रियों को पढ़ाने  प्रयन्त करना चाहिए।
लेखक कहता है कि भले ही प्राचीन काल में स्त्री शिक्षा की आवश्क्त्या नहीं समझी गयी हो ,किन्तु आज इसकी आवश्क्त्या है। भागवत पुराण में रुक्मणी जी द्वारा लिखित पत्र उनके पांडित्य का सूचक था। अतः आज हमें उसकी महत्ता समझनी चाहिए।
लेखक का मानना है कि यदि स्त्रियाँ को पढ़ने से अनर्थ होता तो पुरुषों को पढ़ाने से जो वे बम के गोले फेंकते ,नर हत्या ,डाका ,चोरी ,घूस लेना आदि अपराध करते हैं - तो उन्हें भी नहीं पढ़ाना चाहिए। शंकुन्लता और सीता ने जो भी कटु वाक्य कहे वे उनके दुःख के परिणाम  था ,अल्पज्ञता  का नहीं।
अतः पढ़ने लिखने में कोई बुराई नहीं है। अनर्थ -दुराचार व्यक्ति के स्वयं के गुण है ,शिक्षा के परिणाम नहीं। स्त्रियों को साक्षर करने से देश और समाज का भला होगा।  स्त्री शिक्षा पर बहस होबी चाहिए ,शिक्षा प्रणाली का संशोधन होना चाहिए।लेकिन किसी भी परिस्थिति में स्त्री -शिक्षा पर रोक नहीं लगानी चाहिए क्योंकि यह अनर्थकर है।

प्रश्न अभ्यास stri shiksha ke virodhi extra question answers


प्र.१. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे।द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?

उ. लेखक का मानना रहा है कि प्राचीन काल में शीला ,विज्जा ,थेरीगाथा ,गार्गी आदि महिलाएँ विदुषी रही है। इन्होने धर्म धर्म साहित्य की रचना की।  संस्कृत नाटकों के समय केवल एक सीमित वर्ग ही संस्कृत का प्रयोग करता था ,जबकि जनसमुदाय की भाषा प्राकृत थी। अतः स्त्री पात्रों द्वारा जनसमुदाय की भाषा प्रयोग की गयी है।
आज के समय में विश्व के अनुकूल स्त्रियों को शिक्षा देना आवश्यक है। अतः हमें शिक्षा प्रणाली में संशोधन करना चाहिए ,न की स्त्री शिक्षा पर पाबन्दी।  

प्र.२. ‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन दि्वेदीजी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।

उ.  प्रस्तुत निबंध में लेखक ने स्त्री शिक्षा के विरोधियों की दलीलों का खंडन किया है। उनका मानना है कि यदि स्त्री शिक्षा अनर्थ का कारक है तो पुरुष शिक्षा प्राप्त कर नर हत्या ,डाका , ,चोरी ,बेईमानी ,बम के गोले फेंकते हैं।  अतः इन्हे तुरंत बंद कर देना है।  पुरातन समय में गार्गी ,शीला ,थेरीगाथा ,मंडन मिश्र की पत्नी आदि ने अपने लोहा मनवाया। प्राचीन समय इ महिलाओं को चित्र बनाने ,नाचने ,गाने ,हार बनाने आदि की स्वंतंत्र थी ,तो आज उनकी शिक्षा पर पाबन्दी नहीं लगनी चाहिए क्योंकि जब शिक्षा पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट हो सकती है ,तो स्त्रियों के कालकूट नहीं हो सकती है।  

प्र.३. द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वेपूजनीय पुरूषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उ . स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन ,महावीर प्रसाद द्विवेदीजी द्वारा लिखित निबंध में स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य निम्नलिखित हैं  –
(१) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
(२) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
(३) “आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!”
(४) अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे!गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
(५) जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार का संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अख़बार लिखता है।

प्र. ४. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उ. द्विवेदी जी ने अनुसार - पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा का प्रयोग उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। उस समय में संस्कृत का प्रयोग एक सिमित वर्ग ही करता था, नाट्यशास्त्र के नियम भी उसी वर्ग ने बनाये थे। प्राकृत भाषा जनसमुदाय की भाषा थी।  अतः स्त्रियों इस भाषा का प्रयोग करती है ,इसका सबसे बड़ा उदाहरण बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों का निर्माण प्राकृत में हुआ। शाक्य मुनि और उनके शिष्य प्राकृत में अपना धर्म प्रचार किये।  अतः प्राकृत अपढ़ों की भाषा नहीं थी।  


पर. ५. परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उ. द्विवेदी जी का मानना है कि हमें परम्परा का ही हमेशा  प्रयोग नहीं करना चाहिए। परंपरा और रीतियाँ आगे यदि आगे बढ़ाने वाली हो ,तो हमें उनका प्रयोग करना चाहिए। स्त्री शिक्षा आज की महती आवश्कतय है। बिना स्त्री शिक्षा के समाज और राष्ट नहीं चल सकता है। हमारा संविधान भी वर्ग समानता की बात करता है और ऐसी प्रथाओं का त्याग करने के लिए कहती है स्त्री की गरिमा को घटाता है।  अतः स्त्री शिक्षा ,उनकी गरिमा को बढ़ाना है।  अतः हमें स्त्री शिक्षा को बढ़ाना देना चाहिए।  

प्र. ६. तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।

उ. प्राचीन काल और आज की शिक्षा में बहुत अंतर आ गया है।प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती है।  समाज की कुलीन वर्ग की स्त्रियाँ ही शिक्षा ग्रहण कर पाती थी।अन्य वर्ग की स्त्रियाँ चित्र बनाने ,नाच गान ,माला गूँथने का ही काम कर पाती थी।  
आज का युग सह शिक्षा का है।जो शिक्षा पुरुष वर्ग ग्रहण कर रहा है वही शिक्षा महिलाओं को दी जा रही है।अतः शिक्षा में समानता लायी गयी है।  महिलाएँ शिक्षा ग्रहण कर जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है।  


रचना और अभिव्यक्ति 


प्र. ७. महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उ.  महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ,स्त्री शिक्षा की जोरदार वकालत करते है।आज हमारे समाज में लड़कियाँ शिक्षा पाने एवं कार्य क्षेत्र में क्षमता दर्शाने में लड़कों से बिलकुल भी पीछे नहीं हैं किन्तु यहाँ तक पहुँचने के लिए अनेक स्त्री -पुरषों ने लम्बा संघर्ष किया।  नवजागरण काल के चिंतकों ने मात्र स्त्री शिक्षा ही नहीं बल्कि समाज में जनतांत्रिक एवं वैज्ञानिक चेतना के सम्पूर्ण विकास के लिए अलख जगाया।  लेखक का यह लेख उन सभी पुरानतन पंथी विचारों से लोहा लेता है जो स्त्री शिक्षा को व्यर्थ अथवा समाज के विघटन का कारण मानते थे।  इस निबंध की दूसरी विशेषता यह है कि इसमें परंपरा को ज्यों का त्यों नहीं स्वीकारा गया है और परंपरा का जो हिस्सा सड़ - गल चूका है ,उसे रूढ़ि मानकर छोड़ देने की।यह विवेकपूर्ण दृष्टि सम्पूर्ण नवजागरण काल की विशेषता है।आज इस निबंध का अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक महत्व है।  

प्र.८. द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उ. द्विवेदी जी अपने समय के हिंदी साहित्य के विधायक थे।इन्होने हिंदी साहित्य को ब्रज ,अवधी भाषा से परिष्कृत कर खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने मानक शब्द गढ़े और हिंदी पत्रिका सरस्वती के माध्यम से हिंदी की खड़ी बोली का प्रचार किया और रचनाकारों को खड़ी बोली में ही लिखने को इन्होने साहित्य लेखन का माध्यम बनाया।  प्रस्तुत निबंध में हम संस्कृत उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग पाते है . जैसे - 

  • विद्यमान ,प्रमाणित ,सुशिक्षित - संस्कृत 
  • अपढ़ ,गँवार ,पुराना (तद्भव )
  • कॉलेज ,स्कूल ( अंग्रेजी )
द्विवेदी जी ने भाषा प्रयोग का जो आदर्श रखा ,उसका पालन आज भी हो रहा है।वास्तव में हिंदी साहित्य उनकी प्रतिभा कजा ऋणी है।  


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