पहला बुरा दिन
माँ मेरे जीवन कासबसे बुरा दिन वह था
जब पहली बार
मुझे पता चला था तुम ही से
कि अब मैं लड़की बनने की
राह पर चल पड़ी हूँ
यकायक यह सुनकर तुमसे
सहम गयी थी मैं
क्योंकि मैं जान गई थी
लड़की होना ख़तरे से खाली नहीं है
यह वह दिन था जब
मैंने जाना था कि
मैं ताक़तवर नहीं हूँ
अब मुझे नोचा जाएगा
घूरा जाएगा, फब्तियाँ कसी जाएँगी
अंदर और बाहर सब जगह
यह वह दिन था
जब माहौल से आती लहरों ने
मुझे 'सिक्योरिटी' शब्द का अर्थ समझाया था
तुम ही कहो भला उस दिन को
मैं बुरा क्यों न मानूँ
उस दिन ने मुझे आँसू, पीड़ा, व्यथा, दर्द
जैसे शब्दों से रू-ब-रू कराया था
ज़ंजीरों में बंधना और सिमटना सिखाया था
धकेला था इस तुच्छ हो चुकी मानसिकता को
अपनाने के लिए
जिसका न होना
मेरी दुनिया बदल सकता था.
- समीक्षा दुबे
यह रचना समीक्षा दुबे जी द्वारा लिखी गयी है और आप भारतीय भाषा केंद्र , जे.एन. यू. की विद्यार्थी हैं। साहित्य लिखने-पढ़ने के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत और नाटक में गहरी रुचि ।
अच्छी कविता
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