मातृ मंदिर की ओर

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मातृ मंदिर की ओर


सुभद्राकुमारी चौहान की प्रसिद्ध देशभक्ति कविता "मातृ मंदिर की ओर" भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में जोश और देशप्रेम की भावना जगाने वाली एक प्रेरक रचना है। इस कविता में कवयित्री ने भारत माता को एक मंदिर के रूप में चित्रित किया है और देशवासियों को उसकी रक्षा के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का आह्वान किया है। कविता की भाषा सरल, ओजस्वी और प्रभावी है, जिसमें देशभक्ति की अग्नि स्पष्ट झलकती है।

मातृ मंदिर की ओर कविता का भावार्थ व्याख्या Explanation

व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश
चलूँ उसको बहलाऊँ आज ।
बताकर अपना सुख-दुख उसे
हृदय का भार हटाऊँ आज ।।

चलूँ मां के पद-पंकज पकड़
नयन जल से नहलाऊँ आज ।
मातृ-मन्दिर में मैंने कहा-
चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों  में कवयित्री सुभद्रा कुमार चौहान जी कहती हैं कि उनका ह्रदय व्यथित है .अपने ह्रदय के दुःख को दूर करने के लिए वे माता के मंदिर में जाना चाहती हैं . उनके साथ अपना दुःख साझा करके अपने ह्रदय का बोझ कुछ कम करना चाहती हैं .माता के चरणों को कवयित्री अपने आंसुओं से धोकर अपना दुःख व्यक्त करेगी .इसीलिए वह माता के मंदिर के दर्शन के लिए जाना चाहती हैं .

किन्तु यह हुआ अचानक ध्यान
दीन हूं, छोटी हूं, अञ्जान!
मातृ-मन्दिर का दुर्गम मार्ग
तुम्हीं बतला दो हे भगवान !

मार्ग के बाधक पहरेदार
सुना है ऊंचे-से सोपान ।
फिसलते हैं ये दुर्बल पैर
चढ़ा दो मुझको यह भगवान !

व्याख्या - सहसा कवयित्री को ध्यान आता है कि वह दीं हीन हैं और माता के मंदिर जाने का मार्ग दुर्गम हैं .इसीलिए माता से प्रार्थना करती हैं वे उसे मंदिर तक पहुँचने का मार्ग दिखला दे .मंदिर के सीढ़ियां बहुत ऊँची ऊँची हैं ,रास्ते में बाधक पहरेदार खड़े हैं ,जो कवयित्री का मार्ग रोकने के लिए तत्पर हैं .उसके दुर्बल पैर फिसलते हैं .अतः ऐसी स्थिति में माता ही मंदिर तक पहुँचने में सहायता करें .

अहा ! वे जगमग-जगमग जगी
ज्योतियां दीख रहीं हैं वहां ।
शीघ्रता करो, वाद्य बज उठे
भला मैं कैसे जाऊं वहां ?

सुनाई पड़ता है कल-गान
मिला दूं मैं भी अपने तान ।
शीघ्रता करो, मुझे ले चलो
मातृ-मन्दिर में हे भगवान !

व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि मंदिर में दूर से ही जग मग जगमग ज्योति दिखाई दे रही हैं ,साथ वाद्य यंत्र बज रहे हैं .इसीलिए वह जल्द से जल्द पहुंचना चाहती हैं ,लेकिन उसे कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा है .मंदिर में बज रहे गीतों से वह अपनी तान मिलाना चाहती हैं .इसीलिए वह भगवान से प्रार्थना करती हैं कि जल्द से जल्द वह माता के मंदिर में पहुंचे .

चलूं मैं जल्दी से बढ़ चलूं
देख लूं मां की प्यारी मूर्ति ।
अहा ! वह मीठी-सी मुसकान
जगाती होगी न्यारी स्फूर्ति ।।

उसे भी आती होगी याद
उसे ? हां, आती होगी याद ।
नहीं तो रूठूंगी मैं आज
सुनाऊँगी उसको फरियाद ।।

व्याख्या - कवयित्री जल्द से जल्द माता की प्यारी मूर्ति देख लेना चाहती हैं . प्यारी मूर्ति को देखकर उनमे एक अनोखी स्फूर्ति आ जाती है .जिस तरह कवयित्री माँ को याद करती हैं ,उसी तरह माँ भी उसे याद करती होंगी .यदि माता कवयित्री को याद नहीं करती हैं ,तो वह उनसे रूठ जायेंगी और अपनी फ़रियाद करेंगी .

कलेजा मां का, मैं सन्तान,
करेगी दोषों पर अभिमान ।
मातृ-वेदी पर घण्टा बजा,
चढ़ा दो मुझको हे भगवान् !!

व्याख्या -  कवयित्री कहती हैं कि मैं जैसे भी हूँ ,जितने भी दोष मेरे अन्दर होंगे ,माता सभी दोष माफ़ कर देंगी .वह कुमाता नहीं हो सकती हैं . माता की रक्षा के लिए मातृ-वेदी का घंटा बजा है ,इसीलिए मैं उनकी रक्षा के लिए अपना बलिदान कर दूँगी .

सुनूँगी माता की आवाज,
रहूँगी मरने को तैयार।
कभी भी उस वेदी पर देव !
न होने दूँगी अत्याचार।।

न होने दूँगी अत्याचार
चलो, मैं हो जाऊँ बलिदान
मातृ-मन्दिर में हुई पुकार
चढ़ा दो मुझको हे भगवान् ।

व्याख्या - कवयित्री कहती हैं कि वह भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तत्पर हैं .माता पर कभी भी अत्याचार नहीं होने देंगी .अपना माता का अपमान व अत्याचार नहीं होने देंगी ,चाहे उन्हें अपने जीवन को न्योछावर करना ही पड़े. जब भी भारत माता की रक्षा के लिए पुकार हो ,तब वह अपना आत्म - बलिदान करने को तत्पर हैं .

मातृ मंदिर की ओर कविता का सार Summary of matri mandir ki aur

मातृ मंदिर की ओर कविता सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है . कवयित्री सुभद्रा कुमारी द्वारा रचित 'मातृ मंदिर की ओर' कविता राष्ट्र प्रेम से भरी है। वे कहती हैं कि मेरा हृदय व्यथित है, दुःखी है अतः उसे बहलाने के लिए मातृ मन्दिर जाऊँ । अपना सुख दुःख उन्हें बताकर अपने हृदय को बोझ कुछ कम करती हूँ। मैं भारत माता के चरण पकड़कर उन्हें अपने नयन जल अर्थात् आँसुओं से नहला दूँगी अर्थात् उनके चरणों में रोकर अपना दुःख व्यक्त कर देना चाहती हैं।लेकिन तभी उन्हें ध्यान आता है कि वह तो दीन है, छोटी है, अज्ञानी है तथा मातृ मन्दिर तक पहुँचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है अतः वह भगवान से प्रार्थना करती है कि वे उसे मातृ मंदिर तक पहुँचने का मार्ग दिखला दें। अन्यथा वहाँ तक पहुँचना सम्भव नहीं है। उस मार्ग तक पहुँचने में बहुत से पहरेदार भी बाधक हैं। मन्दिर तक पहुँचने की सीढ़ियाँ अत्यन्त ही ऊँची है तथा उसके पैर दुर्बल है जो सीढ़ियों पर चढ़ने में फिसलते हैं। 

ईश्वर ही वहाँ तक पहुँचने में सहायता कर सकते हैं। अतः वह ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें शक्ति प्रदान करें। कवयित्री आगे कहती है कि दूर से ही मन्दिर में जलती हुई जगमगाती ज्योतियाँ दिखाई दे रही हैं जो बहुत शोभायमान हो रही हैं। मन्दिर में वाद्य यन्त्र बजने की आवाज सुनायी दे रही है। अतः वह वहाँ शीघ्र पहुँचना चाहती है परन्तु वहाँ शीघ्र पहुँचने का उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। वह मातृ मन्दिर से आते गीतों की आवाज में अपनी तान मिलाना चाहती है। अतः भगवान से प्रार्थना करती है कि वे शीघ्र ही उन्हें वहाँ पहुँचा दें। वे शीघ्र जाकर अपनी माँ की प्यारी मूर्ति देख लेना चाहती है। तथा उनकी प्यारी सी मुस्कान देखने को व्याकुल हैं क्योंकि इससे उनमें एक अनोखी स्फूर्ति सी आ जाती है। 

कवयित्री सोचती है जिस तरह वे माँ को याद करती है, माँ भी उन्हें याद आवश्यक करती होगी। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो आज वह माँ से रुठ जायेंगी और अपनी फरियाद सुनायेंगी .माँ का हृदय महानता का प्रतीक है। वे अपनी संतान के दोषों को भी अनदेखा कर देती हैं। क्रोधित होने के स्थान पर वे अपनी संतान पर अभिमान करती हैं। मातृ भूमि की रक्षा के लिए वे अपने प्राणों का बलिदान देने को भी तत्पर हैं। जब भी मातृभूमि पर संकट आयेगा तो वे अपना उत्सर्ग करने को भी तैयार रहेंगी। लेकिन कभी मातृभूमि पर अत्याचार नहीं होने देंगी। वे अपनी मातृभूमि का अपमान और अत्याचार कभी नहीं होने देंगी। चाहे उन्हें अपना बलिदान देना पड़े। वे भगवान से कहती हैं कि जब भी मातृभूमि की रक्षा की पुकार उठे मुझे उस पर बलिदान कर देना। 


मातृ मंदिर की ओर  केन्द्रीय भाव / मूल भाव 

सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित मातृ मंदिर की ओर कविता देशभक्ति से ओतप्रोत मार्मिक रचना है . 'मातृ मंदिर की ओर' कविता आत्म बलिदान एक देश प्रेम की 'भावना से ओतप्रोत है। कवयित्री का हृदय व्यथित एवं दुखी है, क्योंकि हमारा देश परतंत्र है। देश अंग्रेजों के पराधीनता के बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज हमारे साथ अमानवीय व्यवहार करते थे । देशवासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे। स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास के बाद भी देश स्वतंत्र नहीं हो पा रहा था। इसे देखकर कवयित्री दुखी है और मन में आए हुए इन्हीं भावों को व्यक्त के लिए वह मंदिर जाना चाहती हैं। वहाँ वह माता के चरणों को पकड़कर बहुत रोना चाहती हैं जिससे उनके हृदय का दुख कम हो सके। 

अचानक कवयित्री को ध्यान आया कि वह छोटी, दीन और अज्ञानी हैं और माता के मंदिर तक पहुँचने का मार्ग भी कठिन है । रास्ते में पहरेदार भी है। कवयित्री को मंदिर में ज्योतियाँ भी दिखाई दे रही हैं और वाद्ययंत्र भी बज रहे है। परंतु वह वहाँ तक पहुँचने में सफल नहीं हो रही है। कवयित्री शीघ्रता से वहाँ पहुँचना चाहती हैं। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि ईश्वर उन्हें शक्ति प्रदान करें कि वे वहाँ तक पहुँचने में सफल हो सके वे ईश्वर की कृपा से मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान भी दे सकें .

कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान का जीवन परिचय

कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के निकट निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था, जो एक साहित्यप्रेमी व्यक्ति थे। सुभद्राकुमारी की शिक्षा इलाहाबाद में हुई, जहाँ उन्होंने हिंदी और संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन किया। उनका विवाह 1919 में ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से हुआ, जो खंडवा के निवासी थे।  



सुभद्राकुमारी चौहान ने कम उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, राष्ट्रीय चेतना, नारी संवेदना और प्रकृति चित्रण के विविध रंग देखने को मिलते हैं। उनकी प्रसिद्ध कविता "झाँसी की रानी" ने उन्हें अमर बना दिया और यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जोश भरने वाली रचना के रूप में जानी जाती है।उन्होंने कहानी लेखन में भी अपना योगदान दिया। उनकी कहानी संग्रह "बिखरे मोती" और "उन्मादिनी" हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सुभद्राकुमारी चौहान ने अपने साहित्य के माध्यम से नारी जीवन की पीड़ा, संघर्ष और आकांक्षाओं को मार्मिक ढंग से व्यक्त किया।15 फरवरी 1948 को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के दिलों में जीवित हैं। उन्हें हिंदी साहित्य की एक प्रमुख रचनाकार और राष्ट्रीय चेतना की अग्रदूत कवयित्री के रूप में याद किया जाता है।

मातृ मंदिर की ओर उद्देश्य 

मातृ मंदिर की ओर कविता सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है .मातृ मंदिर की ओर कविता का मुख्य उद्देश्य जन जन में देश भक्ति की भावना को जाग्रत करना है .सच्चा देशभक्त वही होता है जो अपनी मातृभूमि  पर हो रहे अत्याचार से व्याकुल हो जाता है कि वह किसी भी रूप में किसी भी प्रकार से अपनी भारत  माता के दुखों को दूर करेगा . ऐसे देशभक्त को देशभक्ति के मार्ग में आई बाधाओं को किसी भी प्रकार दूर करना चाहते हैं . कवयित्री अपनी माँ की मूर्ति को देखने के लिए आकुल है . वह भारत माँ के चरणों में अपना जीवन समर्पित करना चाहती है .अतः हम कह सकते हैं कि देशवासियों में देशभक्ति के भाव जगाना व उन्हें भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अपने जीवन की बाज़ी लगाने के लिए उन्हें प्रेरित करना कविता का मुख्य उद्देश्य है . 



मातृ मंदिर की ओर Question Answer 


प्र. कवयित्री का ह्रदय क्यों दुखी है ?

उ. कवयित्री देश की दशा के बारे में सोचकर दुखी है . वह भारत की परतंत्रता को देख कर ,देश वासियों पर हो रहे अत्याचार ,समाज में व्याप्त भेद भाव को देखकर दुखी है . वह भारत माता के मंदिर में जाकर अपनी व्यथा कम करना चाहती है .

प्र.कवयित्री ने किस बात का संकल्प किया और वह उसे किस प्रकार पूरा करेगी ?

उ. कवयित्री ने इस बात का संकल्प किया हुआ है कि वह भारत माता के मंदिर में जाकर दर्शन करेगी . वह माता को अपने देश वासियों की दीन हीन अवस्था को सुधारने के लिए प्रार्थना करेगी .

प्र. कवयित्री के मार्ग में कौन बाधक है ?

उ. कवयित्री भारत माता के मंदिर में जान चाहती है ,लेकिन मार्ग में खड़े पहरेदार उसे रोक रहे है . रास्ते की सीढ़ियाँ बहुत ऊँची है .इन सब बाधाओं  को पारकर कवयित्री माता के मंदिर टक पहुँचना चाहती है .

प्र. माता का स्वरुप कैसा है ?

उ. कवयित्री भारत माता के मंदिर के दर्शन करना चाहती है .माता की मूर्ति बहुत ही सुन्दर और मुस्कान लिए हुए है . इसीलिए कवयित्री इस रूप का दर्शन करना चाहती है .

प्र. कवयित्री ने मातृभूमि की मूर्ति की क्या विशेषता बताई हैं ?

उ. कवयित्री कहती हैं कि माता की मूर्ति बहुत प्यारी और अनोखी हैं .उनकी मधुर मुस्कान को देखकर उनके ह्रदय में एक अनोखी स्फूर्ति आ जाती है .

प्र. प्रस्तुत कविता में कवयित्री भगवान् से शीघ्रता करने को क्यों कहती हैं ?

उ. कवयित्री भगवान् से शीघ्रता करने को इसीलिए कहती हैं क्योंकि वह माता का दर्शन करने को उत्सुक है .वह मातृभूमि की झलक पाने के लिए व्याकुल है .इसीलिए भगवान् से कहती हैं कि उसे माता के  मंदिर में जल्द से जल्द पहुँचा दें .

प्र.  कवयित्री  किसमें तान मिलाना चाहती हैं और क्यों ?

उ -  कवयित्री को दूर से ही माता के मंदिर से आते गीतों की आवाज सुनाई दे रही हैं ,जिसके कारण उसका ह्रदय लालायित हो उठा है .इसीलिए माता की प्रशंसा में वह गीत गाना चाहती हैं ,जिससे माता की भक्ति हो सके .

प्रश्न. 'मातृ मंदिर' से क्या तात्पर्य है ? वहाँ से कवयित्री को क्या पुकार सुनाई दे रही है ? 

उत्तर- मातृ मंदिर से तात्पर्य समता- समानता से युक्त मातृभूमि (भारतभूमि) से है। वहाँ से कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को मातृभूमि के संकट में होने व रक्षा के लिए बुलाने का स्वर सुनायी दे रहा है।
 
प्रश्न. कवयित्री अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए क्या करने को तैयार है और क्यों ? 

उत्तर- कवयित्री अपनी मातृभूमि को अत्याचार से मुक्त कराने के लिए स्वयं को बलिदान करने के लिए तत्पर है। वे कहती हैं कि मैं अपनी मातृभूमि पर कभी अन्याय नहीं होने दूँगी, भले ही स्वयं मिट जाऊँ । 

प्रश्न. मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में कवयित्री को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? 

उत्तर- कवयित्री मातृ-मंदिर में प्रवेश करना चाहती है परन्तु वहाँ तक पहुँचने के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ है। मार्ग में अनेक पहरेदार है जो बाधा उपस्थित करते हैं। वहाँ की सीढ़ियाँ भी ऊँची है तथा वहाँ चढ़ने पर कवयित्री के पैर भी फिसलते हैं। वह दीन-हीन, छोटी व अज्ञानी हैं इस तरह मातृ मन्दिर तक पहुँचने में कवयित्री के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ हैं।

प्रश्न. कवयित्री का हृदय व्यथित क्यों है?

उत्तर- कवयित्री का हृदय भारत माता की दुर्दशा व समाज में प्रचलित भेदभावों के कारण व्यथित है। अत: वह अपने मन की व्यथा मातृ मंदिर में जाकर उन्हें सुनाना चाहती है।

प्रश्न. कवयित्री अपने मन का बोझ कम करने कहाँ जाना चाहती है? 

उत्तर- कवयित्री अपने मन की पीड़ा और दुःखो से भरे हृदय को हल्का करने के मातृ मन्दिर में जाना चाहती हैं और अपने सुख-दुःख उनके साथ बाँटकर अपने मन का बोझ कम करना चाहती हैं। 

प्रश्न . कवयित्री की क्या इच्छा है? 

उत्तर- कवियत्री की इच्छा है कि मातृ मन्दिर में जाये और माँ के चरण पकड़ कर उन्हें अपने नयन जल से नहला दें अर्थात्  माँ के चरण कमलों में अपनी सारी व्यथा व दुःख प्रकट कर आँसू बहाये। 

प्रश्न. कवयित्री को अपनी किन दुर्बलाओं का ध्यान आया ?
 
उत्तर- कवयित्री को अचानक ध्यान आया कि वह दीन-हीन है, छोटी है और अज्ञानी है। जिसके कारण वह इस स्थिति में मातृ-मन्दिर तक पहुँचने में स्वयं को असमर्थ महसूस करती है । 

प्रश्न . कवयित्री भगवान से क्या प्रार्थना करती है? 

उत्तर- कवयित्री मातृ मन्दिर जाकर माँ के दर्शन करना चाहती है लेकिन मन्दिर तक पहुँचने का रास्ता दुर्गम है और वे स्वयं दुर्बलताओं से ग्रस्त हैं अतः कवयित्री भगवान से सहायता की प्रार्थना करती हैं।

प्रश्न. कौन-सा मार्ग बाधाओं से भरा है? वे बाधाएँ क्या हैं? 

उत्तर- मातृ मन्दिर तक पहुँचने का मार्ग बाधाओं से भरा है। मन्दिर के मार्ग में अनेक पहरेदार हैं जो मन्दिर में जाने से रोकते है तथा इसके अतिरिक्त अत्यंत ऊँची सीढ़िया हैं जिन्हें अपने दुर्बल पैरों से पार करना मुश्किल है। 

प्रश्न. अंत में कवयित्री अपनी मदद की गुहार किससे करती हैं? और क्या? 

उत्तर- अंत में कवयित्री अपनी मदद की गुहार ईश्वर से करती हैं वे कहती हैं कि प्रभु मैं निर्बल हूँ अतः मुसे इतनी शक्ति और बल प्रदान करे कि रास्ते में आने वाली हर रुकावट को पार कर मैं माँ के मन्दिर में पहुँच जाऊँ। मैं मातृ मन्दिर जाने के लिए आतुर हूँ । 

प्रश्न . 'अहा, वे जगमग जगमग जगी, ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ'- आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- कवयित्री कहती है कि मातृ मन्दिर में जगमग जगमग करने वाले दीपकों की लौ अपना प्रकाश बिखेर रही है जो उसे मन्दिर की ओर खींच रही है।

प्रश्न. कवयित्री को कहाँ जाने की जल्दी है और क्यों ?

उत्तर- कवयित्री को मातृमन्दिर जाने की जल्दी है क्योंकि वहाँ वाद्य यन्त्र बजने लगे हैं अतः उनकी आवाज सुन शीघ्रता से वहाँ पहुँचना चाहती है। 

प्रश्न. वह अपनी तान किसमें मिलाना चाहती है और क्यों ?

उत्तर- कवयित्री मन्दिर से आती गीतों की आवाज को सुनती है जो दूर तक सुनाई दे रही है तो वह उन गीतों में अपनी आवाज ने मिलना चाहती है क्योंकि कवयित्री भी मातृभूमि की प्रशंसा के गीत गाना चाहती है। 

प्रश्न . 'शीघ्रता करो मुझे ले चलो' पंक्ति के माध्यम से कवयित्री क्या कहना चाहती है ?
 
उत्तर- कवयित्री मातृभूमि से मिलने को आतुर है। वह अपने देश की झलक पाने उसके दर्शन करने को उत्सुक है अत: वह भगवान से प्रार्थना करती है कि हे भगवान मुझे शीघ्रता से मातृमंदिर में पहुँचा दो । 

प्रश्न. 'चलूँ मैं जल्दी से बढ़-चलूँ' से कवयित्री का क्या आशय है ?

उत्तर- कवयित्री जल्दी से जल्दी चलकर मातृदेवी के दर्शन करना अपने चाहती है और उनकी प्यारी मूर्ति देखने को व्याकुल है अतः वहाँ जाकर माँ को देखना चाहती है। 

प्रश्न. कवयित्री ने मातृभूमि की मूर्ति की क्या विशेषता बतायी है? 

उत्तर- कवयित्री मातृभूमि की मूर्ति की विशेषता बताती हुई कहती है कि उनकी मूर्ति बहुत प्यारी है तथा मुस्कान भी बहुत मधुर है जिससे मेरे हृदय में एक अनोखी स्फूर्ति और ताजगी भर दिल के जाती है। 

प्रश्न. कवयित्री के मन में क्या संदेह है ?
 
उत्तर- कवयित्री अपनी मातृभूमि रूपी माँ को बहुत याद कर रही है तभी उसके मन में संदेह उत्पन्न होता है कि जिस तरह वह अपनी माँ को याद करती है क्या माँ भी उसे याद करती है? अर्थात् माँ कहीं उसे भूल तो नहीं गयी ?
 
प्रश्न . 'नहीं तो  रूठगी मैं आज' में कवयित्री ने किससे रूठनें कि की बात कही है ? और क्यों ? 

उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में कवयित्री ने मातृभूमि से रूठने की बात कही है क्योंकि यदि मातृभूमि रूपी माँ को उसकी याद न आती होगी तो वे अपनी माँ से रूठ जायेगी और उनसे फरियाद भी करेगी। एक माँ अपनी पुत्री को भला कैसे भूल सकती है। 


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COMMENTS

Leave a Reply: 8
  1. is kavita mein kavyitri bhagwan se shighrata karne ko kyu kehti hain

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    1. कवयित्री भगवान् से शीघ्रता करने को इसीलिए कहती हैं क्योंकि वह माता का दर्शन करने को उत्सुक है .वह मातृभूमि की झलक पाने के लिए व्याकुल है .इसीलिए भगवान् से कहती हैं कि उसे माता के मंदिर में जल्द से जल्द पहुँचा दें .

      हटाएं
  2. "Chadha do mujhko he bhagvan" se kavyitri ke kya bhaav vyakt hote hai

    जवाब देंहटाएं
  3. What is relation of poem to patriotic feeling

    जवाब देंहटाएं
  4. Matra vedi ka kya Arth hai aur iski kya pukaar hai ?

    जवाब देंहटाएं
  5. Badhak pahredar kaun hai?
    Jagmag jyotiyan kiska prateek hai?
    Mandir me kaun vadya yantra Baja raha hai?

    जवाब देंहटाएं
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