हे प्राणों के दाता ईश्वर
हे प्राणों के दाता ईश्वर !इतनी विनय करुं मै !
तेरे प्रतापो से ही ।
तेरा संतान बनूं मै !
तेरे ऊज्जवल किरणों से ।
तेरा प्रकाश बनूं मै !
मिटाऊंँ घोर अंधेरा ।
बनकर दीप जलूं मै !
पवन वेग संग उङकर ।
नभ मे छा जाऊँ मै !
दुर्गंध निकालूं सबकी ।
ऐसी खुशबू बन जाऊँ मै !
मेघो के संग बरसूं ।
समा सागर मे जाऊँ मै !
हर ओर अंग मै करके ।
प्यास सबकी बुझाऊंँ मै !
जिस ओर बह जाऊँ मै !
लाऊँ हरियाली सबों मे ।
तेरे कृपा से भगवन् ।
तेरा ही गुण गाऊँ मै !
तेरा ही गुण गाऊँ मै !
शिक्षा नहीं संस्कार चाहिए
शिक्षा नहीं संस्कार चाहिए !पैसा नहीं परिवार चाहिए !
भरत पुत्रों को फिर वही ।
भारत का अनोखा प्यार चाहिए !
जिससे दानव मानव बना ।
मानव बना इंसान !
अपने अनोखी संस्कृति से ।
रंगा अपना हिन्दुस्तान !
उड़ेले अपना सबकुछ हम पे ।
वो ज्ञानी पुरुष महान !
हम उनके चरण वंदन कर ।
बनाए उनसे अपना पहचान !
आचार्य - शिष्य शैलेश कुमार कुशवाहा
ग्राम - सौर पोo राजापुर सौर थाo
वारिसलीगंज नवादा (बिहार)
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .