बारिश

तुम बारिश कहते हो..
मेरे शब्दकोश में इसे
'प्रेम' कहते हैं...
जब ये बरसता है
मैं अपने आंगन में जाकर
तुम्हारे प्रेम में बस
भीगती ही जाती हूँ......
पैरों में ना जानें कहाँ से
नूपुर की झंकार,
हांथों में,तुम्हारे प्रेम में रंगी,
लाल-हरी चूड़ियाँ
एक शोर उठा लेती हैं...
तुम्हारे प्रेम की बूँदें,
सब तुम्हारी अठखेलियाँ सीख
मेरे बंधे बालों को खोलकर
शरारतें कर जातीं हैं....
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प्रतिष्ठा मिश्रा |
मैं भी सब भूलकर
तुम्हारे प्रेम में झूम उठती हूँ
नाच उठती हूँ...
यही तो तुम चाहते हो ना,
मैं बस तुम्हारे प्रेम में नाच उठूँ..
तुम मुस्कुरा जाते हो मुझमें
और बरसाने लगते हो,
प्रेम के बेले,गुलाब, चमेली..
फिर दोनों ही मोर-मोरनी जैसे,
इस बारिश में,
प्रेम की बारिश में,
आनन्दित हो नाचते जाते हैं..
भीगते जाते हैं......
- प्रतिष्ठा मिश्रा
उपनाम...अतिषा मिश्रा
उन्नाव, उत्तर प्रदेश
khub likha hai apne prem pr
उत्तर देंहटाएंdhanyawad adarniyaa anamika ji
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