आंगन
तिनका-तिनकाजो समेटा हैं
कोई आँधी
कोई तूफाँ
उसे बिखेर न दे,
मेरे अपनों का
![]() |
रूबी श्रीमाली |
जो सजाया हैं
अपनी इच्छओ को मिटाकर
बनाया ये
प्रांगण,
क्या मोल
उस भूमि का
दामन जो
अपनों का
नफरतो से भरे,
क्यों इस प्रांगण
अब खिलखिलाकर
कोई हँसता नही
क्यों अपनों के लिए
कोई अपना
अब झुकता नही,
क्यों बढ़ता जाता है
रंज दिलो में
क्यों रंज
अपनी कोई सीमा
रखता नही।
रूबी श्रीमाली
बघरा,मुज़फ्फरनगर
251306
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .