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दिल्ली का दिल, कनॉट प्लेस जिसकी धढ़कने हर शाम और तेज हो जाती हैं । दिन के शोर और भागती दौड़ती ज़िन्दगी के रफ्तार में, शायद ये धढ़कने सुनाई न पङ़े पर सूरज ढलने के साथ इनमें अलग ही रिदम होती है ।

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दिल्ली का दिल, कनॉट प्लेस जिसकी धढ़कने हर शाम और तेज हो जाती हैं । दिन के शोर और भागती दौड़ती ज़िन्दगी के रफ्तार में, शायद ये धढ़कने सुनाई न पङ़े पर सूरज ढलने के साथ इनमें अलग ही रिदम होती है । ये कुछ वैसे ही है जैसे कि हम खुद की हॉर्ट बीट भी तभी सुनते हैं जब रूककर इसे महसूस करे ...और कुछ ऐसा ही हाल यहां के एक कॉफी शॉप में बैठी गरिमा का भी है। रात के आठ बज चुके हैं पर आज ये “8 पीएम” रोज जैसा नही है..
यशोधरा वीरोदय “यशु”
यशोधरा वीरोदय “यशु”
ये रात के आठ बजे का समय उसके लिए वक्त के लिहाज से लक्षमण रेखा जैसा रहा है ..जिसे जाने अनजानें उसने खुद ही अपने लिए खींच लिया है। उसे हर रोज आठ बजे से पहले ऑफिस से घर पहुँचना होता हैं मानों अगर इससे देर हो गयी तो सिंड्रेला की तरह उसका जादुई रूप खत्म हो जाएगा और उसका राजकुमार रूठ जाएगा.. फर्क इतना है कि यहां उसका राजकुमार घर में इंतजार करता होता है और जादुई रूप में कोई परी की पोशाक नही बल्कि उसकी परफेक्ट वाईफ की ईमेज है जो हर रोज छल्ली होती है । घर गृहस्थी और जॉब के बीच तालमेल बिठाते हुए उसकी शादीशुदा लाइफ चल रही है... चूँकि शादी के बाद जॉब करने का फैसला उसका अपना है .. तो इसके साथ आने वाली सारी दिक्कतें भी उसके हिस्से में है। गरिमा ने अविनाश से इसी शर्त पर शादी की थी कि वो शादी के बाद भी जॉब कर सके और बदले में वो खुद, एक बीवी की सारी जिम्मेदारियाँ पूरी तरह से निभाएगी।  इस तरह वो घर और ऑफिस के काम को मैनेज करते हुए अपनी शादीशुदा जिन्दगी की गाङी दौङाए हुए है ... हर रोज ये सफर सुबह 6 बजे जागने के साथ शुरू होता है .. घर के काम निपटाकर 9 बजे ऑफिस के लिए निकलना होता है और फिर वहां टेन टू सिक्स पीएम की शिफ्ट के बाद जल्दी घर वापस लौटने की होङ रहती है ...कोशिश तो यही रहती है कि वो रात आठ बजे, अविनाश के घर पहुँचने से पहले ही वापस आ जाए। पर कभी कभी ऑफिस के काम से या फिर रास्ते में ट्रैफिक की वजह से उसे देर भी हो जाती है और फिर उस रोज अविनाश का नाराज होना भी तय होता है  जैसा कि आज भी तय है। 
आज तो उसे ऑफिस में ही देर हो गयी थी.. काम करते हुए उसकी नजर जब अपने मोबाइल पर पङी तो पता चला कि सात बज चुके थें फिर उसने जल्दी से अपना सामान समेटा और डेस्क से बाहर निकली... बॉस को जैसे ही घर निकलने के लिए बताया तो उन्होनें घङी में टाईम देखते हुए ऐसा रिएक्शन दिया था जैसे उसने घर जाने की इजाजत नही बल्कि बोनस मांग लिया हो । खैर कल जल्दी ऑफिस आकर काम पूरा करने के वायदे के साथ वो वहां से निकल पङी थी.. ऑफिस से बस स्टैण्ड की जो दूरी हर रोज लगभग 10 मिनट में पूरा करती थी आज 5 मिनट में तय कर पँहुची थी लेकिन वहां पता चला कि आज बसों का रूट चेंज है .... फिर तो लेट होने का डर उसे सताने लगा था क्योंकि अभी तो बस से सफर कर सीपी (कनॉट प्लेस) तक पहुँचना था फिर वहां से घर के लिए मेट्रो का सफर तय करना था । जैसे जैसे समय बीत रहा था उसकी टेन्शन भी बढती जा रही थी जो उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। जब भी कोई बस या ऑटो आती वो दौङकर सङक पर आती लेकिन पता चलता ये उस रूट पर नही जा रही है .. उलझन में वो सङक पर ही चहल कदमीं करने लगी थी कि तभी लगभग 40-45 साल के एक व्यक्ति ने उसके पास आकर पूछा था कि “एक्सक्यूज मी! आपको सीपी जाना है” फिर गरिमा की हाँ सुनकर उसने बताया कि मैं भी वहीं जा रहा हूँ .. मैने कैब बुक की है आप चाहें तो साथ में चल सकती हैं। गरिमा को थोङी झिझक हुई पर लेट होने के ख्याल आते ही वो साथ चलने को तैयार हो गयी थी .. थोङी देर में कैब आ गयी .. रास्ते में जब एक दूसरे का परिचय मिला तो पता चला कि दोनों का होमटॉउन एक ही है.. फिर तो आत्मियता सी हो गयी और शायद उसी आत्मियता में दूसरे व्यक्ति ने उसे कॉफी ऑफर कर दी जिसे वो चाह कर भी मना नही कर पायी और अभी उसी व्यक्ति के साथ वो कॉफी हाउस में है। 
कभी कभी भागती दौङती जिन्दगी के सफर में किसी अजनबी का पल भर का साथ सुकून देता है और यही एहसास इस वक्त गरिमा को हो रहा है । सुबह से शाम तक हर मिनट का हिसाब रखने वाली गरिमा के लिए मानों वक्त ही कुछ देर के लिए थम सा गया है... और ये पल सिर्फ उसका है जिसमें ना जाने कितने दिनों के बाद आज वो खुद से रूबरू हो रही है। समय के साथ रफ्तार बनाकर चलते हुए उसकी जिन्दगी एक मशीन सी हो गयी थी .. उसके आस पास क्या हो रहा है इससे उसको कोई खबर ही नहीं रही थी... हर रोज कई लोगों से मिलती थी लेकिन दूसरे लोग भी उसे चलते फिरते मशीन ही लगने लगे थे.. पर आज जब यहां बैठी है तो उसे एहसास हुआ कि आस पास के चेहरे सजीव हो उठे हैं... सबके अपने रंग है भाव हैं... हर चेहरा जैसे कुछ कह रहा हो । बगल में नजर डाली तो देखा एक कपल कॉफी की चुस्कियों के साथ जिन्दगी का सवाद चख रहा है.. वहीं दूसरे टेबल पर कुछ लोग चर्चा में लगे हुए हैं ..ग्रे शेड के बालों वाले ये अधेङ उम्र के लोगों का ग्रुप किसी बात पर उधङबुन कर रहा है,  उनके ठीक बगल के सीट पर बैठी लङकी शायद किसी का वेट कर रही है। आस पास से नजर उठकर जब सामने बने कॉउण्टर पर गयी.. तो उसने देखा कि वो व्यक्ति जिसके साथ आई है, आर्डर देने के लिए वहीं खङा है।  उसे देखकर उसका परिचय याद आया जैसा कि उसने रास्ते में बताया था कि एक मल्टीनेशनल कम्पनी में प्रोजेक्ट मैनेजर है .. अभी उसे देख ही रही है कि उसके मोबाईल में लो बैटरी के इन्डिकेशन ट्यून से उसका ध्यान टूटा जो एक बार फिर उसे समय का एहसास करा गया । अविनाश का ख्याल आते ही लगा कि उसे यहां नही आना चाहिए था.. अभी लास्ट वीक ही ये एट पीएम वाला सीन हो चुका है जब उसके लेट पहुँचने पर अविनाश ने हंगामा किया था और वो भी ऐसा कि अब तो बगल के फ्लैट वाले भी जान गए हैं कि आठ बजे का माजरा क्या है। 
जल्द से जल्द यहां से निकलना होगा ये सोचते हुए सामने देखा तो वो व्यक्ति आते हुए दिखा.. पास आकर बगल की चेयर पर बैठते हुए…. “मेरे पास कुछ कूपन थे यहां के, तो सोचा क्यों ना इसे यूटीलाईज कर लूं, इसी बहाने हमें थोङा और टाइम मिल जाएगा एक दूसरे को जानने का”.... कहते हुए उसने गरिमा के चेहरे की ओर देखा तो उसकी उलझन समझने में देर ना लगी.. “असल में मुझे बङी खुशी होती है जब कोई अपने शहर का यहां मिलता है इसी उत्सुकता में मेरे ख्याल से निकल गया कि आपको देर भी हो रही है” ।
ये सुनते ही गरिमा बोल पङी “जी, देर तो काफी हो गयी है.. अब तक तो मेरे हसबैण्ड भी ऑफिस से घर आ गए होगें... सुबह से शाम तक टाईम मैनेज करके चलती हूँ पर अक्सर लेट हो जाती हूँ.. कभी कभी तो लगता है कि मेरे हसबैण्ड सही कहते हैं, ये ऑफिस और जॉब का चक्कर छोङ घर में सूकून से रहना चाहिए... पर मुझे घर बैठना अच्छा नही लगता... ना तो मुझे किट्टी पार्टी का शौक है ना डेलीशोप का एडिक्शन... और फिर मैने इसी जॉब और करियर के लिए मेहनत भी बहुत की है उसका क्या...” एक ही साथ सारी बातें वो कह गयी जो उसके ज़हन में थी ।
गरिमा की बातें और उसके मनोभाव को समझते हुए उसने कहना शुरू किया... “देखिए, मैं तो ये कहूँगा कि इन्सान को वही रास्ता अपनाना चाहिए जो सही हो... ना कि वो रास्ता जो आसान हो और किसी भी फैसले में खुद की रजामंदी सबसे जरूरी है क्योकिं कभी कभी आप दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपनी खुशी भूल जाते हैं”। 
गरिमा ने बीच में कहा... “कर तो मैं यही रही हूँ पर मैरिड लाइफ के साथ साथ जॉब को मैनेज करना बहुत मुश्किल हो जाता है” 
“समझ सकता हूँ”... थोङा गम्भीर होते हुए उसने कहा... “एक वर्किंग वूमन की लाइफ मैने बहुत करीब से देखी है और महसूस भी की है.... मैने अपने माँ को इस दोहरी जिन्दगी के बीच सफर करते हुए देखा है... हर रोज वो ऑफिस जाने से पहले घर के सारे काम को पूरा करने की तसल्ली कर लेती थी... पूरे दिन घर से बाहर रहने का ख्याल उसे सताता रहता था और फिर जब वो वापस आती तो घर के कामों में लग जाती थी ... इस सबके अलावा उस समय में उसे बाहर जा कर काम करने के ताने भी सुनने को मिल जाते थें... लेकिन फिर भी मैने उसे विचलित होते हुए कभी नही देखा क्योंकि उसे पता था कि वो जो कर रही है, उससे ही उसका और उसके बच्चों का भला होगा। असल में ये नौकरी माँ को पिता जी के असमय देहान्त के बाद मिली थी ... पिता जी के देहान्त के बाद नाते रिश्तेदारों का कुछ समय के लिए आलम्बन था पर बाद में सब अपनी जिन्दगी व्यस्त हो गए थे फिर माँ ने नौकरी करने का फैसला लिया... उस वक्त जो लोग हमारी मदद को आगे नही आए थे वो भी माँ के इस फैसले के विरोध में खङे हो गए... लेकिन वो सब कुछ सहते हुए भी अपने फैसले पर अडिग रही ..और सबसे बङी बात ये थी कि जिस ऑफिस में मेरे पिता जी ऑफिसर के पद पर काम करते थे उसी ऑफिस में माँ को चपरासी की नौकरी मिली थी क्योंकि उनके पास उस पद के लिए शैक्षणिक योग्यता नहीं थी... इन सब परिस्थितियों के बावजूद उन्होने पूरे स्वाभिमान के साथ नौकरी की... मेरी और छोटे भाई की अच्छी परवरिश की... ये उनकी सेवा और त्याग का ही परिणाम है कि आज उनके बच्चे एक मुकाम पर हैं... और यही वजह है कि जब भी मै किसी वर्किंग लेडी को देखता हूँ तो माँ के संघर्षमय जीवन की याद ताजा हो जाती है। आज जब मैने तुम्हें परेशान हाल में बस स्टैण्ड पर देखा था तो तुम्हारी सिचुएशन मै भांप गया था... इसी वजह से मैने साथ चलने के लिए पूछा था ।
“मै आखिर में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि लाईफ का कोई भी फैसला अपनी परिस्थितियों और क्षमता के हिसाब से करना चाहिए ना कि दूसरों के प्रभाव में क्योंकि यहां हर दूसरा व्यक्ति आपको जज करने के लिए बैठा है पर साथ शायद ही किसी का मिलता है । अगर आप जीवन में आगे बढ़ने से रूक जाएंगे तो लोग आपकी जङता पर हसेंगे ..अगर आप चलना शुरु करेंगे तो कुछ लोग की नजरें तीखी हो जाएगी और अगर कहीं आप दौङ में उनसे आगे निकल गए तो वो खुल कर आपकी विरोध में भी आ सकते हैं या फिर आपकी खुशामदी में भी... सो लाईफ आपकी है जीने का सलीका भी आपका होना चाहिए" ।
उसकी बातें खत्म हो चुकी है... और इसकी जगह एक खामोशी ने ली है... इतनी देर में कॉफी भी आ गयी ... दोनों ने कॉफी पी .. नम्बर और वीजिटिंग कार्ड एक्सचेंज किया और अपने अपने रास्ते निकल लिए... थोङी देर बाद अब गरिमा मेट्रो में है... रास्ते में उस व्यक्ति की बातें याद रही है और उन बातों से जैसे लेट होने का ख्याल ही जा चुका है .. उसका मोबाइल थोङी देर पहले बैटरी डेड होने से स्वीच ऑफ हो चुका है ऐसे में अब तो समय का काउन्टडाउन भी खत्म हो गया है... आज पहली बार इतना लेट होने के बावजूद उसे अविनाश के नाराजगी का डर नही लग रहा है । मेट्रो के लेडीज कम्पार्टमेन्ट में बैठी गरिमा को आज अपने आसपास की दूसरी महिलाओं का भी ख्याल आया तो लगा सभी उसके साथ में ये रोज का सफर तय करती हैं... कुछ तो छोटे बच्चों को घर छोङकर आने का मलाल लिए पूरा दिन गुजारती है... सभी को जल्दी घर पहुँचने की होड रहती है... घर और ऑफिस के बीच तालमेल के साथ उनकी भी जिन्दगी चल रही है .. यही लाइफ है जिसमें कोई कम्फर्ट जोन नहीं है। 
इन्ही बातों और ख्यालों के साथ उसका मेट्रो का सफर भी तय हो गया और वो घर पहुँच चुकी है... जहां अविनाश बेसब्री से उसका इन्जार कर रहा है और गरिमा को देखते हुए उसने पहला सवाल किया “तुम्हारा फोन क्यों ऑफ है ?”…
“बैटरी डेड हो गयी थी” इतना कह गरिमा वॉशरूम चली गयी... अविनाश का गुस्सा अब सातवें आसमान पर है और जैसे ही गरिमा वॉशरूम से बाहर निकली उसने कहना शुरू किया... “पता है तुम्हे, टाइम क्या हो रहा है... अब तो तुम्हारा रोज का हो गया है... बता दिया करो मैं बाहर ही खाकर चला आया करूं... ये सब तुमसे मैनेज नहीं होता तो भी बता दो मै कोई कामवाली रख लेता हूँ.. कम से कम टाइम से खाना तो मिल जाया करेगा”
गरिमा ने शान्त लहजे में कहा… “कॉफी बना दूँ, पिओगे या फिर खाना बनाना शुरू करूं ?”
इतना सुनते ही अविनाश का गुस्सा भङका उठा “तुम्हे कोई फर्क नहीं पङता... लेट आने का जरा भी अफसोस है तुम्हे! ... जब मम्मी पापा को ये पता चलेगा कि उनकी बहू रात में 8 बजे के बाद घर आती है तो क्या सोचेंगे। तुमसे पहले मै ऑफिस से आ जाता हूँ और तुम आराम से अब आ रही हो... ऊपर से मेरे बातों का जवाब भी नहीं दे रही हो... हाँ जवाब क्यों दोगी, तुमने तो शादी से पहले ही जॉब करने का फैसला कर लिया था ...”
अबकी गरिमा ने सधे हुए लहजे में कहा “हाँ, जॉब करने का फैसला मेरा था उसके लिए तुम्हारी इजाजत भी ली थी.. पर शादी करने का फैसला तो हम दोनों का था ना… तो इसे निभाने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ मेरी है... क्या जरूरी है कि लेट होने पर ये हंगामा किया जाए... तुमने कभी ये जानने की कोशिश भी की है मुझे लेट कैसे हो गया... कहीं मैं किसी दिक्कत में तो नही हूँ... अगर किसी रोज मै घर वापस ना आउँ तो तुम यहां सुनाने के लिए बैठे रहना..  (थोङा संजीदा होते हुए) और ज़रा ये सोचो कि किसी रोज तुम घर नही लौटे तो क्या होगा ...तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारें बगैर इस घर का क्या होगा.... मेरा क्या होगा और माँ बाबू जी का क्या होगा जो गांव में हर महीने तुम्हारे भेजे पैसे के इन्तजार में रहते हैं” कहते कहते वो रूक गयी ।
अविनाश शान्त हो चुका है उसके पास ना तो गरिमा के सवालों का जवाब है ना ही कुछ कहने के लिए शब्द ...
गरिमा ने खुद को सम्भालते हुए आखिर में कहा “ये सब सिर्फ मै अपने लिए नही करती हूँ, हमारे लिए करती हूँ.. अपने परिवार के लिए करती हूँ” ।
अविनाश अभी भी शान्त है ..शायद गरिमा के इस प्रतिउत्तर से उसे हर रोज बेवजह खङे होनें वाले सवालों का जवाब मिल गया है। 

Xxxxxxxx



यशोधरा वीरोदय “यशु”
स्वतन्त्र पत्रकार / लेखक
ई-मेल: yashuvirodai08@gmail.com

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दिल्ली का दिल, कनॉट प्लेस जिसकी धढ़कने हर शाम और तेज हो जाती हैं । दिन के शोर और भागती दौड़ती ज़िन्दगी के रफ्तार में, शायद ये धढ़कने सुनाई न पङ़े पर सूरज ढलने के साथ इनमें अलग ही रिदम होती है ।
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