डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’

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हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण कविता , नाटक कथा उपन्यास तथा यात्रा वृतान्त डा. सरस जी के प्रिय विषय व अभिरूचि हो गये थे। वह एक शिक्षाविद् प्रतिष्ठित कवि एवं उत्कृष्ट साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे।

राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान से सम्मानित
डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर क्षेत्र में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के
डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’
डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’
आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था । नगर के राजा उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे। इसी संस्कारयुक्त कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था। बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री केदार नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई 1947 से नगर के प्राइमरी विद्यालय में शुरू हुआ था पास कर वह नगर के मिडिल स्कूल में दाखिला लिया था। 1955 में कक्षा 5 पास करके सरस जी ने खैर इन्टर कालेज बस्ती में प्रवेश लिया था। 1956 तक यह एक संयुक्त परिवार की शक्ल में रहा। इसी बीच 12.10.1957 को सरस जी के पिता की असामयिक मृत्यु हो गयी। उस समय सरस जी 16 साल के तथा कक्षा 11 के छात्र थे। वह श्री गोविन्द राम सक्सेरिया इन्टर कालेज में पढते थे। उनके पिता का असमय निधन हो जाने के कारण उन पर घर परिवार की सारी जिम्मेदारी आ गयी थी। उनकी मां ने बहुत मेहनत और त्याग करके उनकी अधूरी शिक्षा पूरी कराई थी। वह 1958 में सक्सेरिया इन्टर कालेज से इन्टर, 1962 में किसान डिग्री कालेज बस्ती से बी. ए. तथा 1963 में साकेत डिग्री कालेज फैजाबाद से बी.एड्. की परीक्षायें बहुत ही कठिनाइयों को झेलते हुए पास किये थे।

शिक्षा जगत के अग्रणी साधक:– 

डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर कालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे। जहां वह जून 1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था । डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक हुए। 1968 में विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल, 1970-71 में हाईस्कूल तथा 1973 में इन्टर कालेज की मान्यता मिलती गयी। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये। अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थे। वे अच्छे विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या के नयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे। 70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी।
नगर बाजार बस्ती का जनता इन्टर कालेज का विशाल परिसर उनकी अतीत की स्मृतियों के रूप में आज भी खड़ा है। यहां उनका बनवाया हुआ विद्यालय, उनके लगवाये हुये छायादार वृक्ष, उसकी हरियाली व पुष्प – पत्तियां सब कुछ डा. सरसजी की मधुर स्मृतियों को अनायास तरोताजा करती हुए हुई अंतःउर में एक वेदना की अनुभूति जगाती हैं। बस्ती जिले व नगर के क्षेत्र में उनके पढ़ाये सौकड़ो छात्र अपनी प्रतिभा का जलवा विखेरते उनकी प्रेरणा व ज्ञान की प्रतिभा से उपकृत्य हैं। बस्ती जनपद ही नहीं पूर्वांचल तथा अखिल भारतीय स्तर पर वह अपनी एक अलग पहचान बना लिये थे।
उन्होने अपने पैतृक गांव सीतारामपुर , बाद के आवास गोसाईजोत, नगर बाजार , अगौना, फुटहिया चैराहा , झिरझिरवा, महरीखांवा तथा अयोध्या धाम में जो विशाल भवन खड़ा करवाये हैं, वह उनके आज भी इस भूतल पर प्रत्यक्ष होने का एहसास कराते हैं। लगता हैं कि एक विलक्षण व्यक्तित्व उनसे सम्बंधित सभी जगहों पर आज भी यदा कदा वहां घूमता और विचरण करता दिखलाई पड़ रहा है। उनका स्थापित किया हुआ ‘‘सरस साहित्य कुटीर‘‘ आज भले और परिवर्तित रूप में एक विशाल भवन का स्वरूप प्राप्त कर लिया हो, परन्तु उनकी स्मृतियों से मुक्त कभी नहीं हो सकता है। इस स्तम्भ का लेखक आज उनके पावन हीरक जयन्ती के अवसर पर उनकी स्मृतियों में खोकर नितान्त अकेला व असहाय अनुभव कर रहा है। वह परम पिता से यह निवेदन करना अपना धर्म समझता है कि डा. सरस जी पंचभौतिक स्वरूप में भले आज इस वसुधा पर नहीं हैं, परन्तु उनके द्वारा शुरू किये गये कार्य व संस्कार सदैव उनकी पावन अस्तित्व का आभास कराते रहेंगे। आज उनकी 75वीं हीरक जयन्ती के पावन अवसर मैं उनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हॅू और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेता हू।

साहित्यिक अभिरूचि एवं यायावरी जीवन:-

 हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण कविता , नाटक कथा उपन्यास तथा यात्रा वृतान्त डा. सरस जी के प्रिय विषय व अभिरूचि हो गये थे। वह एक शिक्षाविद् प्रतिष्ठित कवि एवं उत्कृष्ट साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे। काव्य गोष्ठियों में आने जाने के कारण उनमें यायावरी प्रवृति आ गई थी। फलतः वे भारत के कोने से कोने सभी क्षेत्रों का अनेक बार भ्रमण किये हंै। 1975 में नागपुर में होने वाले प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में समलित होकर बस्ती जनपद का प्रतिनिधित्व किया था। इसके उपरान्त उन्होने कामरूप, गोहाटी, शिलांग, चेरापूंजी, जयगांव, गंटोक, कोलकाता , गंगा सागर, जगन्नाथपुरी, जमशेदपुर, गया ,वैद्यनाथ धाम, कोणर्क, नन्दन कानन,नाथद्वारा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, उदयपुर, अजमेर, जोधपुर ,आगरा दिल्ली, मथुरा, नैनीताल मंसूरी ,हरिद्वार, ऋषिकेश, काठमाण्डू, पोखरा तानसेन, दाड़ग, नेल्लौर, तिरूपति मदुरै, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, धनुषकोटि, मद्रास, कांचीपुरम, महाबलीपुरम, हैदराबाद, सासाराम, मुम्बई , नासिक, औरंगाबाद, एलोरा, देवगिरि, त्रयम्बकेश्वर, खुल्दाबाद, ओंकारेश्वर, भोपाल झांसी, मथुरा,उज्जैन, चित्रकूट, रेणकूट हरिद्वार, देहरादून ,यमनोत्री, गंगोत्री, केदानाथ, त्रजुगी नारायण, बद्रीनाथ, देवप्रयाग, जोशीमठ मैहर,पन्ना,खजुराहो, जम्बू, पठानकोट,चण्डीगढ़, अम्बाला, वैष्णवदेवी, शिमला, चम्बा, डलहौजी, कुल्लू, मनाली, टनकपुर कांगड़ा, मैसूर ,द्वारका, पोरबन्दर, सोमनाथ, जूनागढ़, अहमदाबाद, माउन्टआबू, बडोदरा ,उज्जैन,नरायण सरोवर भुज, बंगलौर, तिरूवन्तपुरम, गोवा, कांगड़ा मैसूर, कालीकट, उदुपी, उड़मंगलम तथा वृन्दावन गार्डन आदि स्थलों को अनेकों बार भ्रमण किया है। जिनका पूरा वृतान्त भी दो भागों में लिखकर प्रकाशित कराया है।
डा. सरस जी ने वाराणसी के काशी विद्यापीठ से ’’बस्ती के छन्दकार’’ विषय पर डा. केशव प्रसाद सिंह के निर्देशन में पी.एच .डी. की उपाधि अर्जित की है। जिसमें बस्ती जिले वर्तमान में बस्ती मण्डल के 250 वर्षों के विखरे पड़े साहित्यिक बृतान्तों को एक में संजोया है। इसे दो भागों में प्रकाशित कराया गया है। इसमें लगभग 100 कवियों को स्थान दिया गया हैं आधे से ज्यादा कवियों को सांगोपांग वर्णन तथा उपलब्ध रचनाओं का एक एक नमूना प्रदर्शित करते हुए चित्रित किया गया हैं सामग्री के अभाव में लगभग आधा शतक कवियों का संक्षिप्त उपलब्धियां तथा परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस परिचय के आधार पर भविष्य में काम करने वाले अध्येता को काफी सहुलियत होने का अनुमान किया गया है। डा. सरस पचीसों बार आकाशवाणी के गोरखपुर तथा लखनऊ के केन्द्रो तथा दूरदर्शन पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। उन्होंने बाल साहित्य कला विकास संस्थान की स्थापना करके अखिल भारतीय बाल साहित्यकार सम्मेलन करके 50 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के बाल साहित्यकारों को सम्मानित किया है। साथ ही ‘‘बाल सेतु’’ नामक त्रयमासिक पत्रिका प्रकाशन भी किया है।

प्रकाशित पुस्तकें:–

 गूंज, नौसर्गिकी , विजयश्री, बलिदान, मधुरिमा, बासन्ती, वृतान्त, संकुल, सौरभ,  जय भरत, विवेकानन्द, बस्ती जनपद के छन्दकारों का योगदान भाग 1 व 2, साहित्य परिक्रमा यात्रा वृतान्त भाग 1 व 2 ।
अप्रकाशित बालसाहित्य:- 
नेहा, स्नेहा, जलेबी, बाल प्रयाण, बाल त्रिशूल भाग 1, 2 व 3 , विवेकानन्द, बाल बताशा, पुलु-लुलू झॅइयक झम, गाबड़गिल, चरणपादुका, बाल कथाएं ।
अप्रकाशित पुस्तकें:-
चन्द्रगुप्त (महाकाव्य) , क्षमा, प्रतिशोध, नगर से नागपुर, बस्ती जनपद के छन्दकार भाग 3 विषपान, छन्द बावनी आदि।
डा. राधेश्याम द्विवेदी ,
पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी ,
पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा,
Email: rsdwivediasi@gmail.com

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हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण कविता , नाटक कथा उपन्यास तथा यात्रा वृतान्त डा. सरस जी के प्रिय विषय व अभिरूचि हो गये थे। वह एक शिक्षाविद् प्रतिष्ठित कवि एवं उत्कृष्ट साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे।
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