तुम बिन जीना सीख रही हूँ
तुम बिन जीना सीख रही हूँ ,
दुःख को पीना सीख रही हूँ ।
यादें तेरी रूलाती मुझको ,
झूठा मुस्काना सीख रही हूँ ।
हूक उठे दिल मे जब कोई ,
उसे दबाना सीख रही हूँ ।
ख्वाबों की बातें करते थे ,
सच को सहना सीख रही हूँ ।
एक दूजे को खूब मनाया ,
दिल को मनाना सीख रही हूँ ।
प्यार मे हँसना तुमसे सीखा ,
प्यार मे रोना सीख रही हूँ ।
तुझको पाना हैं नामुमकिन ,
पा कर खोना सीख रही हूँ ।
तुमने जबसे साथ है छोड़ा ,
तन्हा चलना सीख रही हूँ ।
यह रचना पुष्पा सैनी जी द्वारा लिखी गयी है। आपने बी ए किया है व साहित्य मे विशेष रूची है।आपकी कुछ रचनाएँ साप्ताहिक अखबार मे छप चुकी हैं ।
मानसिक व्यथा का सुंदर चित्रण.
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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