कितनी सीता: कितनी अग्निपरीक्षा : कितनी भू-समाधि

SHARE:

क्यों प्रसन्नता देती है भरी उमस में बारिश की ये फुहार क्या है वह तत्व जो आत्मा को प्रसन्न कर देता है तमाम भौतिक दुखों के बावजूद प्रकृति के उपमान, उपमेय

कितनी सीता: कितनी अग्निपरीक्षा : कितनी भू-समाधि 

रास्ते पर डिवाइडर के बाँयीं तरफ सड़क के किनारे -किनारे चलने और  जब तक गन्तव्य के लिए कॉस न कर ले तब तक अन्यमनस्क और अपूर्ण मनःस्थिति की आदी सीता इस इन्तज़ार में चलती चली जा रही थी कि कब यातायात का प्रवाह थो ड़ा विराम ले और कब वह जल्दी से सडक क्रास कर ले और फिर चलती रहे निश्चिन्‍त तब तक जब तक कि मंज़िल तक न पहुॅंच जाए । लेकिन यातायात का प्रवाह था कि ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा था, ठीक उसी तरह जिस तरह उसके जीवन में मोड़ मुड़ने की ऐसा उहा-पोह की स्थिति पैदा हो गई थी । समझ नहीं पा रही थी सीता कि कब मुड़े और मुड़े तो किस मोड़ मुड़े लेकिन उसे पता हो कि मुड़ने का चयन करना तो है ही । उसके जीवन में अपनों ने ही ऐसा वैचारिक यातायात प्रक्षेपित किया था कि उलझ कर रह गई थी सीता की सोच, उसकी निर्णय लेने की क्षमता । खोकर रह गई थी उसी में सीता, मंज़िल की ओर जाने वाली राहें और खुद मंज़िल भी, सब कुछ होते हुए भी विचारों की एकतरफा लडा़ई और उससे भी बड़ी चुनौती खुद से खुद की लड़ाई- क्यों ! क्या हासिल होगा ! और कब तक  यही तो नहीं तय नहीं कर पा रही सीता । फिर भी चलना तो मजबूरी है । रोज़ सुबह, शाम, दिन और रात का चक्र प्रवाहमान है । रोज़ निकलना है जीवन के ढर्रे को चलाने के लिए और रोज़ वापस आना है अगले दिन जाने के लिए । आठ साल से अपने पति से परित्यक्ता पत्नी- जिसे उसका गुनाह भी न बताया गया हो अपने उसी पति का कम से कम इसी उम्मीद में इन्तज़ार कर रही हो कि उसे दुनियावी खु़शी न मिले न सही लेकिन कम से कम संवेदनशीलता से सम्‍मान और गरिमा के साथ अलविदा तो कहता वो जिसके लिए सीता ने सब कुछ खु़शी से दॉंव पर लगा दिया था । अपनी भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा को दॉंव पर लगाकर जिससे रिश्‍ता जोडा था; आर्थिक रूप से सुरक्षा की दरकार उसे थी नहीं; उसी ने सीता से सब कुछ छीन लिया; जीने का हक भी आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता भी । 
सीता के कदम पता नहीं क्यों फिर उसी दिशा में जा रहे थे जो अन्तहीन थी । उसी पति के घर जिसमें उसे प्रवेश करने से भी रोक दिया गया था । उसी पति के घर जिसको उसने वैवाहिक औपचारिकताओं के बिना भी अपने आत्मिक सम्बन्ध के रूप में अपनाया था । उसी पति के घर जिसे अपने लिए सब कुछ चाहिए था सीता का प्यार भी उसका समर्पण भी और साथ ही उसे दूध में गिरी मक्खी की तरह निकालकर फेंक देने के बाद
अग्निपरीक्षा
तथाकथित दबाव में उतनी ही तबीयत से अपना दूसरा  आशियाना बनाने की, उसमें फूल खिलाने की जल्दबाज़ी, संवेदनशून्यता और दुनियादारी से भरपूर निर्णयों को पूरी कठोरता और अमानवीयता से प्रसन्नता के साथ यह सब कुछ अपनाने की महान क्षमता से युक्त उसी पति के घर सीता फिर जा रही थी लेकिन इस बार सीता जा रही थी उसे आईना दिखाने । 
सीता ने छूटते ही अपने पति को एक कागज का पुर्जा दिया जो उसके पति ने इस अंदाज़ में डरते-डरते लिया मानो सीता कोई बम का गोला उसके हाथ में रख रही है या कहीं सीता ने कोई छुपा हुआ कैमरा तो नहीं लगा रखा । अव्वल तो वह लेना ही नहीं चाहता था लेकिन कोई चारा न देख लेना ही पड़ा । सीता ने कहा परसां खोलना इसे । सीता के पति को शायद अंदाज़ा नहीं था कि चाहते हुए भी उस पुर्जे को देख न पाने के मायने क्या होंगे उसके लिए । अपने व्यस्ततम क्षणों के बाद वह चार दिन बाद जाकर उस पत्र को खोल सका । उसके लिए सीता इतनी ही अहमियत रखती थी यह अच्‍छा हुआ कि उसे पता चलने के लिए वह रही नहींए अन्‍यथा उस पर पता नहींए क्‍या बीतती ।  उसमें सीता ने लिखा था 
‘‘जा रही हूॅं हमेशा के लिए अपने एकतरफा वैचारिक यातायात से छुटकारा पाकर । तुम्हारे प्रति अपनी तमाम ईमानदार भावनाओं, प्रेम और समर्पण के बदले अपनी हज़ारों मौतों के बावजूद तुम्हारी सहानुभूति के लिए नहीं लेकिन तुम्हें इस बात का अहसास कराने के लिए कि मेरी अन्तिम यात्रा के एकमात्र कारण तुम हो । मेरा जीवन तुम्हारा था तुम्हारे लिए ही समाप्त हो रहा है लेकिन इससे मेरे परिवार को होनेवाले दुख के लिए गुनहगार तुम और मात्र तुम हो । तुम्हें मेरी तकलीफ का अहसास कभी भले न रहा हो, मैंने तुम्हें किसी और के सामने अपनी मौत का एकमात्र कारण नहीं बताया है लेकिन वास्तविकता तुम्हारे सामने लाना मेरे शारीरिक अन्त का एकमात्र लक्ष्य है । तुम्हें फर्क आज नहीं तो बीस पच्चीस साल बाद पड़ेगा लेकिन अगर मैं सच हूँए मेरे रोम.रोम में सच में ख़ून की ऑंसुओं की नारकीय पीड़ा एक एक क्षण प्रवाहित रही हैए और उस पीड़ा में तुम्‍हारे प्रति अपने विवश प्रेमए स्‍नेह और समर्पण की पराकाष्‍ठा है तो असर पड़ेगा ज़रूर और उस दिन तुम प्रायश्चित के लिए उन सब से जो मेरे हैंए मेरा परिवारए कुछ एक शुभचिन्‍तक ;तुम तो न कभी मेरे थे न तुमने मुझे अपना माना होगाए तुम्‍हारे लिए शायद मैं एक कमोडिटी ही थीद्ध जो चाहते थे कि मैं दीर्घायु रहूँए अपनी तमाम क्षमताओं के साथ उनके सपनों को पूरा करुँए कुछ नहीं तो कम से कम अपने जीवन को सुखीए सार्थक और समृद्ध बना सकूँ और वे ख़ुश होतेए मात्र मुझे ख़ुशए सुखी और संतुष्‍ट देखकर माफ़ी मॉंग लेना जिनके साथ तुमने भावनात्मक बेरूखी दिखाई हो । हॉं मैं तुम्हें माफ़ करके जा रही हूॅं फिर कभी तुमसे या किसी और से भी कभी न मिलने के लिए । तुम्‍हारी समझ क्‍या हैए ये तुम्‍हारी तरफ़ से समझने की कोशिश की है इन लाइनों मेंए हो सके तो समझाना ख़ुद को कि तुम ऐसे क्‍यों होए और कैसे हो सकते हो ! 
तोड़ सकता हूॅं अनमोल एक और दिल का रिश्‍ता 
भावनाएॅं ओस सी भी बेमानी हैं यथार्थ के आईने में
तोड़ दी गहरे प्यार.समर्पण के मोतियों की माला
दिल की नाज़ुक डोर ज़ंजीर है व्यवहारिकता के आईने में
क्यों कर याद करुॅं प्राण समेटे भितर.तोते को
जब टँगे हों सजावट के तोते कईए मेरे दीवानखाने में’’

सीता के पति की व्यवहारिक मानसिकता ने उसे इसको भी सच मानने नहीं दिया । फँसने के डर से उसने सीता के बारे में पता करने की कोशिश भी नहीं की । और अचानक एक दिन किसी से उसे पता लगा कि सीता अब इस दुनिया में नहीं रही और उसकी मौत का कारण भी किसी को पता नहीं क्योंकि वह इस शहर से पहले हमेशा के लिए जा चुकी थी । सीता ने सड़क यातायात पार करने के अपने एकतरफा गमन की प्रवृत्ति को ही अंगीकार कर उसे आत्मसात कर लिया था। हॉं उसका पति कुछ दिनों की भयजनित उदासीनता के बाद आजकल फिरअपनी प्रसन्न और निश्‍चिन्‍त रहने की प्रवृत्ति का वरण कर चुका है ।और आखि़रकार एक और सीता अपने लड़की होने बल्कि उससे भी अधिक संस्कारवान लड़की होने, एकात्मक होने और एक मर्द के प्रति अत्यधिक ईमानदारी से समर्पित होने के अपराध में मर्द-औरत के स्वार्थ भरे रिश्‍ते की बलि चढ़ गई ।

यह वृत्‍तान्‍त जो किन्‍हीं पन्‍नों में लिखी कहानी थीए वृत्‍तान्‍त थाए काल्‍पनिक या पौराणिक थाध्थी कुछ पता नहीं । पता नहीं कहॉं से रद्दी में एक और सीता को ही मिल गई थीए जिस पर अपना ही नाम अंकित देखकर सीता ने सहज उत्‍सुकता से  उठा लिया था और उसे अपने पास रख लिया थाए कभी रिक्‍त समय मिल जाने पर पढ़ने के लिए । कहने की आवश्‍यकता नहीं कि सीता ने उसे अवश्‍य पढ़ा होगा ।उस पत्र पर दिन, तारीख और समय भी अंकित था 1240-100 ;पीएमद्ध 20।10।2008 ।
और जब आज जब कुछ ज्‍़यादा ही लड़कियों द्वारा आत्‍मसंघर्ष से जूझनेए और अन्‍ततरू स्‍वयं को समाप्‍त कर लेने की विवशता की घटनाओं को देख सुन रही है सीता तो वह क़ागज़ का पूरा पुर्जा ऐसे ऑंखों के सामने तैर जाता है जैसे कोई जीते जी अपनी विवशता की कहानी कह रहा होए वह पुर्जा उस सीता की गुहार सुनाता हैए बताता हैए मुझे बचा लोए हालांकि मुझे जीवन की कोई चाह नहींए भौतिकता के सुख.साधनों के प्रति कोई विलासिता नहींए मेरा अपना स्‍वस्‍थ दिलए दिमाग़ और मस्तिष्‍क है । भगवान का दिया हुआ सुंदर सधा हुआ विवेक भी है । मैं भी देशए समाज और परिवार का एक उपयोगी घटक साबित हो सकती हूँ लेकिन  ष्ष्मन नहीं हैष्ष् । ये ष्मन नहीं हैष्ए  शब्‍द हाल ही में एक बच्‍ची की भी अन्तिम गुहार के रूप में मनए दिलए दिमाग़ को चीर गए थे । उस पिता पर क्‍या ग़ुज़री होगीए जिसने अपने लिए छोड़े संदेश में अपनी बेटी के ये शब्‍द सुने होंगे । वह पिताए समाज हम और आप उस बच्‍ची और लाखों उस जैसी बच्चियोंए लड़कियोंए महिलाओं के मन  को इतना मज़बूत क्‍यों नहीं
पुष्पलता शर्मा
पुष्पलता शर्मा
बना पाए कि इस मन को मोड़ कर हवाई जहाज़ का खिलौना बनाकर उड़ाकर फेंक सके और एक नई ताक़त और मज़बूती के साथ अपने लिए न सही अपने अपनों के लिए 25 प्रतिशत ही सहीए सहजता से अपने जीवन  को संचालित कर सकें । कहीं हम एक समाज के रूप में बुरी तरह से असफल हुए हैं । हर मामलों में ऐसा नहीं लगता कि स्‍वयं को खत्‍म कर लेने का जोखिम उठाने का विचार सिर्फ उस एक पल का उतावला निर्णय हो । कभी.कभी यह निर्णय पॉंचए दस नहीं पन्‍द्रह और बीस साल तक के सतत एकतरफ़ा आत्‍मसंघर्ष के बाद इस रूप में अन्‍ततरू परिलक्षित होता दीखता है । जि़म्‍मेदारी किसकी हैए किसकी होनी चाहिएए इस सब से जिसका जो प्रिय गया हैए वह वापस नहीं आ जाता । यहॉं लड़कियॉं ही नहींए लड़के भी इसी मनो‍वृत्ति का शिकार होते हैंए इसके उदाहरण भी कम नहीं हैं ।
इस श्रेणी में चार वर्ग ज्‍़यादा प्रभावी तत्‍व के रूप में होते हैं जिनमें दो तो प्रभावित होते हैं और  एक  प्रभावी होता है तो एक ;समाजद्ध  अपरोक्ष रूप से प्रभावित भी होता है और प्रभावित भी करता है । प्रभावित तो ऐसा व्‍यक्ति ख़ुद जो ऐसा निर्णय करता हैए दूसरा उससे जुड़े प्रियजनए परिजनए दोस्‍त और शुभचिन्‍तकए तीसरा वह व्‍यक्ति या कारण और चौथा समाज  सब होते हैं और इसके साथ अपरोक्ष रूप से मानवीयता सिसकियॉं लेती हैंए जो सुनायी तो नहीं पड़तींए लेकिन अपनी चपेट में मानव समाज के छोटे.छोटे मोतियों जैसेए ऐसे कितने ही मनों को कब कैसे और किस तरह परास्‍त करके आत्‍मा और शरीर से भी रहित कर देती हैंए और उस माला के आधार धागे में किस तरह की खाईए ख़ालीपन के खाके बना देती हैए  यह ऑंकड़ें  बता देते हैं आत्‍म.हनन के । 
आज सीता के सामने यही सब बातें उमड़.घुमड़ रही है । बार.बार उस परचे की इबारत ऑंखों के सामने घूम रही है । क्‍या उस वाली सीता.पता नहीं काल्‍पनिक या यथार्थ का राम ; राम तो नहीं था वहए लेकिन उसके लिए तो राम ही होगा शायद । क्‍या कर रहा होगाए क्‍या विचार होंगे उसके आज । अगर ऐसा सच ही कोई होताए तो क्‍या उसे कोई पछतावा होगाए क्‍या उसे अहसास हुआ होगा कि रिश्‍ते होते क्‍या हैंए विश्‍वास क्‍या होता है और उसको निबाहना किसको कहते हैं । स्‍वार्थ और दायित्‍व की परिभाषा क्‍या है । उस परचे के अलावा कुछ एक पन्‍नों पर दो लाइनें और लिखीं थींए जो सीता की ऑंखों के आगे झूल रही थीं.   

बार-बार पूछता है वो मेरी वफा का सबब,
तुम हीए बेवफ़ा क्यों नहीं हो जाते !
बेवफ़ा होना कितना मुश्किल हैए कैसी विवशता है ख़ुद की निष्‍ठा को न बदल पाने की यह तो राजा हरीशचन्‍द्र बता पाते कि देशए काल और समय के नियमों से बद्ध होकर पैसे के अभाव में नज़रें बचा कर ख़ुद के पुत्र का शवदाह करना उनके लिए क्‍या और क्‍यों मुश्किल था । सत्‍य और असत्‍यए कृत्‍त्‍य  और अकृत्‍त्‍य में इतना असमंजस क्‍यों । दीपावली पास आ रही है । सीता के मन में यह विचार भी आ रहा है कि अभी विजयादशमीध्दशहरा  बीते  कुछ ही दिन बीते होंगे । भगवान रामए सीता के साथ रावण के संहार के बाद जब अयोध्‍या लौट रहे होंगे शायद 21 दिन जैसा कि खगोलीय घटनाओं के गणन के बाद प्रमाणित हो तो चुका हैए लेकिन गहन अध्‍ययन और लाखों प्रामाणिक ग्रन्‍थों के नष्‍ट.भ्रष्‍ट कर दिए जाने के परिणामस्‍वरूप संशय है कुछ बुद्धिजीवियों कोए कोई बात नहींए सबको अपनी.अपनी तरह से सोचने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार अज्ञान या अनभिज्ञता का सहारा लेकर दूसरों पर थोपा नहीं जाना चाहिए । हॉं तो सीता यह सोच रही थी कि 21 दिन लंका से अयोध्‍या पैदल चल कर पहुँचने में लगते हैंए उस हिसाब से राम और सीता कितना समय साथ बिता पाए होंगे । 21 दिन यह और अयोध्‍या में राम के राजतिलक के बाद धोबी की लोक.आलोचना से राम और सीता के दूर हो जाने के ;संयुक्‍तद्ध निर्णय लेने के बीच ! उस बीच भी सारे लोकोपचार में लगने वाले समय के बीच कितना समय दोनों को मिला होगा मात्र एक दूसरे के लिए । राम का वनवास देखें तो एक बार हुआ लेकिन राम और सीता का वनवास उतनी ही बार हुआ जितनी बार सीता वनवास हुआ । पहली बार सबसे छोटा वनवास माता कैकयी द्वाराए क्‍योंकि उस समय उनके पति श्री राम उनके साथ थेए तो वह सीता के लिए वनवास होते हुए भी वनवास नहीं था । दूसरी बार उससे बड़ा वनवास जब रावण ने उनका हरण किया और कैद कर दिया  लंका में । इसके बाद सीता की अग्नि.परीक्षा । सीता ने राम से नहीं पूछा और न ही अग्निपरीक्षा देने को कहा कि जिस बीच वह लंका में बद्ध रहीए उस दौरान के समय के लिए राम सफाई दे और अग्निपरीक्षा भी दे । पवित्रता के मायनेए मानक और कसौटी बहुत अलग थेए हैं और रहेंगे भी सदा । और  तीसरी बार जब राम ने उन्‍हें प्रजा के हर घटक यानी अयोध्‍या के हर नागरिक यानी एक धोबी के विचार के अनुरूप राजा के रूप में अपनी रानी का त्‍याग किया और अन्तिम बार जब सीता ने इन सब वनवासों के प्रति.उत्‍तर में धरती माता के सीने में समाकर स्‍वयं को शरीर रूप से हमेशा के लिए अयोध्‍या से अदृश्‍य कर दिया । शायद अब की सीता अंतिम बार यह कहती कि अब किसको वनवास दोगे राम घ् क्‍या मैं सिर्फ़ त्‍यागने के निमित्‍त हूँ घ् और कितनी बारए और कितनाए त्‍यागोगे मुझे घ् लेकिन वह रिश्‍ता सतयुग के राम और सीता का थाए आज की सीता और उसके कथित राम का नहीं । सीता का त्‍याग था तो राम का भी त्‍याग था । आज भी राम और सीता यानी सीता.राम पवित्रतम रिश्‍ते का सर्वोत्‍कृष्‍ट दृष्‍टान्‍त है बिना किसी धोबी के संशय के । वह भी तब जब आज धोबी के बेहद प्रसंस्‍कृत रूप अधिकाधिक संख्‍या में  समाज में यत्र.तत्र सर्वत्र बिखरे हैं  । हालांकि आज भी लोग तमाम बातें कहते हैंए लेकिन सीता के चरित्र के बारे में वे बातें नहीं होतीं । कुछ यूँ होती हैं कि सीता ने लक्ष्‍मण रेखा क्‍यों पार कीए न करती तो  रावण उनका हरण नहीं कर पाता । अग्निपरीक्षा तो सीता को भी देनी पड़ी थीए आप किस खेत की मूली हैंए  लोकनिंदा में बड़ी ताकत होती हैए राजा राम को भी अपनी सीता जैसी पत्‍नी को त्‍यागना पड़ा था आदि.आदि । लेकिन कभी सीता की गरिमा पर न ही सतयुग का रावण और न ही आज के रावण अंश मात्र भी संदेह का बीज भी अपने विचार में ला सके । उनकी प्रज्ञा को प्रणाम करने का मन करता है । राम के चरित्र से सीता की पहचान राम के अभिन्‍न अंग के रूप में सतयुग से लेकर आज हज़ारों वर्षों बाद तक भी अमिट है । अगर राम ने सीता की तरह ही स्‍वयं भी त्‍याग का जीवन जीकरए वह भी महलों में रहते हुए भी न निभाया होता तो समाज और जनमानस सीता को वह स्‍थान नहीं दे पाता । नारी की गरिमा की जि़म्‍मेदारी नारी से ज्‍़यादा पुरुष की हैए यह सत्‍य कालातीत है लेकिन इस तरह से बिसरा दिया गया है कि नारी की गरिमा का मानसिक हनन एक सामाजिक अपचेतना का अंग बन गया है और अपसंस्‍कृति में एक बच्‍चीए किशोरीए युवतीए महिलाए बुज़ुर्गा कब मात्र एक योनी बनकर रह गई पुरुषों के लिएए यह उन्‍हें भी पता नहीं चला होगा क्‍योंकि उनको तो राम के उत्‍कृष्‍ट चरित्र का पर्याय भी कभी समझ नहीं आया होगाए जो उन्‍होंने स्‍थूल तौर पर लियाए कालान्‍तर में उसे ही अपनी पीढि़यों को दिया ।  लेकिन आज भी हमारे आपके आस.पास सीता जैसे चरित्र मिलते हैंए हम उनके साथ यही प्रज्ञा भावना गरिमा  के साथ रख सकें तो इन अग्निपरीक्षाओं का अन्‍त हो सकता है  । हालांकि चारित्रिक पतन तो हर स्‍तर पर हुआ हैए लड़कियॉं भी सीता न रही और पुरुष भी राम नहीं रहे । बल्कि उन्‍हें न तो सीता की पहचान है और न स्‍वयं कीए राम के चरित्र की तो बात ही अलहदा है । 
अचानक मंदिर के घण्‍टे की आवाज़ से सीता का ध्‍यान भंग हुआए सांझ होने जा रही थीए दीया.बत्‍ती का समय हो रहा था और न जाने सीता कितनी देर से इसी वैचारिक जंग में योद्धा बने विचारों की तलवार ताने हुए थी । सीता कभी.कभी सोचती कि काश इन विचारों को क़ागज़ पर ही उतार लिया होताए एक कहानी या लेख तो बन ही जाता ।  लेकिन अपने इस शौक को न जाने कब से तिलांजलि दे चुकी है सीता । अब तो वह अपने परिवार के सुख दुख में ही इतनी रमी है कि कितनी ही कहानियॉंए किस्‍से और कविताऍं उसके दिमाग  में जन्‍म लेती हैंए और वहीं जाकर किसी कोने में प्रसुप्‍त हो जाती हैं । अगर इनसान के दिमाग की कोई चिप होती तो सीता के दिमाग की चिप की मेमोरी से कोई एक फोल्‍डर से एक वृहद रचनावलि तैयार की जा सकती थी । 
 रात से फिर सीता उसी धागे के सिरे को पकड़कर दिमागी दुनिया में गोते लगा रही है कि ऐसा क्‍या होता होगाए कैसे सम्‍भव है धोखे से ही किसी पर थोप देना अपने  सुविधा रूपी जीवन के चयन का फैसला । केन्‍द्र में वही रद्दी में मिले पन्‍नों में दर्ज सीता को खोजता विश्‍लेषण चल रहा था । कहीं वह सच तो नहीं था । 2008ए  इन्‍हीं दिनों की बात होगी बीस अक्‍तूबर । अगर वह कहानी नहीं सच की किसी डायरी की इबारत होगी तो कैसी होगी वह सीताए जो रही तो नहीं । काश मैं जान पाती अपनी सहनाम धारी  को । काश उसमें उसके राम का भी कोई पता.ठिकाना होताए तो वह ज़रूर कोशिश करती उससे मिलने कीए उसे देखने की और उस सीता को उसमें कहीं ढूँढने की । उससे पूछतीए शायद वह कोई लेखक होए जिसकी वह सीता एक कल्‍पना मात्र हो । लेकिन न जाने क्‍यों सीता को आये दिन के ऐसे घटनाक्रम में वही सीता दिखाई पड़ती हैए लड़कियों में अधिक और लड़कों में कम । आत्‍महत्‍या की घटनाओं में लड़कों का भाव अधिकतर पाने के जुनून वाला होता है और लड़कियों में भूल न पाने की विवशता का । 
पर सवाल इसी ऊहा.पोह से जाकर फिर टकराता है कि क्‍यों मुश्किल नहीं असम्‍भव है कुछ लोगों के लिए धोखा देना और क्‍यों हर दिन का खेला है कुछ लोगों के लिए अपने अपनों से भी झूठ बोलना उन्‍हें धोखा देना उनके भरोसे को धीरे.धीरे योजनाबद्ध तरीक़े से तोड़ना । क्‍यों हम एक बारए सही समय परए सही तरीक़े से सच बयान नहीं कर देते । क्‍यों हम इन्‍तज़ार करते हैं कि हमारे धोखे को दूसरा अपने आप समझ जाए और ख़ुद ही दूर चला जाए हम से और हमारे ऊपर आरोप भी न आए धोखे का । बड़ी शातिराना है यह सोच । मनोवैज्ञानिक कारण तो हैं ही । जब हम लम्‍बे समय तक एक ही स्थितिए बातए या व्‍यक्ति के बारे में सोच विचार करते हैंए करते ही रह जाते हैंए उसके सवाल.जवाब हमेशा एकतरफ़ा ही होते हैंए जो तत्‍व या व्‍यक्ति इससे जुड़े हैं वे क्‍यों दूसरे व्‍यक्ति को समुचित रूप से सूचित करने की जि़म्‍मेदारी से कतराते हैं । कोई भी इतना मूर्ख तो नहीं होता कि किसी अपने को कब कैसे और किस बात से तकलीफ़ होगीए यह कभी भी समझ ही न पाए । कोई अपनी अंतहीन कोशिश से शुरुआत करकेए हताशा के समुद्र तट पर पहुँच जाए और दूसरे को उस पहली सीढ़ी का भी अहसास न हो ।  आत्‍महत्‍या जैसे मामलों को सुनकर दुख तो हमेशा ही होता है लेकिन वह दुख दिमाग को दही कर देता है जब कोई बुद्धिमान और विवेकशील व्‍यक्ति इसे अन्तिम विकल्‍प के रूप में चुनता है । ऐसे वक्‍त्‍ हमेशा फि़ल्‍मकार गुरुदत्‍त और संजीव कुमार हमेशा ज़ेहन में आते हैं । हम अपनी अकर्मण्‍यता से ऐसी कितनी ही प्रतिभाओं से उनके परिजनोंए शुभचिन्‍तकों और पूरे समाज एवं राष्‍ट्र को वंचित कर देते हैं । यह इतना बड़ा गुनाह है जो किसी इनसान को माफ़ करने योग्‍य तो कतई नहीं ही है । लेकिन आप माफ करो या न करोए क्‍या जो गया हैए वापस आ जाएगा घ् जाना सबको हैए दुनिया में रुकने कोई भी नहीं आया हैए लेकिन जो पुनर्जन्‍म की विचारधारा को मानता होए वह समझ सकता है ठीक तरह से कि समय.पूर्व मृत्‍यु वह भी आत्‍मघाती उसके अध्‍यात्मिक जीवन और संभावित आगामी जन्‍मों के लिए कितना विध्‍वंसकारी हो सकता है । सीता हमेशा महसूस करती कि  उस व्‍यक्ति से मुख्‍य रूप से जुड़े उसके किसी ख़ास ने ज़रूर अपना दायित्‍व नहीं निभाया हैए सही वक्‍त परए सही तरीके से बल्कि शुद्ध शब्‍दों में बेईमानी की है रिश्‍ते में उसके साथ  नहीं तो बुद्धि और विवेक इतनी कमज़ोर शै नहीं है कि किसी भी कटु सत्‍य को आत्‍मसात करके एक आत्‍मा के सफर को इस जन्‍म में ठीक तरह से मोटी.मोटी जि़म्‍मेदारियॉं संभालते हुए निभा ले जाए । 
दीपावली की सफाई करते हुए सीता का सामना फिर उन्‍हीं अतीत के रद्दी पन्‍नों से फिर हो गया है हालांकि सीता ने उन पन्‍नों को अपने स्‍वभाव के अनुरूप फिर कभी रद्दी में तब्‍दील नहीं होने दिया है । हाथ में आते ही सीता से फिर रहा नहीं गया और उसने फिर नए सिरे से उन पन्‍नों को पढ़ा । इसी क्रम में उसे उन पन्‍नों का कुछ हिस्‍सा फिर देखा । 
   "(15/11/04)" 
"अाज यकीन नहीं होता कि वह लड़की जिसने कभी किसी दोस्त या दुमन की कारस्तानियों, नीचा दिखाने की कोशिश का जवाब सिर्फ इस मुस्कराहट से दिया हो कि ऐसी भावनाओं का प्रकटीकरण केवल उस बाहरी शख्स का है लेकिन उसकी आत्मा एकदम पवित्र है, इसलिए हे प्रभु ! इन्हें माफ करना। आज वही भोली लड़की नकारात्‍मक शब्‍दों को मुँह से निकालना भी सीख गई है । चाहे किसी भी वजह से उसके व्यक्तित्व में यह व्यापक परिवर्तन आया हो लेकिन पूरी दुनिया से एक ऐसा इनसान कम हो गया लगता है जो इस लिहाज से इनसान होते हैं कि कभी किसी का भी बुरा सोचना भी उन्हें स्वयं की आत्मा और परमात्मा का अपमान लगता हो। लेकिन वह आदमी तो किसी भी तरह से बख्शने के लायक नहीं है जिसने ऐसे इनसान की जिन्दगी में आमूल-चूल परिवर्तन जबरदस्ती ला दिया हो । और शायद इसलिए उस शख्स को कभी माफ नहीं कर करना चाहिए ईश्‍वर को जिसने उसका विश्‍वास परमात्मा से भी उठा दिया है ।"

सीता पढ़ रही थी लेकिन समझ नहीं आ पा रहा था कि यह किसी लेखक की दिमाग की उपज है या किसी की मनोदशा का चित्रण । हालांकि मन और मनोदशा तो किन्‍हीं परिस्थितयों में कैसी भी हो सकती है । यह सांख्यिकीय के संभाविता के नियमों के एकदम अनुरूप हैए अनुमान तो लगाया जा सकता हैए लेकिन सटीक भविष्‍यवाणी नहीं की जा सकती । 
वे पन्‍ने कम नहीं थे । एक छोटे  उपन्‍यास के रूप में तो ढल ही सकते थे ।  पढ़ते.पढ़ते सीता तय कर चुकी थी कि उसे क्‍या करना था । 
आज लगभग दस माह बाद ग्‍यारह सितम्‍बर हैए यही वह दिन था जब सीता नाम समाहित किए वे पन्‍ने रद्दी में इस दूसरी सीता को मिले थे । वैसे तो आज ही के दिन विश्‍व मानचित्र पर अमरीका पर आतंकी हमला भी हुआ था 2000 में और एक ऐसा विध्‍वंस आया था हज़ारों लोगों के जीवन में जिसने उन जीवनों को सदा के लिए सूना कर दिया था । ये आतंकियों की जमात भी कमाल हैए सिर्फ मारनाए मरनाए काटना और कटना इन शब्‍दों के अलावा उनके लिए ख़ुदाए इनसानए मानवीयता और धर्म के कोई तीसरे मायने ही नहीं हैं । इतनी मार.काट के बाद क्‍या पा जाऍंगे ये आतंकी और ऐसी विध्‍वंसात्‍मक सोच घ् इन आतंकियों को यह बात समझ क्‍यों नहीं आती कि समाज नाम के प्‍याज़ के पूरे छिलके जिस दिन उतर जाएँगे या क्रूरता भरी इस आतंकी सोच से ज़बरदस्‍ती उतार दिए जाऍंगेए इनके खुद के लिए भी कुछ नहीं बचेगा । जिस एकात्‍म धर्म की ये बात करते हैंए जिसके लिए जेहाद करते हैंए वह भी नहीं बचेगा । स्‍थापित कुछ नहीं होगा सिर्फ विस्‍थापित होगा और यह विस्‍थापन सिर्फ मानवता के अंतिम विनाश की ओर ही ले जाएगा । ख़त्‍म हो जाएगा मानव सभ्‍यता का वजूद । 
सीता ने सोच रखा है कि आज के महत्‍वपूर्ण कार्य के बाद वह इस आतंक की इस खेती पर भी अपनी कलम चलाएगी जिसने मानव समाज को दो धड़ों में बॉट दिया एक. जो आतंक के साथ है और दूसरा. जो आतंक के खि़लाफ़ है । लेकिन यह सब बाद में । आज तो विमोचन है उसी उपन्‍यास का जो एक तरह से संकलित हैं उन्‍हीं अतीत के पन्‍नों से । सीता ने इसे अज्ञात को समर्पित किया है शायद स्‍वनामधारी उसी सीता को  । इस उपन्‍यास का सम्‍पादन भी सीता ने किया है । भूमिका भी लिखी हैए सारे घटनाक्रम का जि़क्र भी किया है और उन पन्‍नों के साथ एक विश्‍लेषणात्‍मक व्‍याख्‍या भी चस्‍पा की है । आज उन रद्दी के पन्‍नों में दर्ज सीता फिर सजीव हो उठी है और इस सीता जानती है कि कोई एक लेखकए कहानी या उपन्‍यास कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं ला सकता आज के दौर में । कबीर और तुलसी के युग बीत गए । अब ऐसे मानव भी शायद सकुचाते होंए ऐसे युग में जन्‍म लेने से । फिर भी  सीता ने भरसक यह कोशिश की है कि फिर कम से कम कुछ सीताएँ . काल्‍पनिक भी नहींए कभी अपने जीवन का एकतरफा यातायात इस तरह ढोएँ और समाजए देश तथा परिवार वंचित न हो पाऍं किन्‍हीं ऐसी अनमोल प्रतिभाओं से  । कोशिश  सीता की यह भी है इसमें कि लड़केए पुरुष चाहे  जिन आस्‍था के प्रतीकों का अवलम्‍बन करेंए नैतिकता के श्रेष्‍ठ मानकों को  सत्‍य माने या मानेए व्‍यावहारिक भी समझें या न समझेंए व्‍यक्तिवादी सोच या अवधारणा को जीयें या चार्वाक की ष्ष्ऋणं कृत्‍वाए घृतं पीबेतए यावज्‍जीवेत् सुखं जीवेत्ष्ष्  जैसी अवधारणा को ग़लत न मानेए लेकिन उन्‍हें यह याद अवश्‍य रखना चाहिए कि जिससे उनके जीवन का किचिंत भी कार्य.व्‍यापार जुड़ा हैए परिजनए मित्रए सेवकए या दुनिया का कोई भी मानवीयता का रिश्‍ता उन्‍हें अपनी ही तरह जीवित हाड़.मॉंस का एक मानव मानकर कोई भी व्‍यवहार करें । वही कष्‍ट महसूस करने का साहस करें  कि किसी दूसरे के द्वारा बलात् कुछ भी मानसिकए शारीरिकए वाचिक व्‍यवहार आपके साथ करने परए जो असहनीय कष्‍ट आपको भी होगाए उस कष्‍ट को दूसरे को बिलकुल मत दीजिए । स्‍वार्थी और आत्‍मकेन्द्रित बनना सबसे ज्‍़यादा आसान हैए थोड़ा कठिन रास्‍ता लीजिएए जो मानवता के विकास के रास्‍ते के कॉंटों को हटा सकेंए ताकि उस राह से ग़ुज़रने वाली महान आत्‍माओं की आप किंचिंत मदद कर सकें । सच मानियेए जीवन के अंतिम समय में आपको आत्‍मसंतुष्टि से कोई वंचित नहीं कर पाएगा ।  सही समय पर सही ढंग से पर्याप्‍त संवेदनशीलता के साथ अगर आप क्रिया करेंगे तो सही प्रतिक्रिया की संभावना 90 प्रतिशत रहती हैए समय चूक जाने पर देशए कालए परिस्थिति भी बदल जाती है और हम ऐसी किसी घटना के सहभागी या साक्षी न चाहते हुए बन सकते हैं जैसी इस उपन्‍यास की नायिका सीता के समक्ष प्रस्‍तुत हो गई थी । इसमें यह विश्‍लेषण भी छूटा नहीं है कि कभी.कभी आपका वास्‍ताए बिच्‍छू जैसे स्‍वभाविक जीवों की सी मानसिकता वाले लोगों से भी पड़ जाता हैए जिनका स्‍वभाव ही है काटना । आप उसका जीवन भी बचाने जाऍंगे तो भी वह काटने का स्‍वभाव त्‍यागेगा नहीं । लेकिन मानव समाज का कोई भी अंग लड़काए लड़कीए पुरुषए महिलाए परिवारए समाज जो भी कम से कम आप अपने हिस्‍से की मानवीयता को जि़न्‍दा रख सकेंए मानव का वही वर्ग सीता की उम्‍मीद का लक्ष्‍य है । 
उपन्‍यास  "मन नहीं है!" का लोकार्पण हो चुका है और इसी के साथ एक लेखिका सीता भी सालों बाद फिर से जीवित हो उठी है. उपन्‍यास में लिखी भूमिका की इन पंक्तियों के साथ

क्यों प्रसन्नता देती है भरी उमस में
बारिश की ये फुहार
क्या है वह तत्व जो 
आत्मा को प्रसन्न कर देता है
तमाम भौतिक दुखों के बावजूद
प्रकृति के उपमान, उपमेय 
समाहित हो उस रंच.मात्र क्षण में
वह क्षण जो तत्‍क्षण लगे स्‍वयं का क्षण 
चाहे फिर न रहे या छुप जाए फिर.फिर
संशय के बादलों में । 

क्या है वह सुख 
और क्यों है यह सुख,
शाश्‍वत नहीं तो 
लगे क्‍यों शाश्‍वत सा 
शाश्‍वत तो कुछ नहीं 
पर मन और आत्‍मा के धागे
गुंफित है शरीर में कुछ यूँ 
कि परम सुख अन्‍ततरू 
परमात्‍मा से मिलन का, 
व्‍याप्‍त है कुछ अंश में 
भूत में, वर्तमान में और भविष्‍य में 
चलायमान है, शाश्‍वत है
मुझमें भी 
क्या है वह सुख 
और क्यों है यह सुख । 



यह रचना पुष्पलता शर्मा 'पुष्पी' जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी आपकी विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में सम-सामयिक लेख ( संस्‍कारहीन विकास की दौड़ में हम कहॉं जा रहे हैं, दिल्‍ली फिर ढिल्‍ली, आसियान और भारत, युवाओं में मादक-दृव्यों का चलन, कारगिल की सीख आदि ) लघुकथा / कहानी ( अमूमन याने....?, जापान और कूरोयामा-आरी, होली का वनवास आदि ), अनेक कविताऍं आदि लेखन-कार्य एवं अनुवाद-कार्य प्रकाशित । सम्‍प्रति रेलवे बोर्ड में कार्यरत । ऑल इंडिया रेडियो में ‘पार्ट टाइम नैमित्तिक समाचार वाचेक / सम्‍पादक / अनुवादक पैनल में पैनलबद्ध । कविता-संग्रह ‘180 डिग्री का मोड़’ हिन्‍दी अकादमी दिल्‍ली के प्रकाशन-सहयोग से प्रकाशित हो चुकी है ।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1412,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,348,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,340,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,98,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,2,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,38,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: कितनी सीता: कितनी अग्निपरीक्षा : कितनी भू-समाधि
कितनी सीता: कितनी अग्निपरीक्षा : कितनी भू-समाधि
क्यों प्रसन्नता देती है भरी उमस में बारिश की ये फुहार क्या है वह तत्व जो आत्मा को प्रसन्न कर देता है तमाम भौतिक दुखों के बावजूद प्रकृति के उपमान, उपमेय
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLT0PozStAqWRdg5cBEzhusoRwauCoo-59w4lBFXcdxykt8Kq2O6__czJcmnEcKYuHt2T2_DOlVbv7o84EkecuyWaeUQjLXZ__oSWMg3-cRcw4W1l4UiONq6l4OgRgO7Y0q3_vyU4kc_l2/s320/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLT0PozStAqWRdg5cBEzhusoRwauCoo-59w4lBFXcdxykt8Kq2O6__czJcmnEcKYuHt2T2_DOlVbv7o84EkecuyWaeUQjLXZ__oSWMg3-cRcw4W1l4UiONq6l4OgRgO7Y0q3_vyU4kc_l2/s72-c/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2016/10/sita.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2016/10/sita.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका