जी यहीं था
जी
यहीं था
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अशोक बाबू माहौर |
कहीं नहीं गया
हाँ याद आया
रखा था
मैंने
फूल गुलाब का
तुम्हारी मेज पर,
जब तुम
चुस्कियाँ ले रहे थे
चाय की
सुबह सुबह
बैठे उस घास पर I
जी
हाँ जी
मैं सच कह रहा हूँ
मक्खन नहीं लगा रहा
अपनी ईमानदारी
जाहिर कर रहा हूँ
ताकि तुम समझ सको
आखिर ईमानदारी क्या होती है ?
रचनाकार परिचय
नाम- अशोक बाबू माहौर
जन्म -10 /01 /1985
साहित्य लेखन -हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में संलग्न
प्रकाशित साहित्य-विभिन्न पत्रिकाओं जैसे -स्वर्गविभा ,अनहदकृति ,सहित्यकुंज ,हिंदीकुंज ,साहित्य शिल्पी ,पुरवाई ,रचनाकार ,पूर्वाभास,वेबदुनिया,जखीरा आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित I
साहित्य सम्मान -इ पत्रिका अनहदकृति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५ से अलंकृति I
अभिरुचि -साहित्य लेखन ,किताबें पढ़ना
संपर्क-ग्राम-कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111
ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.com9584414669 ,8802706980
सुन्दर रचना
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