प्रीति शर्मा जैन की कविताएँ
तुम लडक़े कहलाते हो..
छलनी में छेंद की तरह आत्मा छलनी कर देते हो..जब तुम बुरा-भरा बोलते हो..
नफरत के तीर तो खूब चलाते हो,
पर भूल से भी अच्छा बोल नहीं पाते हो..
एक गलती पर इतना सुनाते हो..
पर हजार अच्छे पर तारीफ नहीं कर पाते हो..
तुम इतना क्यूं इतराते हो..,
सिर्फ इसलिए क्योंकि लडक़े कहलाते हो..
ख्वाहिश इतनी शेष रही
इतना अपमान कौन करेगा...गैर की तो हिम्मत नहीं, कोई अपना ही करेगा..
गैर को तो मैं मुंह-तोड़ जवाब देती हूं,
पर अपने ही घर में हर दिन जिल्लत सहती हूं..
अपमान के घूंट इतने पीने लगी हूं.
कि प्यास लगना कम हुई...
बस इज्जत की कुछ बूंदे बरसें..
ख्वाइश इतनी शेष रही..
प्रीति शर्मा जैन |
बस सम्मान की
न मुझे चाहत है किसी सामान की...न दुनिया भर के बाजार की..
न सैर करना आसमान की..
न दुनिया के ऐशो-आराम की...
मुझे तो ख्वाहिश है, बस सम्मान की...
बस सम्मान की और कुछ नहीं बस सम्मान की....
यह रचना प्रीति शर्मा जैन जी द्वारा लिखी गयी है . आप दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग कार्य कर रही हैं . आप , द चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी और यूनीसेफ द्वारा दी गई शिक्षा के अधिकार फैलोशिप को भी पूरा कर चुकी हैं । इसके अलावा बेस्ट रिपोर्टिंग के लिए प्रदेश के पूर्व गर्वनरों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी भोपाल द्वारा डॉटर्स ऑफ भोपाल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा कॉपीराइटिंग व कंटेंट राइटिंग वर्क से भी जुड़ी हैं ।
very well Preeti ji
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