नई सदी की हिंदी कविता

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समारोप समारंभ की मुख्य अतिथि हिंदी की चर्चित कथाकार मधु कांकरिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की कविता संवेदनहीन होती जा रही है, इसके कई उदाहरणों को उन्होंने प्रस्तुत किया। कविता अपनी पहचान खोती जा रही है, इसपर उन्होंने चिंता जताई।

नई सदी की हिंदी कविता पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
विजयपुर (कर्नाटक): 25 फरवरी 2015।
बी.एल.डी.इ संस्था के एस.बी.कला एवं के.सी.पी. विज्ञान महाविद्यालय, विजयपुर (कर्नाटक) तथा रानी चन्नम्मा विश्वविद्यालय कॉलेज हिंदी प्राध्यापक संघ के तत्वावधान में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) के सहयोग से 'नई सदी की हिंदी कविता: दशा और दिशा' विषयक द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यरनाल विरक्त मठ के संगनबसव महास्वामी जी ने दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी का उदघाटन किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भाषाएँ मनुष्य से मनुष्य को जोड़ने का कार्य करती हैं, परंतु आज भाषाएँ राजनीति का शिकार हो रही हैं। राजनेता भाषा को अस्त्र बनाकर समाज को बाँट रहे हैं। भाषा-भेद भुलाकर सारे समाज को देश की उन्नति में योगदान देना चाहिए। इसी सत्र में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के विभागाध्यक्ष प्रो। ऋषभदेव शर्मा ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि "भूमंडलीकरण के बाद बाजारवाद ने साहित्य को प्रभावित किया है। शब्द पर 'अर्थ' (वित्त) हावी हुआ है। समाज में असहिष्णुता इतनी बढ़ गई है कि स्वतंत्र साहित्यकार को अपनी मृत्यु की घोषणा करनी पड़ रही है। "प्राचार्य डॉ.के.जी. पुजारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। संगोष्ठी के संयोजक डॉ। एस.टी. मेरवाडे ने अतिथियों का स्वागत किया तथा प्रो.एस.जे. जहागीरदार ने सूत्रसंचालन किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में हैदराबाद की कवयित्री डॉ। पूर्णिमा शर्मा ने नई सदी की कविता की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालते हुए विशेष रूप से अनामिका के काव्य के संदर्भ अपने विचार प्रस्तुत किए। 'स्रवंति' मासिक पत्रिका की सहसंपादक डॉ। गुर्रमकोंडा नीरजा ने 'नई सदी के काव्य में दलित विमर्श' पर प्रवर्तन व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो। अमित चिंगले ने नई सदी की कविता में नीलेश रघुवंशी के योगदान को स्पष्ट किया। सत्र की अध्यक्षता प्रो। ॠषभदेव शर्मा ने की। द्वितीय सत्र मुक्त चिंतन का रहा, जिसमें वक्ता एवं श्रोताओं के बीच रोचक और विचारोत्तेजक संवाद हुआ। श्रोताओं के साहित्य और भाषा विषयक प्रश्नों का समाधान मंचासीन विद्वज्जनों ने किया।
 
तृतीय सत्र में विभिन्न महाविद्यालयों से आए अध्यापकों तथा शोध छात्रों ने प्रपत्र-प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ। एस.के. पवार ने की। चतुर्थ सत्र में गुलबर्गा विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष डॉ। काशीनाथ अंबलगे ने 'हिंदी काव्य: सृजनशीलता और संभावनाएँ' विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। इसी सत्र में मुंबई विश्वविद्यालय के डॉ.दत्तात्रेय मुरुमकर ने नई सदी के हिंदी काव्य पर प्रकाश डालते हुए दलित विमर्श पर चर्चा की।
 
समारोप समारंभ की मुख्य अतिथि हिंदी की चर्चित कथाकार मधु कांकरिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की कविता संवेदनहीन होती जा रही है, इसके कई उदाहरणों को उन्होंने प्रस्तुत किया। कविता अपनी पहचान खोती जा रही है, इसपर उन्होंने चिंता जताई। अध्यक्षता बी.एल.डी.इ संस्था के प्रशासन अधिकारी प्रो.एस.एच.लगळी ने की। मंच पर बी.एल.डी.इ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.बी.जी. मूलिमनी, प्राचार्य डॉ। के.जी. पुजारी उपस्थित थे। रानी-चन्नम्मा विश्वविद्यालय कालेज हिंदी प्राध्यापक संघ के सचिव डॉ.एस.जे. पवार ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी में तीन सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

प्रस्तुति: डॉ। गुर्रमकोंडा नीरजासह-संपादक 'स्रवंति', प्राध्यापकउच्च शिक्षा औ शोध संस्थान,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभाखैरताबाद, हैदराबाद - 500 004ईमेल - neerajagkonda@gmail.com

चित्र परिचय:दीप प्रज्वलन के अवसर पर। गुरु संगनबसव महास्वामी जी, डॉ। ऋषभदेव शर्मा, डॉ.के.जी. पुजारी, डॉ। एस। जी। गणी, डॉ। एस। जे। पवार, डॉ। एस। टी। मेरवाडे, डॉ। साहिबहुसैन जहागीरदार एवं अन्य।

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. संगोष्ठी के आयोजन के लिए बहुत बहुत बधाई.

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  2. आप सभी विद्वज्जनों की गरिमामय उपस्थिति ही इस संगोष्ठी की सफलता का मूल कारण है॥
    शुभकामनाएँ

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