विश्वासघात/ अखिलेश मिश्र की कहानी

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धोखा ,हिंदी कहानी

गाँव के लोग अनोखे का नाम बड़े आदर से लेते हैं।वह आदर के लायक व्यक्ति भी हैं।आज के युग में कौन इतना त्याग करता है,वह भी अपने बूढ़े माँ-बाप के लिए ! पर ददन इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हैं।उन्हें यह त्याग,त्याग नहीं बल्कि किसी के साथ घोर अन्याय लगता है
“तुम कैसे कह सकते हो कि अनोखे का त्याग उच्च कोटि का नहीं है ?” राजा ने ददन से पूंछा ।
“अनोखे ने अपनी पत्नी के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है।”
“वह कैसे ?” राजा बात पूंछते हुए वहीं बैठ गए ।
“उन्हें अपनी पत्नी को भी कुछ समय के लिए साथ में रखना चाहिए ।छह महीने तक वह पति के साथ रहे,और बाँकी छह महीने गाँव में ।यदि ऐसा संभव नहीं है तो बूढ़ा और बुढ़िया दोनों को अनोखे के साथ रहना चाहिए ।”
“घर-दुआर,खेती-बारी,नात रिश्तेदार कौन देखेगा ?” राजा ने मुँह में कुल्ले के लिए पानी भरते हुए कहा ।
किसी को अंधिया में खेती-बारी दे दें और बीच-बीच में आकर उसे देख लिया करें।”
“पुराने लोग अपना घर गाँव नहीं छोड़ना चाहते |”
“तो फिर कुछ महीने अकेले रह लिया करें |”  
राजा ने कुल्ले का पानी मुँह से बाहर निकाला और चुपचाप वहाँ से चले गए।ददन ऐसी बहस किसी के भी साथ कर सकते थे।वह सीधी बात करते थे,चाहे किसी को बुरा लगे या अच्छा ! उनके इसी स्वभाव के कारण गाँव के पेलन्द दुबे से उनकी कभी नहीं पटी |पट्टीदार होते हुए भी परिवार में खाना-पीना,आना-जाना सब कुछ बंद था |
वैसे पेलन्द दुबे भी कुछ कम नहीं हैं ...............वह बड़े गुस्सैल और छिरिहा हैं |  
नोखे नौकरी में हैं और घर से बाहर दूसरे जिले में पोस्टेड हैं।उनके बूढ़े माँ-बाप गाँव में रहते हैं और उन्हीं की सेवा के लिए वह अपनी पत्नी को शुरू से गाँव में ही रखे हुए हैं।अनोखे की पत्नी शीला भी बड़े ही सीधे-साधे स्वभाव की है और पति से बहस करना,जिद करना अपने पतिव्रत धर्म के खिलाफ समझती है।यद्यपि सभी स्त्रियॉं की तरह उसकी भी चाहत होती है कि वह अपने पति के साथ ही रहे ।
शीला के माँ-बाप भी यही चाहते हैं पर वह अनोखे पर ज्यादा दबाब नहीं डालना चाहते।वह जानते हैं कि बेटी को वह ससुराल के लिए बिदा कर चुके हैं और अब उसके घर के मामले में उन्हें एक सीमा से ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए। 
मेरा बेटा श्रवण कुमार जैसा है।जब लोग उसकी प्रशंसा करते हैं,तब मेरा सीना फूलकर दुगुना चौड़ा हो जाता है।मेरे शरीर में एक अलग ऊर्जा का संचार होने लगता है और मैं मारे खुशी के कांपने लगता हूँ।मेरे ढीले पड़े दो दाँत हिलने लगते हैं ..........खुशी के मारे !..........सच कहता हूँ |ऐसे समय मेरी बूढ़ी कमजोर आँखे खुशी के आँसुओं से डबडबा जाती हैं और मैं परदनी से जल्दी ही आंसुओं को पोंछने लगता हूँ|यह समय मेरे लिए बहुत ही भावुकता भरे होते हैं|
मैं तो उससे अक्सर कहता हूँ कि बहू को भी अपने ही साथ रख,पर वह कहता है कि इस उम्र में वह अपनी बूढ़ी माँ से बर्तन चूल्हा नहीं धुलवाएगा ।
“आप बड़े भाग्यशाली हैं,नारायण जी ! मेरा बेटा तो कभी हमारी सुध ही नहीं लेता है।दो महीने में एक चिट्ठी आ जाती है,बस !”  बंसी ने कहा ।
आप सही कहते हैं कि यह सब भाग्य और संस्कार की बात है।” नारायण के मुँह से अचानक निकल गया |
अखिलेश मिश्र 
मैं सुबह उठकर दातून करना खतम ही करता हूँ कि मेरे लिए चाय और बिस्किट आ जाता है। स्नान और पूजापाठ भी मैं जल्दी ही कर लेता हूँ|इसके बाद मेरा नाश्ता होता है।मेरे सारे काम समय पर होते हैं और शीला कभी दो मिनट भी लेट नहीं होती है।वह परछाई की तरह मेरा ख्याल रखती है|भगवान ने मुझे कोई लड़की नहीं दी है,पर शीला मेरे लिए बेटी से भी बढ़कर है।उसको देखकर मुझे अपनी माँ की याद आ जाती है ..............सच !
महीने की एक तारीख को अनोखे अपनी तनख्वाह का सत्तर प्रतिशत पैसा घर भेज देता है।मैंने कई बार मना किया है पर वह मानता ही नहीं है।वह चाहता है कि पैसे का हिसाब-किताब मैं ही रखूँ |
खर्चे के बाद बचे पैसे को मैं बैंक में जमा कर देता हूँ।मुझे अपने बेटे पर गर्व होता है।कभी-कभी सोचता हूँ कि मैंने पिछले जन्म में जरूर कई अच्छे काम किए होंगे।वरना आज्ञाकारी,सेवक पुत्र और आज्ञाकारी,सेवा करने वाली बहू आज के समय में किसको मिलते हैं।आजकल की नई पीढ़ी के लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को व्रद्धाश्रम में छोड़ देते हैं और उसका खर्चा भेजते रहते हैं।
हे भगवान !................कितना कष्ट पहुँचता होगा ऐसे बूढ़े माँ बाप को !लोग सही ही कहते हैं कि अपना पुत्र पैदा हो जाने के बाद इंसान भूल जाता है कि वह भी किसी का पुत्र है।
ऐसी ही संतुष्टि की भावना के कारण मेरा स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन सुधरता जा रहा है।मैं रोज पूजा करते समय भगवान से अगले जन्म में भी अनोखे जैसे पुत्र और शीला जैसी बहू की कामना करता हूँ।मुझे मुक्ति नहीं बल्कि अपना पुत्र अनोखे और बहू शीला चाहिए..............हर जन्म में !
शीला हम लोगों की सेवा बहुत मन लगाकर करती है पर मैं समझ सकता हूँ कि वह कितना बड़ा त्याग कर रही है |हर स्त्री अपने पति के साथ ही रहना चाहती है|आखिर माता सीता भी कहाँ तैयार हुई थी,महल में सास ससुर के साथ रहने के लिए ?वास्तव में सबसे बड़ा त्याग शीला ही कर रही है।
कर्तव्य भी एक प्रकार की विवशता ही है,पर शीला अपना कर्तव्य खुशी-खुशी निभा रही है!
इस बार अनोखे कई महीनों के बाद घर आया है,पर वह कुछ गंभीर और शांत लग रहा है।लगता है कुछ नौकरी की समस्या है ? राजकाज में कुछ बाधा परेशानी चलती रहती है,उसे यह समझना चाहिए|सरकारी नौकरी में बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं रहती है,कोई पराइवेट की चाकरी तो है नहीं !उसको परेशान देखकर शीला भी बेचारी परेशान हो जाती है। 
शीला से जब रहा नहीं गया तब उसने पूंछ ही लिया “एक तो इतने समय के बाद आए हैं और ऊपर से चुप-चुप हैं ।क्या बात है ?.............कुछ परेशानी है क्या ?”
“नहीं................कोई परेशानी नहीं है।”
“फिर कुछ हंसिए बोलिए !कैसा चल रहा है,आपके वहाँ ?”
“बस ठीकठाक ही है !”
“आज बच्चों को आप पढ़ा दीजिए !आपका मन भी बदल जाएगा ।”
“क्या तुम आज कुछ भी अनाप-शनाप बोल रही हो ? मैं थका हुआ हूँ और तुम्हें हँसी मजाक सूझ रही है।”
शीला चुप होकर अपने काम में लग गई।उसे इस वर्ताव की उम्मीद नहीं थी पर उसने मन ही मन सोचा कि हो सकता है थकान की वजह से कुछ तनाव हो|
तनाव ...............................आधुनिक समाज की सबसे बड़ी समस्या !
लेकिन इस बार अनोखे जितने दिन घर में रहे,पहले से कुछ अलग ही दिख रहे थे ।
अनोखे के जाने के बाद शीला अपनी ग्रहस्थी में लग गई पर वह कुछ चिंतित रहने लगी है |कुछ कहासुनी तो नहीं हो गई,पति पत्नी के बीच ?
एक चार कमरे का घर,दो भैंस,तीन गाय,तीन एकड़ जमीन,बैंक में जमा कुछ रुपए बस इतनी ही मेरी संपत्ति है| धन दौलत तो ज्यादा नहीं है पर अनोखे जैसे पुत्र को पाकर मुझे किसी और चीज की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई।मैं अपने को सबसे बड़ा धन्नासेठ समझता हूँ |
पूरी खेती बारी का काम शीला संभालती है।मैं दिन भर भगवान का नाम जपता रहता हूँ |बुढ़िया का एक ही काम है  ...............दूसरों के काम में मीनमेंख निकालना !..........हा !......हा ..........हा ! शीला जैसी बहू मिली है,इसीलिए इतने नखरे हैं वरना बंसी जैसी हालत होती तब इसके समझ में आता |चुपचाप पड़ी रहती किसी कोने में !
अनोखे अपनी नौकरी बहुत लगन से करता हैं,इसी वजह से उसका समय पास हो जाता है।अन्यथा समय के साथ-साथ का हर चीज का उत्साह कम होने लगता है और जीवन स्थायित्व की तरफ बढ़ता है।ऐसे समय में इंसान को अपने परिवार की जरूरत पड़ती है।पर मेरा अनोखे,सचमुच में अनोखा ही है |दिन रात काम और सिर्फ काम........कर्तव्य और सिर्फ कर्तव्य ! 
अनोखे पहले हर दूसरे महीने में घर आ जाता था,मगर अब यह दायरा बढ़ता जा रहा है ।अब तो वह आठ से दस महीने के बाद घर आता है|लगता है उसकी ज़िम्मेदारी बढ़ गई है|वह गाँव घर के प्रति भी कुछ उदासीन सा हो रहा है।शीला भी इस अन्तर को महसूस करती है पर वह इसका कारण बढ़ी हुई जिम्मेदारी नहीं मानती है ।फिर और क्या वजह हो सकती है ? हम लोग अनोखे के साथ उसकी नौकरी वाली जगह में कभी गए भी नहीं हैं कि कुछ समझ पाते और अनोखे भी नौकरी की बात घर में कभी नहीं बताता है|बहू कहती है कि नौकरी की बात पूंछने से अनोखे चिड्चिड़ा जाता है।वैसे ठीक भी है ...........दफ्तर की बात दफ्तर तक ही रहना चाहिए|
मगर एक बात और है जो मुझे कुछ चिंतित करती है |अनोखे अब पैसा भेजने में कुछ कटौती करने लगा है,जबकि आजकल घर को पैसे की ज्यादा आवश्यकता है।वह बहुत खर्चीला कभी नहीं था,फिर वह ऐसा क्यों कर रहा है ?यह बात मेरे समझ के बाहर है |
घर कम समय के लिए आना और पैसे भी कम भेजना ................कुछ न कुछ बात तो जरूर है !
सरकारी नौकरी में तनख्वाह तो हर साल बढ़ती रहती है,फिर पैसे कम क्यों भेजता है? कहीं वह किसी समस्या में तो नहीं फँस गया है ?कुछ बताता भी तो नहीं है  ?बचपन से ही उसका स्वभाव ऐसा है कि वह परेशानी को मन में ही दबा लेता है।वह नहीं चाहता है कि हम सब लोग उसके कारण परेशान हों।पर उसको यह नहीं पता है कि ऐसी दशा में घर वाले ज्यादा परेशान होते हैं |
मैं उसको पत्र के माध्यम से घर की जरूरतों के बारे में समझाता हूँ तथा साथ में यह भी लिख देता हूँ कि वह विशेष चिंता भी न करे।यदि उसकी कुछ समस्या है तो हमें बता दे और उसे अकेले न झेले |हम लोग उसके माँ-बाप हैं भाई !
पत्र पाने के कुछ महीने बाद तक अनोखे कुछ ज्यादा पैसा भेज देते लेकिन आगे फिर से कटौती होने लगती।वह इस कटौती का कारण बार-बार पूंछने से भी नहीं बता रहे थे।
अब मुझे अपने बेटे को लेकर चिंता हो रही है और बहुत गुस्सा भी आ रहा है।
नारायण को गुस्सा आता है,तब उनके नथुने फडफड़ाने लगते हैं और साँस तेजी से चलने लगती है।मुँह फुलाकर कभी-कभी वह अनोखे को गाली भी दे देते हैं।
“बेवकूफ !अकेले ही सब सहता है.............जैसे हम पराए हैं।”
इस साल अत्यधिक बारिस होने की वजह से पूरी की पूरी फसल बरबाद हो गई है।शुरू में फसल अच्छी थी लेकिन बाद में खेत में ही सड़ गई।काटने की नौबत ही नहीं आई।इस वजह से घर का खर्चा अब अनोखे द्वारा भेजे गए पैसे पर ही निर्भर रहेगा|
जीवन में पहली बार मैं परेशानी के कारण तनाव महसूस कर रहा हूँ ।घर का खर्चा बढ़ रहा है,बच्चों की टुएसन फीस बढ़ती जा रही है और अनोखे पैसे भेजने में कटौती कर रहा है।अपनी यह व्यथा कहूँ भी तो किससे कहूँ ?गाँव समाज के लोगों के सामने तो कुछ कह ही नहीं सकता |सब लोग उसे श्रवण कुमार जैसा समझते हैं |क्या सोचेंगे लोग...........उसके बारे में ? 
“बहू तुम अनोखे के पास जाकर उसे थोड़ा देखो तो ?वह कहाँ पैसा खर्च करता है ?....... कहीं पीने खाने की आदत तो नहीं पड़ गई ?"
"वह शराब कभी  नहीं पिएंगे !"
"बेटी ! आजकल शराब पीना सभ्य और उच्च दिखने की निशानी बन गई है।"
"बाबूजी ! आपने उनको संस्कार दिए हैं अतः मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शराब को कभी हांथ से नहीं छुएंगे |”
“फिर और क्या वजह हो सकती है ?”
वही तो मैं भी सोच रही हूँ |”
“तुम जल्दी से उसके पास जाओ और समस्या जानने की कोशिश करो |”
“जी, बाबूजी !”
मैं मन ही मन बहुत खुश हो रही हूँ|शादी के बाद कभी भी उनके साथ नौकरी की जगह में नहीं गई |इस समस्या के बहाने मुझे उनके साथ अकेले में कुछ समय बिताने का मौका मिल रहा है|हनीमून के बारे में तो मुझे शादी के बाद पता चला |मेरी सहेली छबीली हनीमून मनाने शिमला गई थी|उसी से मैंने इस शब्द के बारे में सुना और जाना था |अब मैं शादी के इतने सालों के बाद हनीमून मनाऊँगी|कुछ समस्याएँ भी अपने साथ में खुशी लेकर आती हैं|पर हे भगवान ! इन्हें कोई परेशानी मत देना |
मैं अब जल्दी-जल्दी से उनके लिए कुछ पकवान वगैरह बना देती हूँ|कई वादे जो उन्होने पूरे नहीं किए थे,उसकी भी सूची बना लेती हूँ|इस बार इनसे बहुत खर्चा करवाऊँगी|
वह खुशी के मारे यह भूल गई कि अनोखे तो पैसे की तंगी में हैं और वह इसी कारण को समझने जा रही है|उसकी हालत उस बच्चे के समान हो गई थी जो जीवन की वास्तविकताओं से दूर अपनी एक अलग दुनिया में जीता है|
काम में लगे रहने से समय का पता ही नहीं चल पाया और जाने का समय नजदीक आ गया |उसने अपने सास-ससुर का पैर छुआ और रिक्शे में बैठकर बस अड्डे के लिए निकल पड़ी |आज वह कई वर्षों के बाद बस में चढ़ रही थी|उसका माइका बगल के गाँव में है और वह अपने माइके पैदल ही चली जाती है|शहर के लिए ऑटो चलता है |
जिंदगी कितना जल्दी बीत जाती है|ऐसा लगता है जैसे कल ही मेरी शादी हुई थी|मुझे बहुत खुशी हुई थी जब इनकी नौकरी की चिट्ठी आई थी|यह एक सुखद लेकिन थोड़ी कड़वी खुशी थी|इनको नौकरी के लिए बाहर जाना पड़ा था |मुझे बड़ा कष्ट हुआ था पर जीवन की ज़िम्मेदारी तो निभानी ही पड़ती है|नौकरी लगने के बाद यह मुझे अपने लिए शुभ मानने लगे थे|बच्चे होने के बाद घर ग्रहस्थी के काम में ऐसे उलझी कि समय का पता ही नहीं चला |अब तो बच्चे भी बड़े-बड़े हो गए हैं|
इनमें बहुत सी खूबियाँ हैं पर साथ में एक कमजोरी भी है|यह झूँटे वादे बहुत करते हैं |वादा करेंगे और फिर उससे मुकर जाएँगे |इन्होने न जाने कितनी ही बार साड़ी और अन्य सामान खरीदने का मुझसे वादा किया और फिर सब भूल गए।इस बार इनको जमकर चूना लगाऊँगी|सारा पिछला हिसाब किताब एक बार में ही पूरा कर दूँगी|
वह पिछले वादों को याद कर शरमा जाती है और फिर अपनी सूची को निकालकर देखने लगती है।
मेरी कई बार इच्छा हुई कि इनकी नौकरी वाला घर देखूँ |मैंने एक दो बार इनके साथ कुछ महीने रहने के लिए कहा भी,पर इन्होने माँ-बाप की देखभाल और कुछ अन्य कारण गिनाकर साथ ले जाने से मना कर दिया|मुझे भी अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास था अतः मैंने इनसे जिद नहीं किया|मैं इनकी हर बात पर आँख मूँदकर विश्वास करती हूँ|वैसे यह हैं भी बहुत विश्वसनीय !
पता नहीं उनका घर कितना बड़ा होगा ?.............कितने कमरे होंगे.?................घर में क्या-क्या सामान होगा ?...........खाना यह अपने से बनाते होंगे कि बाहर खाते होंगे ? पेट तो इनका हमेशा ही खराब रहता है,लगता है होटल में ही खाते होंगे।अब एक महीने मेरे हांथ का बना हुआ खाना खाएँगे तब इनका स्वास्थ्य सुधरेगा ।पेट तो फूलकर ऐसे हो गया है,जैसे किसी सेठ का हो !मुझसे तो कहते थे कि मैं हमेशा अमिताभ की तरह दुबला-पतला ही रहूँगा ।       
यादों में खोए रहने से रास्ता का समय बड़े आराम से कट गया |बस अपनी मंजिल तक पहुँच गई है |
बस अड्डे से घर तक के लिए शीला ने रिक्शा किराए पर लिया|उसने इस यात्रा को अनोखे के लिए रहस्य बनाया हुआ था क्योंकि वह सर्प्राइज़ देना चाह रही थी| शुरू-शुरू में अनोखे भी ऐसी खूब सर्प्राइज़ दिया करते थे |
सर्प्राइज़ देना तो इनकी पुरानी आदत है !
रिक्शे से उतरकर शीला ने रिक्शे वाले को उसका किराया दिया और फिर अपनी संदूख लेकर घर के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई |मारे खुशी के वह अपने आप से ही मुस्कुरा रही थी |उसके चेहरे की आभा खिल उठी थी ।वह काँप रही थी,प्रसन्नता से !
उसने दरवाजे की घंटी बजाई |
“कौन है इस समय ?” अंदर से एक कर्कश आवाज सुनाई दी जो किसी महिला की थी |शीला को थोड़ा आश्चर्य भी हुआ पर खुशी के मारे वह कुछ सोचने समझने की हालत में नहीं थी |
“हाँ बताइए ?” महिला ने दरवाजा खोलते हुए कहा |
“यह घर अनोखे जी का है !”
“आपने दरवाजे पर नाम नहीं पढ़ा है क्या ?”
“हाँ पढ़ा तो है पर आप को देखकर पूंछ लिया |”
“क्यों ?………..आपने मुझे ही अनोखे समझ लिया क्या ?”
“नहीं ! नहीं !.............ऐसी बात नहीं है |”
“फिर कैसी बात है ?”
मैं आपको पहचान नहीं पाई हूँ .............आप कौन हैं ?”
“मैं उनकी पत्नी हूँ |”
यह सुनकर शीला के हांथ से संदूख छूटकर नीचे गिर गई |उसे चक्कर सा महसूस हुआ अतः वह वहीं जमीन पर बैठ जाती है |
“अरे ! तुम यहाँ पर क्यों बैठ गई ?”
शीला चुप रहती है|उसे चक्कर आ रहा है |
“अरे तू है कौन ?.............कुछ बताएगी भी ?”
शीला ने कुछ नहीं बोला |उसने खड़े होकर इस औरत के बालों को नोचकर उसको घर के बाहर कर दिया और खुद अंदर जाकर दरवाजा भीतर से बंद कर लिया |घर के अंदर दो छोटे-छोटे बालक लेटे हुए थे ।
अनोखे की दूसरी पत्नी दौड़ते हुए उसके दफ़्तर पहुँची ।
“सुनते हो ! कोई चुड़ैल आई है ।”
“कौन आया है ?”
घर में एक चुड़ैल औरत आई है।वह तुम्हारा नाम ले रही है ।उसने मेरा परिचय पूंछा और जब मैंने अपना परिचय बताया तो वह बेहोश जैसे हो गई।इसके बाद वह अचानक उठी और मेरे बाल पकड़कर मुझे बाहर खदेड़ दिया और खुद अंदर घुस गई ।लगता है,वह कहीं बाहर देहात से आई है ।उसके हांथ में एक संदूख भी है।जल्दी चलिए !अंदर बच्चे लेटे हैं,कहीं वह कुछ कर न दे ।”
“वह देखने में कैसी है ?”
“मुझसे सुंदर नहीं है ।”
“अरे मूर्ख ! वह कैसे लगती है,उसका रंग,ऊँचाई,मोटापा वगैरह के बारे में बता ?”
“दुबली,पतली,लंबी है और रंग गोरा है |”
अनोखे कुछ-कुछ समझ गए ।वह भागते हुए घर पहुँचे ।दरवाजा अंदर से बंद था अतः उन्होने दरवाजा को धक्का देकर तोड़ दिया ।
अंदर उन्होने शीला को बेहोशी की हालत में पाया ।वह जल्दी से शीला को अस्पताल ले गए और अपना खून दिया ।शीला का बहुत खून बह चुका था ।
“तुम अपना खून दे रहे हो !...............यह है कौन ?” पत्नी ने पूंछा ।
“यह मेरी धर्मपत्नी है ।”
“तो इसे मर जाने दो न !”
“चुप रह !.............मूर्ख कहीं की !”
मुझे डांट क्यों रहे हो ? तुम्हें यह बड़ी प्यारी थी फिर तुमने मुझसे शादी क्यों की थी ?”
“यह परिस्थिति बस हुआ है ।”
“अब मैं कहाँ जाऊँगी ?”
“यहीं रहोगी ।”
“और यह कहाँ रहेगी ?”
“वह भी यहीं रहेगी !”
“मैं इस चुड़ैल के साथ नहीं रहूँगी ।”
अनोखे ने यह सुनकर,पत्नी को एक थप्पड़ मारा और आगे चुप रहने को कहा ।
शीला का स्थान तुमसे ऊपर है और अब मैं उसके बारे में एक भी अपशब्द नहीं सुनना चाहता।”
अनोखे के मन में शीला को लेकर तरह-तरह की शंकाएँ आ रही हैं।उनके शरीर से पसीना निकल रहा है और शरीर ज़ोर-ज़ोर से झनझना रहा है।वह अनायास भय से भयभीत हैं और उनके चेहरे का रंग उड़ गया है।
कुछ घंटों के बाद शीला को होश आ गया ।अनोखे दौड़कर उसके पास गए और उसका हांथ पकड़ लिए।
शीला ! अब तुम्हारी तबीयत कैसी है ?”
शीला ने अपना हांथ छुड़ा लिया।उसके आँखों से आँसू की धारा बहने लगी ।
“शीला ! मुझे मांफ कर दो |”
शीला अस्पताल से उठकर चुपचाप चल दी।अनोखे हांथ जोड़कर उससे माफी माँगते रहे,मगर उसने उनकी तरफ देखा भी नहीं ।
वह बस पकड़कर अपने गाँव चली गई।वहाँ उसका सूखा बेजान चेहरा देखकर उसके सास-ससुर घबरा गए।आखिर बहू इतना जल्दी कैसे वापस आ गई ?वह तो महीने भर के लिए गई थी ।कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है ?क्या हो सकता है ?तरह-तरह की बातें उनके मन-मस्तिष्क में जगह बनाने लगी ।
       “क्या हुआ बहू ?तुम इतना जल्दी क्यों आ गई और तुम्हारा चेहरा क्यों बुझा हुआ है ?”
बहुत बड़ा विश्वासघात हुआ है,बाबूजी !”
“क्या हुआ ? कैसा विश्वासघात ?” नारायण घबराकर पूंछे ।
“उन्होने दूसरी शादी कर ली है ।”
“क्या ?” नारायण चीख पड़े ।
“हाँ,बाबूजी !..............उनके दो बच्चे भी हैं ।”
“मतलब कि उसके चार बच्चे हैं ।”
“नहीं बाबूजी................वहाँ दो ही बच्चे थे ।”
“दो यहाँ भी हैं,अतः कुल चार हुए।”
शीला चुप रही और इसके बाद वह अंदर जाकर रोने लगी।
जिस बेटे पर सारा जीवन गर्व करता रहा,आज उसी के लिए ह्रदय में सबसे ज्यादा नफरत भर गई है।आखिर भगवान भाग्य को इस तरह कैसे पलट देते हैं ? वह किसी इंसान को ऊपर से सीधे जमीन पर क्यों पटक देते हैं ? क्या यह दुनिया एक नाटक है ? और हम सब इस नाटक के केवल एक पात्र की तरह हैं |क्षण भर में सब बदल जाता है |कुछ भी तो सत्य नहीं लगता है।जब अनोखे ऐसा कर सकता है,तब किसके ऊपर भरोसा करें ? समाज के लोग जब सब सुनेगे,जानेंगे तब वह क्या-क्या नहीं कहेंगे ? क्या होगा हमारी इज्जत का ? कैसे मुंह दिखाऊँगा सबको ? क्या इस कलयुग में श्रवण कुमार पैदा नहीं हो सकता है ? कुछ गलती मेरी भी है |मुझे उसे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था |  
यह सब सोचते हुए वह वहीं पर सिर पकड़ कर बैठ गए।उनके छाती पर दर्द होने लगा।पसीना पूरे शरीर के रोम-रोम से बाहर आने लगा।वह थरथराने लगे और बड़ी मुश्किल से उठकर बिस्तर में लेट गए।
मैंने अपनी सारी संपत्ति से अनोखे को बेदखल कर दिया है|सारी संपत्ति शीला और उसके दो बच्चों की है|
इधर अनोखे रोता बिलखता घर पहुँचा और शीला की संदूख को हृदय से लगा लिया|उसने संदूख को खोलकर देखा तो फफक-फफक कर रोने लगा।उसने संदूख में रखे हुए खाने के सामान को इस तरह खाने लगा मानो वह कई सालों से भूंखा है|

इसके बाद उसने कागज की सूची को देखा ।उसमें लिखा था,दो साड़ी............पैर की पायल......ठेलिया.............कान के बाले...........महँगी चप्पल.............बच्चों के लिए शर्ट पैंट...............अम्माँ के लिए साड़ी..................बाबूजी के लिए कुर्ता और परदनी .....................                           

यह रचना अखिलेश मिश्र जी द्वारा लिखी गयी है . आप भारतीय रेलवे में कार्यरत है . आपकी विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है . 
संपर्क सूत्र :- email-akhi329330@gmail.com          मोबाइल - 09424160587

COMMENTS

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  1. कहानी दिलचस्प लगी। कसावट से पूर्ण थी । पारिवारिक विघटन पर आधारित थी दूरी किस तरह से सम्बन्धो में दरार उत्पन्न कर देती है यह लेखक ने बखूबी बताया है ।

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  2. कहानी दिलचस्प लगी। कसावट से पूर्ण थी । पारिवारिक विघटन पर आधारित थी दूरी किस तरह से सम्बन्धो में दरार उत्पन्न कर देती है यह लेखक ने बखूबी बताया है ।

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  3. आर के दुबेजून 26, 2014 12:45 pm

    कहानी न लगकर यह एक सत्य चित्रण लग रहा है इस तरह के लेख लिखने वाले जो हृदय को नम कर दे ऐसे लेखको का अकाल पड गया है।

    जवाब देंहटाएं
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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: विश्वासघात/ अखिलेश मिश्र की कहानी
विश्वासघात/ अखिलेश मिश्र की कहानी
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