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इब्ने इंशा |
इन लोगों के ईट न मारो कहाँ दीवाने होते हैं
आहें इनकी उमड़ते बादल आँसू इनके अब्रे -मतीर
दश्त में इनको बाग़ लगाने शहर बसाने होते हैं
हम न कहेंगे आप हैं पीत के दुश्मन मन के कठोर मगर
आ मिलने के ना मिलने के लाख बहाने होते हैं
अपने से पहले दश्त में रहते कोह से नहरें लाते थे
हमने भी इश्क किया है लोगों सब अफ़साने होते हैं
इंशा जी छब्बीस बरस के होके ये बातें करते हो
इंशा जी इस उम्र के लोग तो बड़े सयाने होते हैं.
इब्ने इंशा (शेर मोहम्मद खान ) का जन्म १९२७ में जालंधर में हुआ था . जालंधर विश्वविद्यालय से इन्होने बी.ए की परीक्षा पास की . विभाजन के बाद ये पाकिस्तान चले गए . वहां पर इन्होने विभिन्न पदों पर कार्य किया .इब्ने इंशा को इनके समय का सबसे बेहतर व लोकप्रिय शायर माना जाता है . इनकी ख्याति कवि,यात्रा लेखक ,स्तंभकार तथा हास्य लेखक के रूप में हैं . कुछ काव्य समीक्षकों का कहना है कि इनकी कविता शैली पर अमीर खुसरों तथा इनके विचारों पर कबीर का जबरदस्त प्रभाव है . इनकी रचनाओं में 'इस बस्ती के एक कूंचे में' ,'चाँद नगर' तथा 'दिले वहशी' आदि है . इनकी गज़ल 'इंशा जी उठों' ,प्रीत का अलाव गोरी, य़े बातें झूँठी बातें है ,गोरी मत जाओ,इल्म बड़ी दौलत है आदि बड़ी प्रसिद्ध है . विभिन्न भाषाओं में इनकी पुस्तकों का अनुवाद हो चुका है .
bahut khub.
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर
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