गर्भ-भवन में जब-तब हमने
चुपचाप सुनी
अपनी भोली माँ की बोली,
हमें लगी वह जनम-जनम की
जानी / पहचानी!
हमजोली!
॰
और कि जब
इस सुन्दर ग्रह पृथ्वी पर आकर
हमने आँखें खोलीं,
तो सुनी वही फिर
माँ के मुख से
अद्भुत स्नेह-सिक्त
चिर-परिचित भाषा
मधुरस घोली!
॰
बोलूँ मैं भी सहज उसे ही,
कुछ ऐसी जाग उठी थी
मन में अभिलाषा,
देखो, सचमुच,
आज अचानक
साध हृदय की पूरी हो ली!
॰
मेरी माँ की यह बोली -- हिन्दी
बड़ी मधुर थी, बड़ी सुघर,
जो बिन सीखे
मेरे मुख से हुई मुखर!
॰
दुनिया की हर माँ की भाषा
हिन्दी जैसी सुन्दर है,
दुनिया की हर माँ
मेरी माँ के मन जैसी मनहर है!
¤
मातृभाषा / महेंद्र भटनागर
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बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
उत्तर देंहटाएंअच्छी पंक्तिया सृजित की है आपने ........
भाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है. अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html
हिंदी-दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति...हिंदी तो अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए. हिंदी दिवस पर ढेरों बधाइयाँ और प्यार !!
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...
१४-०७-१९४९ को हिंदी को राजभाषाका सुहाग बख्शा गया तभी से बेचारी हिंदी राष्ट्रभाषा के सिन्दूर को अपनी मांग में सजाने को तरस रही है|६१ सालों के बाद भी हिंदी राज्य की ही भाषा है |केंद्र सरकार के कार्यालयों में विशेषकर उत्सव सेलेब्रेट करके प्राईज़ बांटे गए ज्यादा तर अपनों को ही बांटे गए|लेडीस एंड जेंट्स के संबोधनों से दिवस प्रारंभ हुए और टी पार्टी के बाद समाप्त हुए इसके बाद फिर[ वोही पुराना राग] अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेज़ीमें सर्कुलर बांटने की लीक पीटनी शुरू हो गयी
उत्तर देंहटाएंbaht sundar............mnaharan kavita...........sachmuch dil ko chhoo liya
उत्तर देंहटाएंहिंदी भाषा के लिए लिखी कविता पढ़ना अच्छा लगा .
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