गुम हो चुकी लड़की - डॉ. अमिता नीरव की कहानी

SHARE:

दिसंबर जा रहा था..... वो गुजरते साल का एक और छोटा-सा दिन था...... गुलमोहर के पेड़ के नीचे धूप और छाह से बुने कालीन पर वो मेरे सामने बैठी थी...


दिसंबर जा रहा था..... वो गुजरते साल का एक और छोटा-सा दिन था...... गुलमोहर के पेड़ के नीचे धूप और छाह से बुने कालीन पर वो मेरे सामने बैठी थी। उसके सिर और कंधों पर धूप के चकते उभर आए थे..... मोरपंखी कुर्ते पर हरा दुपट्टा पड़ा था......कालीन की बुनावट को मुग्ध होकर देखती उस लड़की ने एकाएक सिर उठाया और उल्लास से कहा- बसंत आने वाला है। केसरिया दिन और सतरंगी शामें.....नशीली-नशीली रातें, रून-झुन करती सुबह.... नाजुक फूल..... हरी-सुनहरी और लाल कोंपलें.....ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति हमें लोक-गीत सुना रही है।
हल्की सी हवा से उड़कर गुलमोहर के पीले छोटे पत्ते जैसे सिर और बदन पर उतर आए थे। मैंने उसे चिढ़ाया-- और फिर आ जाएगा सड़ा हुआ मौसम.....। उसकी आँखें बुझ गई.....। मैंने फिर से जलाने की कोशिश की.... जलते दिन और बेचैन रातों वाली गर्मी..... न घूम सकते हैं, न सो सकते हैं, न ठीक से खा सकते हैं और न ही अच्छा पहन सकते हैं। बस दिन-पर-दिन जैसे-तैसे काटते रहो....।
उसने प्रतिवाद किया- मुझे पसंद है। नवेली दुल्हन की तरह धीरे-धीरे, पश्चिम की ओर मंथर होकर उतरता सूरज, लंबी होती शाम.... बर्फ को गोले....मीठे गाने..... हल्के रंग....दिन की नींद, रातों में छत पर पड़े रहकर तारों से बातें करते हुए जागना....मुझे सब पसंद है। 
और उस दिन..... वो बाजार में बसंती रंग का दुपट्टा ढूँढते हुए मिली थी। बसंत पंचमी पर केसरिया और मेहरून रंग के सलवार कुर्ते पर वही खरीदा हुआ दुपट्टा डाले घऱ आई थी। उसके पूरे बदन से बसंत टपक रहा था। माँ ने उसे गले लगाया कितनी सुंदर लग रही है.... मेरी तरफ देखकर मेरी सहमति चाही मैंने भी आँखों से हामी भर दी, लेकिन उसने नहीं देखा।
अपने दोस्तों से मिलकर जब मैं घर लौटा तो वह गली के बच्चों के साथ बर्फ के गोले वाले का ठेला घेरे खड़ी थी। पलटी तो मैं अपनी गाड़ी खड़ी कर रहा था। उसने मुझे देखकर हाथ हिलाया और मुस्कुराई.....गोला मेरी तरफ कर इशारा किया--खाओगे?
मैंने इंकार में  सिर हिलाया तो उसने बुरा सा मुँह बना कर ऐसे भाव दिए  जैसे गोला नहीं खाया तो मेरा जीना ही बेकार है। 
देर शाम जब मैं  गर्मी से घबरा कर छत पर आया  तो उसे देखकर याद आया  कि मैं उसे बहुत दिनों  बाद देख रहा हूँ। सफेद कुर्ते पर हल्के गुलाबी रंग  का दुपट्टा पड़ा हुआ था।  अपने बालों को उसने बड़ी बेतरतीबी से उपर बाँध लिया था। उसकी छत की मुँडेर पर फिलिप्स का ट्रांजिस्टर जोर-जोर से मौसम आएगा, जाएगा प्यार सदा मुस्काएगा, गा रहा था। उसकी पीठ मेरी ओर थी और हम दोनों ही आसमान से फिसलते सूरज को देख रहे थे। बहुत देर तक वह यूँ ही खड़ी रही। पता नहीं क्यों मुझे लगा कि वह थोड़ी उदास है, जबकि मैंने उसका चेहरा नहीं देखा था। झुटपुटा उतर आया था। छत पर लगे हुए बिस्तरों पर वह लेट गई और आसमान को देखने लगी..... मैंने जोर से आवाज लगाई- बिल्लो.... और मुँडेर की आड़ में बैठ गया। वह उठकर आई और बहुत थकी हुई आवाज में बोली- मुझे मालूम था तुम ही होगे, तुम क्या कर रहे हो छत पर...?
क्यों मैं छत पर नहीं आ सकता?-- मैंने पूछा।
नहीं तुम्हें  तो यह मौसम सड़ा हुआ लगता है ना, तो एसी में बैठो ना.... अभी थोड़ी ना ठंडी हवा चल रही है।
मैंने उसे खुश  करने के लिए कहा-- मैंने सोचा क्यों न मैं भी तुम्हारी तरह गर्मी से बातें करूँ।
लेकिन वह और भी उदास हो गई, बोली- तुमसे नहीं होगा। उसके लिए तुम्हें 'मैं' होना पड़ेगा, वो नहीं हो सकता.....एक गहरी निःशब्दता दोनों के बीच की जगह में फैल गई....... अँधेरे में मैं उसे देख नहीं पाया.....फिर वह बुदबुदाई..... होना भी मत....बहुत बुरा है 'मैं' होना।
पता नहीं थोड़े-थोड़े दिनों में वह ऐसी क्यों हो जाती है? कोई दुख जैसा दुख नहीं है उसके जीवन में फिर भी गाहे-ब-गाहे वह उदास हो जाती है। यूँ कोई उसकी उम्र भी नहीं है उदास होने की, लेकिन फिर भी। एक दिन जब वह खुश थी मैंने उससे यूँ ही पूछ लिया था--तुम थोड़े-थोड़े दिनों बाद ऐसी अजीब-सी क्यों हो जाती हो?
वह जोर से खिलखिलाई थी- मैंने कहीं सुना था कि लड़कों को उदास लड़कियाँ रहस्यमयी लगती है, इसलिए वे उन लड़कियों से पट जाते हैं.... लेकिन देखती हूँ तुम्हें तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
मैं जानता था कि वह मुझे बहला रही है, फिर भी मुझे हँसी आ गई। 
उस दिन जोर-जोर से आँधी चलने लगी और बादल घुमड़ आए.... मैं दरवाजे-खिड़कियों को बंद करन के लिए बाहर आया तो वह सामने थी.....चलो थोड़ा घूमकर आते हैं....उसने प्रस्ताव दिया।
पागल हो क्या....? मौसम खराब हो रहा है...। --मैंने कहा। तभी पानी बरसने लगा। लगता है इस बार मानसून जल्दी आ गया है।
तुम पागल हो...यह मानसून नहीं है, यह मावठे की बारिश है। कभी जेठ में मानसून आता है....!
उसे बारिश में  भीगते देखा तो मैंने कहा--भीग रही हो अंदर आ जाओ...बीमार हो जाओगी...।
वह हँसी..कोई प्यार से बीमार होता है क्या?
मैंने उसे आश्चर्य  से देखा-- प्यार...
हाँ वेबकूफ.... ये आसमान का प्यार है जो बरस रहा है और तुम्हारे जैसे उल्लू घर में दुबके बैठे हैं। चलो घूमकर आते हैं।--- फिर उसकी रट शुरू हो गई।
मैं उसके साथ हो लिया। रास्ते में वह गड्ढों के पानी में छपाक-छपाक कर बच्चों-सी किलकारी मारती रही। बूँदों को दोनों हथेलियों के कटोरों में इकट्ठा कर पानी को मुझ पर उछालती रही। उस वक्त मुझे लगा जैसे वो कोई छोटी बच्ची हो और मैं उसका गार्जियन.... मैं उसे ये और वो करने के लिए मना करता रहा है और वह बच्चों जैसी शैतानी कर हँसती रही.....। मुझे एकाएक अपना होना बड़ा और महत्वपूर्ण लगने लगा।
कई दिनों से सुन रहे हैं कि इस बार  मानसून जल्दी आएगा। बादल तो गहरा रहे थे....लेकिन लगा नहीं था कि इतनी जल्दी बारिश होने लगेगी। अभी रास्ते में ही था कि बारिश आ गई। वो मुझे फिर से सड़क पर भीगती मिली....। मुझे हँसी आ गई। मैं घर पहुँचा तो उसने पूछा चाय पिओगे...?
तुम बनाओगी....
हाँ बढ़िया चाय.... तेज अदरक की तुर्श स्वाद वाली चाय....एक बार पी लोगे तो लाइफ बन जाएगी।
ये कहाँ से लाई....?
बस.... एकरसता बोर करती है, बदलाव करते रहना चाहिए। आ रहे हो....!-- उसने चुटकी बजाकर जैसे ऐसे पूछा जैसे चेतावनी दे रही हो।
मैंने कहा--कपड़े बदल कर आता हूँ।
घर पहुँचा तब तक वह कपड़े बदल चुकी थी।  बालों को तौलिये से पोंछते हुए बोली-- बैठो... चाय बनाती हूँ।
मैंने उसे चिढ़ाया--- अभी तक चाय बनी ही नहीं, चाय है या बीरबल की खिचड़ी?
उसने आँखें तरेरी... मैंने भी कपड़े बदले हैं, फिर बाल तुम्हारी तरह थोड़े ही है एक बार पोंछ लो तो बस सूख ही जाएँगें।
मुझे आश्चर्य  हुआ हम-दोनों बचपन से साथ-साथ है फिर भी कभी मेरा ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया कि उसके बाल खासे खूबसूरत हैं। दरअसल मैंने कभी नहीं पाया कि वह लड़की है और मैं लड़का.... शायद उसने भी कभी नहीं सोचा होगा...तभी तो वह मुझसे इतनी बेझिझक है, एकाएक मैं उसे नजरों से तौलने लगा....और फिर खुद ही अपराध बोध से भर गया। पता नहीं कितनी देर बाद उसने मेरी आँखों के सामने चुटकी बजाकर मुझे सचेत किया।
कहाँ हो....! चाय...।
चाय वाकई अच्छी  बनी थी, गले में तेज अदरक का स्वाद उतर रहा था, रहा नहीं गया, तुम तो अच्छी चाय बना लेती हो, सीख रही हो..... बहू-बेटियों के गुण....।-- जानता हूँ कि वह भड़केगी और वही हुआ।
ऐ......आगे से कभी ये कहना नहीं.....।
दो दिन से लगातार बारिश हो रही है..... घर से बाहर निकलने की भी मोहलत नहीं मिली। इन दिनों में सर्फिंग-चेटिंग...... मेलिंग-कालिंग.....टीवी और मूवीज सब कुछ हो चुका और अब बुरी तरह से ऊब गया हूँ....। अपने कमरे की खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था कि माँ ने बताया कि वो बीमार है।
जब मैं उसके कमरे में पहुँचा तो वह सो रही थी, उसकी टेबल पर कबीर की साखी किताब पड़ी हुई थी। मैं चुपचाप कुर्सी पर जाकर बैठ गया। वह गहरी नींद में थी। उसकी आँखों की कोरों से कानों तक सूखे हुए आँसुओं के निशान थे। बहुत धीमी आवाज में गुलाम अली की गज़ल --- सो गया चाँद, बुझ गए तारे, कौन सुनता है ग़म का अफसाना.... चल रही थी। रोते-रोते सोए बच्चे की तरह ही उसने नींद में सिसकारी भरी। यूँ लगता है कि उसके अवचेतन पर कोई गहरी चोट हो....। मैंने वह किताब उठा ली और उसे उलटने पलटने लगा। तभी चाची कमरे में आ गई....अभी उठी नहीं।
हाँ गहरी नींद में  है।
उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा तो वह चौंक कर उठ गई।
बेटा देख तुझसे  मिलने कौन आया है।-- चाची ने कहा और वे हमारे बीच से सरक गई।
अरे.... कब आए..... मुझे उठाया क्यों नहीं।- उसने बीमार आवाज में पूछा।
तुम तो घोड़े बेचकर  सो रही थी, मैंने आवाज भी लगाई, लेकिन तुम उठी ही नहीं।-- मैंने झूठ बोला।---क्या हुआ, क्या प्यार का ओवरडोज हो गया?--मैंने चिढ़ाया।
उसके चेहरे पर बहुत बारीक मुस्कुराहट आई।-- प्यार का कभी भी ओवरडोज नहीं होता, तुम नहीं समझोगे.....।
तभी चाची फिर से कमरे में आ गईं। --बेटा तुम्हारे दूसरे डोज का समय हो गया है।
न...हीं....--उसने बच्चों की तरह ठुनकते हुए कहा।
नहीं बेटा दवा  नहीं लोगी तो ठीक कैसे होओगी?
उन्होंने उसके हाथ में पानी और दवाई दे दी और चली गईं। वह बहुत देर  तक दवाइयों की तरफ देखती  रही। मैंने पूछा कब से बीमार  हो?
कल रात को तेज  बुखार आया फिर उतर गया, फिर सुबह आया अब ठीक है।
चाची ने मेरे हाथ  में चाय का कप और उसे दूध  का गिलास थमाया और फिर  चली गईं।
अब कैसा लग रहा  है?
ठीक हूँ, बल्कि हल्का लग रहा है। --उसने चेहरे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा।-- यू नो बीमार होकर अच्छे होना बिल्कुल वैसा है, जैसे पुनर्जन्म हो....। सब कुछ नया-नया.... अच्छा लगता है।
इस बीमारी ने उसकी आवाज की चंचलता को गुम कर दिया .... ऐसा लग रहा था, जैसे आवाज बहुत अंदर से आ रही हो, ठहरी.... गंभीर और शांत। उसका चेहरा भी एकदम धुला-पुछा और सौम्य लग रहा था। उसने खिड़की की तरफ देखा... तो, क्या करते रहे दो दिन....? बारिश हो रही है घर से बाहर तो जा ही नहीं पाए होगे?
हाँ यार... सब कुछ करके भी समय नहीं कट रहा था।
उसने चिढ़ाया, क्यों....तुम्हारा इंटरनेट और ये वो... क्या काम नहीं कर रहे हैं? खुद से भागने के तो तमाम साधन है.... कम पड़ गए क्या? कभी खुद के पास ही बैठ कर देखो... हमेशा क्या अपने से भागना।--उसने आँखें मूँद ली।
मैं उसे देख  रहा था,  मैं उसे सह नहीं पाया... और कबीर की शरण में हो लिया।
सुनो, तुम मुझे रजनीगंधा के बल्ब ला दोगे...?---उसने आँखें खोलकर पूछा।
रजनीगंधा के बल्ब....! कहाँ मिलेंगे....?
किसी भी नर्सरी में या फिर बीज की दुकान में। मैं चाहती हूँ कि इस सर्दी में घर के हर कोने में रजनीगंधा महके....।
मुझे उसकी आँखों  में महकते रजनीगंधा दिखने  लगे थे।
दीपावली मना चुकने  के बाद परीक्षा की तैयारी का दौर शुरू हो चुका था....।  शामें हल्की-हल्की ठंडक लेकर आने लगी थी। दोस्त  के यहाँ सुबह से शाम तक पढ़ने के बाद देर शाम घर लौट रहा था कि गली के मुहाने पर मैंने उसे बदहवास हाल में पाया। दुपट्टा और टखने की तरफ से फटी हुई सलवार, कुहनी छिल गई और कलाई से खून टपक रहा था। उसके काईनेटिक के फुट रेस्ट पर लटके पालीथिन भी रगड़ गई थी और उसमें से सामान झाँक रहा था.... मैंने घबराकर पूछा--- क्या हुआ....?
उसके आँसू ही निकल आए.... पालीथिन बैग में  पैर फँस गया और गिर गई...।
और ये कलाई में  से खून क्यों निकल रहा  है....?---खून देखकर मैं घबरा गया था। अपने जेब से रूमाल निकाल कर कलाई को बाँधा।
पता नहीं शायद कोई काँच का सामान टूट कर चुभ गया हैं।
मैंने अपनी गाड़ी  वहीं खड़ी की और उसकी गाड़ी  पर उसे बैठाया और घर छोड़ा.... जब अपनी गाड़ी लेकर घर पहुँचा तो माँ वहाँ जा चुकी थी।
चाची ने उसे  पानी पिलाया और दीवान पर लेटा दिया। उसकी कटी हुई कलाई की ड्रेसिंग करते हुए बड़बड़ाई।--इस लड़की के मारे तो नाक में  दम है। घर में इतने कप पड़े हैं, फिर भी चाय पीने के लिए इसे गिलास चाहिए।
गिलास....!---एकसाथ माँ और मैं दोनों ने पूछा...।
हाँ और नहीं तो क्या... कहती है कि सर्दी में काँच के गिलास में चाय पीना अच्छा लगता है। --- चाची ने कहा।
लेकिन अभी दीपावली  पर ही तो हम दोनों काँच के गिलास लेकर आए थे...।-- माँ  ने चाची से कहा।
वो तो गर्मी  में शरबत पीने के गिलास  है। सर्दी में चाय पीने के लिए नहीं है। सर्दी में तो लंबे और सँकरे गिलास होने चाहिए चाय के लिए....।--- अब तक वह स्वस्थ हो चुकी थी, इसलिए मासूमियत से बोली।
मुझे हँसी आ  गई...तो वह चिढ़ कर बोली.... तुम्हें  को कुछ समझ में आता नहीं है। सर्दी में चाय ज्यादा गरम चाहिए और चौड़े कप में जल्दी ठंडी हो जाती है, फिर उसकी क्वांटिटी भी अच्छी चाहिए... इसलिए काँच के गिलास चाहिए चाय के लिए....तुम तो निरे बुद्धु हो....।
कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं उसे सोचने लगा  हूँ....। कभी-कभी तो यूँ  भी भ्रम होता है कि मैं उसे  जीने ही लगा हूँ। सब कुछ  करता हूँ, तब वह मेरे आसपास नहीं होती है, लेकिन जब वह दिखती है तो फिर मेरे वजूद पर ऐसे होती है, जैसे जिस्म पर कपड़े.... फबते और लिपटे हुए-से...।
----------------------------------------------------------
प्लेन से उतर कर एयरपोर्ट पर आते ही रिज़वान  दिखाई दे गया जोर-जोर  से तख़्ती हिलाता हुआ। मैं तेजी से उसकी तरफ पहुँचा तो वह तपाक से गले लग गया। मैंने हँसते हुए कहा-- वहाँ जर्मनी में भी तुम ऐसे ही मिले थे मुझे तख़्ती हिलाते हुए, तब मैं तुम्हें और तुम मुझे नहीं जानते थे....लेकिन आज ये क्यूँ? अब तो हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं।
उसने हँस कर कहा--- दुनिया की भीड़ में कहीं तुम मुझे अनदेखा न कर दो, इसलिए...।
रिज़वान से मैं  जर्मनी में ही मिला था, वहाँ वह कंपनी का काम मुझे हैंडओवर कर हिंदुस्तान लौट रहा था, उसके ही फ्लैट में फिर अगले पाँच साल मैं रहा था। मुझे 15 दिन की छुट्टी मिली थी, फिर बैंगलूरू ज्वाइंन करना है। आज तो पहुँचा ही हूँ.... कल हेडऑफिस रिपोर्ट करूँगा, फिर घर चला जाऊँगा....। रिज़वान मुझे अपने सातवीं मंजिल स्थित फ्लैट में पहुँचाकर ऑफिस चला गया और कह गया कि सात बजे आऊँगा.... फिर पार्टी में चलेंगे।
फ्रेश होकर खाना खाया थोड़ी देर टीवी देखा फिर लगा कि नींद आ रही तो सो गया। शाम को रिज़वान ने ही उठाया, वह पाँच बजे ही आ धमका...। दोनों ने चाय पी इधर-उधर की बातें की, फिर उसने पार्टी में जाने की बात कही, मैंने उससे कहा-- तुम चले जाओ, मैं यहीं रहूँगा।
उसने इसरार किया।--- मेरी गर्लफ्रैंड की बर्थ-डे पार्टी है, चल मजा आएगा तुझे।
मैंने रहस्य से उसकी ओर देखा... पहली या....!
वह मुस्कुराया- नहीं दुसरी....
पहली का क्या हुआ....?
चली गई स्टेट्स...।
और ये क्या करती है?
शी इज स्ट्रगलर एक्ट्रेस...एकाध टीवी सीरियल में छोटा-मोटा काम मिला है।
शादी करने का इरादा  है?
करना तो चाहता हूँ, लेकिन वह नहीं चाहती है।
क्यों...?
कहती है अभी  मैंने किया ही क्या है? फिर डर भी लगता है, अभी तो वह स्ट्रगल कर रही है, सक्सेसफुल हो जाने के बाद क्या वह मुझ जैसे प्रोफेशनल के साथ रहना पसंद करेगी....? फिर सोचता हूँ, यदि वह हम आज शादी कर लें और उसके सक्सेस होने के बाद हम निभा नहीं पाए तो....? इसलिए फिलहाल तो कुछ भी नहीं सोच रहा हूँ.... बस लाइफ इंजाय कर रहा हूँ। चल तैयार हो, बहुत हो चुकी बातें...., अभी तो तुझे चार दिन और रूकना पड़ेगा। यह कहने के लिए मल्टीनेशनल है... काम तो सरकारी गति से ही होता है यहाँ।
पार्टी हॉल में  तेज रोशनी....तेज संगीत  के बीच रिज़वान ने शब्दा और कुछ और दोस्तों से मिलवाया, फिर मैंने उससे पार्टी इंजाय करने का कहकर ड्रिंक लिया और एक कोना पकड़ लिया। आते-जाते, नाचते-हँसते एक दूसरे से मिलते बतियाते लोगों को देखते हुए मेरी नजर एक लड़की पर ठहर गई... वह डांस फ्लोर पर थी.... लगा कि इसे मैं जानता हूँ। पता नहीं कैसे उसने भी मुझे देखा और आश्चर्य से मेरी ओर देखकर हाथ हिलाया और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।
कब आए हिटलर  के देश से....?---उसी तरह के तेवर से पूछा।
हिटलर का देश...!--- मैंने हँस कर कहा।- अब तो वो लोग भी उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं, तुम क्यों उन बेचारों के पीछे पड़ी हो?
मैंने उसे इस बीच  देखा...लड़कों की तरह कटे  हुए बाल... गहरा मेकअप और काले रंग के स्ट्रेप टॉप  के साथ उसी रंग का टाईट स्कर्ट और पेंसिल हील.... बहुत बदली और अपरिचित लगी वह मुझे।
इतिहास से कभी  भी भागा नहीं जा सकता....वो गाना नहीं सुना... आदमी जो कहता है, आदमी जो करता है जिंदगी भर वो दुआएँ पीछा करती है....संदर्भ से समझना... खैर तुम क्या गाना-वाना समझो तुम तो औरंगज़ेब हो....।--- उसने कहा।
अरे, पहले हिटलर, फिर औरंगज़ेब....क्या इन दिनों बहुत इतिहास पढ़ रही हो....तुम तो साहित्य की स्टूडेंट थी।
दुनिया में कुछ  भी साहित्य से बाहर नहीं है, खैर हम फिर से नहीं झगड़ेंगे। तुम यहाँ कब आए....?
आज ही, और तुम यहाँ क्या कर रही हो?
बस यूँ ही सीरियल लिख रही हूँ, तुम ठहरे कहाँ हो?
रिज़वान के घर... दो-एक दिन में घर जाऊँगा।
क्यों नहीं तुम  कल मेरे साथ डिनर करो.... बातें करेंगे। कुछ इतिहास याद करेंगे।
बिना कुछ सोचे मैंने उसे डिनर के लिए  हाँ कर दी।
शाम पाँच बजे ही रिज़वान ने मुझे उसके अपार्टमेंट के नीचे छोड़ा... जब निकलना हो तो मुझे फोन कर लेना... और नहीं तो....---कहकर बात अधूरी छोड़ कर आँख मारी।
मुझे अच्छा नहीं लगा।---मैंने रूखाई से कहा, मैं पहुँच जाऊँगा, यू डोंट वरी।
नीली कैप्री और पिंक टाइट टी-शर्ट पहने उसने दरवाजा खोला...वेलकम।
खुला-खुला सा हॉल.... जिसमें सामने ही नीचे मोटा गद्दा लगा हुआ था और उसपर ढेर सारे कलरफुल कुशन पड़े हुए थे। आमने-सामने बेंत की दो-दो कुर्सियाँ और बीच में बेंत की ही ग्लास टॉप वाली सेंटर टेबल पर नकली फूलों से सजा गुलदान....। उसकी प्रकृति और स्वभाव के बिल्कुल विपरीत...खिड़की तो नहीं दिखी, लेकिन गद्दे के पीछे वॉल-टू-वॉल भारी पर्दे पड़े हुए थे। वह अंदर से पानी लेकर आई। सुनाओ....
मैं क्या सुनाऊँ, तुम सुनाओ....कैसा चल रहा है?
बस चल रहा है।
थोड़ी देर हम अतीत से सूत्र पकड़ने की कोशिश  में ख़ुद में डूब गए...कोई  सिरा ही पकड़ में नहीं आ  रहा था। तभी कहा--तुम  बहुत बदल गई हो....।
हाँ तुम जिस  लड़की की बात कर रहे हो वह एक छोटे शहर की मिडिल  क्लास वैल्यूज के सलीब को ढोती लड़की थी, जो कुछ भी नहीं थी.....जिसे देख रहे हो, वह मैट्रो में रहती और ग्लैमर वर्ल्ड में काम करती है, जहाँ लैग पुलिंग है, थ्रोट कटिंग...कांसपिरेसी और इनसिक्योरिटी है....यहाँ तक पहुँचना ही काफी नहीं है, यहाँ पर टिके रहना ज्यादा मुश्किल है। 'कुछ नहीं' होने से 'कुछ' हो जाने का सफर बहुत तकलीफदेह होता है। बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, फिर पता नहीं क्या सच है, जो छूट जाता है, वहीं सबसे ज्यादा अहम होता है या फिर जो अहम होता है, वहीं छूट जाता है, हर उपलब्धि की कीमत चुकानी होती है...यह कीमत उनके लिए ज्यादा होती है, जो संवेदनशील हैं....नहीं तो सफलता का नशा सिर चढ़कर बोलता है.... वह थोड़ी देर रूकी थोड़ी उदास हो गई...फिर मुस्कुराते हुए बोली--- तुम तो इसे बेहतर तरीके से जानते हो...--- लंबी फ़लसफ़ाना बात करने के बाद वह अक्सर उसका ऐसे ही समापन करती है।
फिर दोनों ख़ामोश हो गए....। इस बार चुप्पी उसने तोड़ी-- अच्छा बोलो क्या खाओगे?
जो फटाफट बन जाए...।
खिचड़ी....? अरे नहीं... मैंने तुम्हें बुलाया है और डिनर में खिचड़ी खिलाऊँगी? कुछ और सोचो।
चलो कहीं बाहर चलकर खाएँ.... बिल तुम दे देना...- मैंने प्रस्ताव रखा।
उसने वीटो कर दिया।---- नहीं, हम यहीं ऑर्डर कर देते हैं, इज दैट ओके....?
उसने फोन कर आठ बजे खाने का ऑर्डर कर दिया। तब तक कॉफी और कुछ  स्नैक्स ले आई।
अच्छा, लिखने के लिए इनपुट्स क्या होते हैं, तुम्हारे....?
प्रायमरी आइडिया होता है, बस उसके बाद तो जिस दिशा में व्यूवर चाहता है, कहानी चलती जाती है, इट्स बोरिंग... नो क्रिएटिविटी एट ऑल....।
फिर तुम....! हाउ कैन यू वर्क....?
मैं... मैं एक नॉवेल  लिख रही हूँ, तकरीबन पूरा होने आया। आई मस्ट फाइंड सम क्रिएटिविटी आउट ऑफ माय जॉब टू सेटिस्फाई मायसेल्फ.....अदरवाइज नो वन कैन सेव मी टू कमिट स्यूसाइड....--उसकी आँखों में कुछ भयावह-सा उभरा...।
एंड नॉवेल ऑन....?
यू नो, जो उस छोटे शहर से लाई हूँ, उसी को अदल-बदल कर पका रही हूँ। जिस दिन वो सब खत्म हो जाएगा, लौटना पड़ेगा या फिर यहीं कहीं दफ़्न होना पड़ेगा। इन सालों में मैंने जाना है कि मैट्रोज या बड़े शहर कुछ प्रोड्यूज नहीं कर पाते हैं, दे आउटसोर्स इच एंड इवरीथिंग.....इवन इमेजिनेशन.... क्रिएटिविटी एंड ओरिजनलिटी ऑलसो....। सारे लोग जो इस शहर के आकाश में टिमटिमा रहे हैं, वे सभी छोटे शहरों से रोशनी लेकर आए हैं, इस शहर को जगमगाने के लिए....। अभी इस पर विचार करना या रिसर्च करना बाकी है कि ऐसा क्यों होता है, क्या बहुत सुविधा ये सब कुछ मार देती है या फिर समय की कमी इस सबको लील जाती है....?
मैं उसे बोलते  देख रहा हूँ और सोच रहा  हूँ.... कि मैंने अपने जीवन से अब तक क्या सीखा....? किस मोती को मैं अपने में उतर कर लेकर आया....क्या उसने सच नहीं कहा था कि कभी ख़ुद के साथ भी रह कर देखो....!
अब मेरे सवाल चुक  गए हैं....मेरा उत्साह मर गया  है, वो मुझे बहुत दूर जाती हुई दिख रही है। एक आखिरी बात जो उस शाम मैंने उससे कही थी---- मैंने तुम्हें जब भी इमेजिन किया मुझे मौसमों का इंतजार करती लड़की के तौर पर तुम याद आई....क्या अब भी तुम मौसमों का इंतजार करती हो....?
उसकी आँखों में  नमी तैरी....उन भारी पर्दों की ओर इशारा करते हुए उसने कहा-- इन पर्दों के उस पार मौसम आकर निकल जाते हैं, न मैं कभी इन्हें हटाती हूँ, न कभी वे ही मुझसे मिलने अंदर आए.... थोड़ा-सा पाने के लिए बहुत खुश खोना पड़ता है.... जीवन की छोटी-छोटी खुशियाँ, होने की हवस पर कुर्बान करनी पड़ती है.... उन्होंने तो कभी किसी को खींचा ही नहीं जब हम सहज होते हैं तो उनके प्रवाह में बह जाते हैं, लेकिन जब हमसे सहजता छिनती है तो फिर सबसे पहले वे हमें किनारे पर छोड़ देते हैं।
सब कुछ बहुत बोझिल हो गया। मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा.... वह काँपी फिर स्थिर हो गई और देखती रही, उसकी आँखों में एकसाथ बहुत कुछ उमड़ा और मुझे लगा कि पहले ही हमारे रास्ते कभी एक नहीं थे, अब तो दिशाएँ ही अलग हो गई है। पहले उसका वैसा होना मुझे भाता था, मेरा होना सार्थक लगता था, लेकिन अब.... मैं वहीं हूँ और वो बहुत दूर जा चुकी है, बल्कि यूँ कहूँ कि वह गुम हो चुकी है।
------------------------------------------------
मैं रिज़वान के साथ लौट रहा हूँ... वह बहुत खुश है, मैं उसके साथ उदास हूँ, क्यों....? उसने कार में म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। फिर से ग़ुलाम अली गा रहे हैं---
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था...
गाड़ी चल रही थी।  ठंडी हवा हल्के-हल्के सहला रही थी और मुम्बई की ये सड़क चले जा रही थी....चले जा रही थी.....।





यह कहानी डॉ.अमिता नीरव द्वारा लिखी गयी है. आपकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में हो चुका है. आप वर्तमान में इंदौर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक नयी दुनिया की फीचर डेस्क पर  संपादक के रूप में कार्यरत है. 

COMMENTS

Leave a Reply: 5
  1. Amitajee ise kahanee ne shuru se hee bandhe rakha.......bahut hee sunder bhavo ka pravah ke sath hum bhee bahte rahe....... samay ke sath mansikta bhee badal hee jatee hai aadhunik paristheetiya jimmedar hai isakee .

    जवाब देंहटाएं
  2. कहानी ने शुरु से आखिर तक बाँधे रखा ………………कैसे रिश्तों और मानवीय संवेदनायें ख्वाहिशों की भेंट चढ जाते हैं उसका बहुत ही जीवंत चित्रण किया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. amita ma'm... bahut dilchasp aur bhawuk kahani likhi hai aapne,, bilkul hakikat ko bayaan karti huyi...sach kahun to is kahani ko padhke bahut kuch yaad aa gaya...paristhitiyan bahut kuch badal deti hain...is behtarin rachna ke liye shubhkaamnayein...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर कहानी। प्रकृति के साथ ही चित्त वृत्ति के सहज समावेश से उत्पन्न भावावेश पाठक की अनुभूति और अनुभव को समृद्ध करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बधाई

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,34,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1408,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,29,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,68,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,4,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,21,प्रेमचंद,39,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,3,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,6,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,18,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,10,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,13,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,1,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,117,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,52,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,343,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,335,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,94,hindi stories,656,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,13,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,9,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,32,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: गुम हो चुकी लड़की - डॉ. अमिता नीरव की कहानी
गुम हो चुकी लड़की - डॉ. अमिता नीरव की कहानी
http://4.bp.blogspot.com/_lxzqs1Yxoss/TFo1O04vxoI/AAAAAAAADTw/hhCcXO1kF1Y/s200/14072010103.jpg
http://4.bp.blogspot.com/_lxzqs1Yxoss/TFo1O04vxoI/AAAAAAAADTw/hhCcXO1kF1Y/s72-c/14072010103.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/08/gum-ho-chuki-ladki-amita-niraw.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/08/gum-ho-chuki-ladki-amita-niraw.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका