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एक दिन एक बंदर ने एक आदमी से कहा-- "भाई, करोड़ों साल पहले तुम भी बंदर थे। क्यों न आज एक दिन के लिए तुम फिर बंदर बनकर देखो।"
यह सुनकर पहले तो आदमी चकराया, फिर बोला-- "चलो ठीक है। एक दिन के लिए मैं बंदर बन जाता हूँ।"
बंदर बोला-- "तो तुम अपनी खाल मुझे दे दो। मैं एक दिन के लिए आदमी बन जाता हूँ।"
इस पर आदमी तैयार हो गया।
आदमी पेड़ पर चढ़ गया और बंदर ऑफिस चला गया। शाम को बंदर आया और बोला-- "भाई, मेरी खाल मुझे लौटा दो। मैं भर पाया।"
आदमी ने कहा-- "हज़ारों-लाखों साल मैं आदमी रहा। कुछ सौ साल तो तुम भी रहकर देखो।"
बंदर रोने लगा-- "भाई, इतना अत्याचार न करो।" पर आदमी तैयार नहीं हुआ। वह पेड़ की एक डाल से दूसरी, फिर दूसरी से तीसरी, फिर चौथी पर जा पहुँचा और नज़रों से ओझल हो गया।
विवश होकर बंदर लौट आया।
और तब से हक़ीक़त में आदमी बंदर है और बंदर आदमी।
सौजन्य - हिन्दी विकिपीडिया
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ijonkzmkrdezign
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बहुत प्यारी कहानी है। आभार।
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ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
बहुत सुन्दर! कमाल की लघुकथा है!
उत्तर देंहटाएंसुंदर लघु कथा।
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