
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
उत्तर देंहटाएंप्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
ये तो समस्त आद्यात्मिकता का ,भक्ति का सार है
i need ravidas ke dohe.
उत्तर देंहटाएंplz help
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उत्तर देंहटाएंplz help
कबीर के दोहों में मानव प्रेम,सौहार्द,भक्ति,नीति,ज्ञान की प्रबलता की गूँज सुनाई देती है।
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