मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ। चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है?' ...
सजनी कान्ह कें कहब बुझाइ - विद्यापति
सजनी कान्ह कें कहब बुझाइ। रोपि पेम बिज अंकुर मूड़ल बांढब कओने उपाइ।। तेल-बिन्दु दस पानि पसारिअ ऐरान तोर अनुराग। सिकता जल जस छनहि सुखायल ऐसन ...
भक्ति काल - हिन्दी साहित्य का इतिहास
पूर्व मध्य काल : भ क्ति काल ( संवत् 1375-1700) प्रकरण 1 सामान्य परिचय...
परियों से भेंट - तेनाली राम की कहानियॉ
एक बार विजयनगर के राज दरबार में एक यात्री राजा कॄष्णदेव राय से मिलने के लिए आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने यात्री ...
प्रेम परिभाषा से परे - रणजीत कुमार की कविता
जब प्रश्न ही उत्तर हो तो फिर ये कैसी जिज्ञासा है प्रेम अनुभव ही मात्र है तो कैसी परिभाषा है जब अस्तित्व ही जीवन का है प्रेम...
फुटकल रचनाएँ - हिन्दी साहित्य का इतिहास
प्रकरण ४ फुटकल रचनाएँ वीरगाथा काल के समाप्त होते-होते हमें जनता की बहुत कुछ असली बोलचाल और उसक...
खाने के बाद लेटना - अकबर बीरबल के किस्से
किसी समय बीरबल ने अकबर को यह कहावत सुनाई थी कि खाकर लेट जा और मारकर भाग जा-यह सयानें लोगों की पहचान है। जो लोग ऐसा करते हैं, जिन्दगी में उ...
गृहकाज - सुमित्रानंदन पंत की कविता
आज रहने हो यह गृहकाज प्राण! रहने हो यह गृहकाज! आज जाने कैसी वातास छोड़ती सौरभ-श्लभ उच्छ्वास, प्रिये, लालस-सालस वातास, जगा रोओं में सौ अभिला...
sumitranandan pant
आज रहने हो यह गृहकाज प्राण! रहने हो यह गृहकाज! आज जाने कैसी वातास छोड़ती सौरभ-श्लभ उच्छ्वास, प्रिये, लालस-सालस वातास, जगा रोओं में सौ अभिल...
वीरगाथा काल - हिन्दी साहित्य का इतिहास
वी रगाथा काल ( संवत् 1050 - 1375) प्रकरण 3 देशभाषा काव्य पहले कहा जा...
निर्मला (२३) - प्रेमचंद के उपन्यास
मुंशीजी पांच बजे कचहरी से लौटे और अन्दर आकर चारपाई पर गिर पड़े। बुढ़ापे की देह, उस पर आज सारे दिन भोजन न मिला। मुंह सूख गया। निर्मला समझ गय...