यू. आर अनंतमूर्ति की कहानी - कामरूपी

SHARE:

यू. आर अनंतमूर्ति  हेलन अभी कच्ची उमर की ही है। शीशे के सामने अठखेलियाँ करती नाच रही है। सड़क के आवारा छोकरों को द...

यू. आर अनंतमूर्ति 
हेलन अभी कच्ची उमर की ही है। शीशे के सामने अठखेलियाँ करती नाच रही है। सड़क के आवारा छोकरों को देखकर डांस के सीखे स्टैप्स करते हुए उसे अपने शरीर की थिरकन निहारना सुखद लगता है; वह निर्लज्ज-सी सोच रही है कि उसकी ओर कोई क्यों नहीं देखता। वह एक-चौथाई बच्ची भले ही हो, पर तीन हिस्से तो स्त्री ही है। नाज़-नखरों और अदाओंवाली इस लड़की की एकाग्रता को भंग न करें। आगे वह एक पूरी नागरिकता को ही भस्म कर डालने की शिक्षा पा रही है। यह येट्स का कथन है। मेरे सामने से गुज़रा एक कामरूपी मुझे लिखने को विवश कर रहा है।
उस व्यक्ति ने एकाएक भीतर घुसकर चारों ओर नज़र दौड़ाई। भटकती नज़र एक सोफे से दूसरे तक दौड़ती रही। सामने के आदमकद शीशे के सामने उसने अपनी मूँछे करीने से ऊँची कीं और बालों को सँवारा। मेरा ध्यान खींचने के लिए अपने को ठीक-ठाक किया। भौंहों के नीचे अपनी आँखों को पूरी तरह खोलकर दिखाने का व्यर्थ प्रयास किया। फिर से बाएँ घूमकर हठात सामने घूमा। हँसी से भरे पोपले मुँहवाली गांधी जी की फोटो के नीचे, चौकोर काँच की मेज पर रखे सफेद रंग के फोन पर हम दोनों की नजर पड़ी : कहीं से अचानक भीतर घुस आए उस झींगुर की तरह, जो दिशाहीन होकर कहीं से कहीं उड़ता हुआ जहाँ-तहाँ टकराता धप्प से आ गिरे। फोन और गांधी के सामने खड़े होकर उसने अपना ब्रीफकेस लाल सोफे पर फेंककर मेरी ओर देखा। इस प्रकार हम लोगों की बातचीत शुरू हुई।
हैदराबाद के हवाई अड्डे के लाउंज में मैं अकेला हवाई जहाज की प्रतीक्षा में बैठा था, तभी इस महानुभाव के दर्शन हुए। सफेद टाइट पैंट और बुश्शर्ट - दोनों ही खादी के थे। वी.आई.पी. लाउंज के योग्य सज्जनता के लक्षण उसके मुख पर दिखाई नहीं दिए, फिर भी खादी के कपड़े पहने था इसलिए उसमें अहैतुक साहस रहा होगा। मैंने सोचा, शायद वह मेरे बेटे की उम्र का हो। पर पिचके गालों और भटकती लालची आँखोंवाले ऐसे लोगों की आयु का निश्चित अनुमान करना कठिन होता है।
मैं कुंदेर की पुस्तक 'सर्वग्राही संवेदना' पढ़ रहा था। मुझ पर शायद उसका प्रभाव रहा होगा। उसने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में लगातार जो कुछ कहा, मैं उसको नज़रअन्दाज़ नहीं कर सका। एक वाहियात-सा कैमरा मेरी तरफ़ बढ़ाकर उसने मुझे बताया कि उसे कहाँ से कैसे थामना है और किस स्थिति में कैसे-किस बटन को दबाकर फोटो खींचनी हैं। फोटो खींचने से पहले अपने ज़रा-ज़रा उभरे दाँतों को ढाँकने का प्रयास करते हुए अपनी अपेक्षाओं को मुझ तक पहुँचाने और उन पर मेरी प्रतिक्रियाओं से बे-परवाह उसकी स्वप्रतिष्ठा के बारे में मैं जो देख सका, वह था उसका अपना स्वार्थ-साधन। टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में अपनी बात कहते हुए उसने मुझ नितांत अपरिचित की विनम्रता को बिना किसी 'डाउट' के स्वीकार कर लिया था।
"वहाँ मिस्टर, वहाँ - गांधी जी के फोटे के नीचे! मैं वहाँ सोफे पर बैठूँ और फोन उठाकर हँस-हँसकर बातें करते हुए ज़रा मूड बना लूँ, तब आपको गांधी जी की फोटो, लाल सोफा-सेट, ज़रा-सा हरा कार्पेट, पासवाली काँच की मेज़, फूलदान में लगे गुलाब और मेरा स्टाइल - इन सबको फोकस करके मेरा स्नैप लेना है।"
एक आँख मूँदकर मैंने बड़ी विनम्रता से उसका स्नैप लिया। इससे उत्साहित होकर उसने कई तरह के पोज़ और मुख-मुद्राओं के फोटो खिंचवाये। एक बार 'चप्पंडि चप्पंडि' (कहिए, कहिए) कहकर खिलखिलाकर हँसा भी।
अब वह अपने जीजा के घर में बैठा है। यह जीजा उसके स्वजातीय मंत्री का पर्सनल असिस्टैंट है। वह मिनिस्टर उसका इतना घनिष्ठ है कि यह उसी के घर में नहाता-धोता है।
शायद मुझे विनीत बनाने के लिए या फिर अपने मुख पर यशोलक्ष्मी की कृपावली मुद्रा लाने के लिए वह इस तरह की बातें अंग्रेज़ी, तेलुगु और हिंदी में लगातार करता रहा और अपने उन मूडों को व्यक्त करनेवाले फोटो मुझसे खिंचवाता रहा।
रील की आखिरी फोटो में वह फोन सुनता हुआ कुछ नोट कर रहा था। (इस बार उसने अपने ब्रीफकेस से एक पुड़िया निकालकर माथे पर कुंकुम लगा लिया था।) ऐसे में खुद मिनिस्टर ही यहाँ आ जाते हैं। वह ज़रा-सा उठकर उनको हाथ के इशारे से बैठने को कह रहा है। एक यह पोज़ था।
जिस भविष्य की वह कल्पना कर रहा था, मेरे माध्यम से उसी की अपनी इच्छा वह पूरी कर रहा था। फिर वह अपना ब्रीफकेस लेकर उठ खड़ा हुआ। उसने कैमरे से रील निकालकर सावधानी से उसे डिब्बे में लपेटकर रख लिया।
लेकिन उस शनि ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। कुंदेर को पढ़ने के बहाने मैं अपनी पूर्व मानसिक स्थिति में लौटना चाहता था, पर वह बगल की कुर्सी पर ही आ बैठा। उसने अपने ब्रीफकेस में से साज-सामान निकाला।
सामने आदमकद शीशा लगा था। दूसरों का लिहाज करने की मेरी प्रवृत्ति के कारण उसे डींग मारने का अवसर मिल गया। मेरी आँखों से आँखें मिलाकर उसने अपने मुँह मियाँ-मिठ्ठू बनना शुरू कर दिया। उसका सिर-पैर जाने बिना मैं उसकी बातों में दिलचस्पी दिखाने लगा। मैं कौन हूँ, उसने यह पहले ही पता लगा लिया था। वह अपनी शेखी बघारने में लग गया। मुझे याद नहीं उस समय मैंने अपने आपको क्या समझ रखा था। पर उसने मुझ जैसे कइयों को अपने मंत्री जी के चैंबर में देख रखा था। मैंने उसकी जो तस्वीरें खींची थीं वे उसकी दैनिक चर्या को ही व्यक्त करनेवाली थीं। 'देखिए' कहकर उसने अपना एलबम खोला।
एक चित्र में वह फर्नांडिस के गले में हार पहना रहा है। देश-सेवा के अपने प्रथम चरण में वह ऐसे पक्ष में है जिससे एक पैसे का फ़ायदा नहीं। इसमें तो धूल ही नसीब होती है। ऐसा चित्र था वह। दूसरी फोटों में वह एन.टी.आर. के चैत्ररथ का अगुआ है। हाथ उठा-उठाकर जय-जयकार कर रहा है। उसका एक स्वजातीय लीडर तेलुगुदेशम पार्टी में मंत्री बन गया था इसलिए लाचार उसे उसके साथ जाना पड़ा। यह उस समय की फोटो थी। एक और चित्र में वह सिर और मूँछें मुड़ाकर पेड़ की उन जड़ों-सा दीख रहा था जिन पर जमी मिट्टी धुल गई हो। राष्ट्रपति के साथ तिरूपति जाकर इनके लीडर ने भी सिर मुँडवा लिया था। तब इसने भी वैसा ही किया था। तब की तस्वीर है यह।
बाकी जीराक्स प्रतिलिपियाँ हैं। किसी-किसी मंत्री के, किसी-किसी व्यक्ति के लिए : हो सके तो काम दीजिए वाले अभिप्राय के सिफ़ारिशी पत्र। उसमें यह भावना थी कि इसके परोपकारी स्वभाव के कारण ही यह सब चल रहा है। आन्ध्र के मंत्रियों के अलावा उसने केंद्र के मंत्रियों के भी पत्र दिखाए। अब वह कांग्रेस में हैं। यूथ कांग्रेस का वही सेक्रेट्री है। बैकवर्ड सैल के मंत्री के लिए वही स्पीच लिखता है। जीजा पर मंत्री का बहुत स्नेह है। पर जीजा जी को अंग्रेज़ी नहीं आती, इससे बिना जीजा का काम नहीं चलता इत्यादि बातें मेरे सामने क्षण-भर में साफ़ हो उठीं।
मुझे वह कथाकार लेखकों के गले पड़नेवाले कॉमिक के पात्र जैसा लगा। मैंने उसका नाम नहीं पूछा। स्वयं आगे बढ़कर हाथ पसारकर वह बोला - मैं, शंकर बाबू, यूथ कांग्रेस का लीडर। मुझे ऑल इंडिया बैकवर्ड सैल के इनवाइटी के रूप मंत्री जी ने नॉमिनेट किया है।
"आपका 'एड्रेस' देखकर मुझे 'होप' हो गई।" बाद में खड़ा होकर हँसता हुआ वह बोला : "आप जैसे 'गेट ऑन' व्यक्ति बिना सूट-टाई के तो पत्नी से भी नहीं मिलते।" उसकी बात सुनकर मैंने सोचा कि आगे से कुर्ता-पाजामा नहीं पहनना चाहिए। लाउंज में चक्कर लगाते हुए वह मेरे बारे में कहने लगा, "आप एक सफल आदमी हो।" यह वह देखते ही जान जाता है कि कौन क्या है। इसके बिना इस ज़माने में राजनीति में रहना संभव नहीं। "सफल होने के लिए क्या सिर्फ़ प्रतिभा ही काफी है? ऊपरवाले की कृपा होनी चाहिए।" दिल्ली के विमान की प्रतीक्षा में बैठा मैं, उसे बड़ा 'फ्रेंडली' लगा। "हमारे प्रधानमंत्री जानते हैं कि आप जैसे लोगों को कैसे इस्तेमाल करना चाहिए। मैं तो इस समय पीठ-पीछे हाथ बाँधकर प्रतीक्षा करता रहता हूँ।"
मित्र शंकर बाबू को यह पता लग गया होगा कि उस समय मेरा ध्यान वहाँ नहीं है। यह देखकर उसने एकदम हाथ से लिखा दीखनेवाला परंतु प्रिंट हुआ राजीव गांधी का ग्रीटिंग कार्ड दिखाया। उसने शीशे से यह देख लिया कि जिस प्रभाव की उसे आशा थी वह पड़ चुका है। बाद में उसने एक बहुत बड़ा चित्र दिखाया। वह किसी विवाह का चित्र था। जब मैंने वह चित्र देखा तब उसकी इच्छा कुछ और थी और मेरे मन में कुछ और। चित्र में एक सुंदर दुल्हन ने अपनी छाती पर मोटी-सी चोटी डाल रखी थी। लड़की काली थी। उसके प्रत्येक अंग पर सोना लदा था फिर भी वह मुझे एक शापग्रस्त सुंदर देवकन्या-सी जान पड़ी। उसके सामने एक बड़ी तोंदवाला खड़ा था। उसकी गर्दन पर तह-पर-तह चरबी चढ़ी हुई थी। खिजाब लगे बालोंवाली आधी सफाचट खोपड़ी। उसकी मोटी तोंद पर चढ़े चमकदार रेशमी कुर्ते में वह वी.आई.पी. एक मदमाता रसिक जान पड़ा। हाथ जोड़कर उसके खड़े होने से लगता था कि वह किसी की प्रतीक्षा में हो, ऐसा नहीं लग रहा था। वह एक दृष्टि में अटकी शिलामूर्ति-सा लगा। बाद में सोचते हुए मेरे मन में पंखुड़ियाँ-सी खुलने लगीं।
शंकर बाबू उस मोटे का परिचय देने को आतुर था। पर मैंने उस शापग्रस्त कन्या जैसी दीखती लड़की के बारे में प्रश्न करना शुरू कर दिया। आपकी बहन का नाम क्या है? क्या पढ़ी-लिखी है? वह भाग्यशाली निजी सहायक आपके जीजा ही हैं। हाँ, और ये मंत्री हैं यह भी आपके बताये बिना ही मैं समझ गया हूँ। आपकी बहन की अब कोई संतान है? उसकी रुचियाँ क्या हैं?
पर वह उठकर खड़ा हो गया। पीठ-पीछे हाथ बाँधकर बड़ी शान से मंत्री के बारे में बखान कर रहा था - ये पूजा किए बिना कॉफी तक भी नहीं छूते। सबसे बढ़िया टेलर से ही वे अपने कुर्ते सिलाते हैं। अपनी जाति में सेकेंड लाईन ऑफ लीडरशिप होना चाहिए, कहकर उसे आगे ला रहे हैं। उन्होंने ही अपने खर्चे से शादी करायी। पाँचेक कैबिनेट में वे मंत्री रहे हैं। नेक्सलाइट भी उनसे डरते हैं। सभी बैकवर्ड लोगों से उन्हें प्यार है। "सरोज, जरा कॉफी बना दो" कहते वे सीधे रसोई में ही पहुँच जाते थे।
अंतिम वाक्य में भूतकाल का प्रयोग सुनकर मेरा कौतुहल और भी जाग पड़ा। जब उसने बहन की बात उठायी तब से मैं उसके लिए एक श्रोता भर था। अब उसके बात करने का लहजा बदल गया था मानो मैं अब नेक्सलाइटों की धमकियों के बारे में केवल एक श्रोता होऊँ। इसने मंत्री महोदय को एक भाषण लिखकर दिया था 'लॉ एंड ऑर्डर' के बारे में।
उस भाषण का विषय था नेक्सलाइट लोगों की धमकियों का मुकाबला कर पाना संभव नहीं, यह भी एक स्वर था। पिछड़ी जाति की समस्याएँ अभी हल करनी हैं। मेरी माँ, जो इतनी रीलिजस थी, वह भी अब नेक्सलाइटों की प्रशंसा करने लगी हैं। मेरी बहन भी अब उनसे मिलने को क्यों तैयार हो रही है?
शीशे के सामने भटकती उसकी छोटी-छोटी आँखें जब मेरा सामना करने लगीं तब मैंने कठोरता से पूछा, "कौन-सी-बहन?"
उसे तनिक तसल्ली हुई। बैठकर उसने ब्रीफकेस से एक और चित्र दिखाकर कहा, "यह चित्र मैंने उसके अनजाने में ही खींचा है।" यह कहकर उसने मुस्कराकर मुझे उत्साहित-सा किया।
उस चित्र में मैंने देखा - सुखाने को छाती पर बिखराये घने चमकते काले बाल। उसके शरीर पर नाम को भी एक आभूषण न था। यहाँ तक कि कान में बालियाँ भी न थीं। सादी हथ-करघे की साड़ी पहले स्नानघर से बाहर निकलती हुई दीख रही थी। उसे देखने से लगता था कि गुस्सा नाक पर ही धरा है। वह एकदम जलती पांचाली-सी दीख रही थी। बड़ी बहन के समान शापग्रस्त सौम्य देवता नहीं। फ्लैश से हैरान हुई विस्फारित आँखों की कठोर दृष्टि से भाई को जलाये डाल रही थी। काला मुख, काले बाल, चमकती आँखें! देखने से ऐसा लगा जैसे घने बादल हों।
"यही गीता है। सबसे छोटी बहन। रोज घर-आँगन बुहारकर पोंछा लगाती हैं। बड़ी अच्छी रंगोली भी डालती है। अब इसी ने नेल्लूर में हमारे कुल के लोगों को एकत्रित करके शराब की दुकाने बंद कराने की क्रांति की है।" यह कहकर उसने व्यंग्यभरी हँसी हँसते हुए एक दीर्घ विश्लेषण करने को विवश कर दिया था।
वह किसी भी विश्लेषण के बारे में हो सकता है। पर दु:खी मानव-व्यवस्थाओं के दोषों के बारे में, मानव इतिहास के कलंक के प्रति शंकर बाबू को किसी प्रकार की परवाह न थी। पर उसकी बातों में यह बात आभासित हो रही थी कि हमारे जैसे लोग उसकी आगे की बहस में रुचि ले सकते हैं। "डेमोक्रेसी की आपको ज़रूरत नहीं। चुनाव के बिना डेमोक्रेसी बची रहेगी? चुनाव के लिए पैसे नहीं चाहिए? वे कहाँ से मिलेंगे? काले धन से ही न? आगे डेवलपमेंट के लिए रेवेन्यू नहीं चाहिए क्या? वह कहाँ से आएगा? काले पैसे से ही न?
"मोस्ट ऑफ इट! उसमें ज़्यादा-से-ज़्यादा शराब की बिक्री से। इन नेक्सलाइटों को भी क्रांति के लिए बंदूकें कहाँ से मिलती हैं? ड्रग के पैसे से। पाकिस्तान से, चीन से, जर्मन-विद्रोह से, लेनिन ने क्रांति की थी न? गांधी जी को भी पैसा बिरला से ही मिलते थे न? पर उसे पैसे कहाँ से मिले थे? आकाश से बरसे थे क्या? आप जैसे लोग इंग्लैंड से पढ़कर अपने को सज्जन कहकर इतराते नहीं - उन देशों के पास जो पैसा आया है वह भी तो गरीब देशों का खून चूस कर ही तो आया है। इसी तरह साई बाबा जो अस्पताल बना रहा है, या तिरूपति के तिम्मप्पा का भंडारा - "
मैं वाद-विवाद में हिस्सा नहीं ले रहा था, यह देखकर शंकर बाबू ने अपने आप हँसना शुरू किया : "यह क्या, सर? आप जैसे लोगों से मैं जरा अंग्रेज़ी सीखना चाहता हूँ तो आप यों चुप हो गए! मैं आपकी तरह फॉरेन गया नहीं। संडे, इंडिया टुडे, फाइनांशियल एक्सप्रेस -जो भी हाथ लगता है, उसे पढ़कर मैंने अंग्रेज़ी सीखी है। हमारे ऑफिस में ई.पी.डब्ल्यू. पत्रिका आती है। भले ही मैं आपको इम्प्रैस नहीं कर सका पर हमारे मंत्री जी के लिए मैं ही ब्रेन हूँ। ये सब विचार मैंने उनको लिखकर दिए और उसी बात को लेकर वे बोलते हैं और आप जैसे लोग बड़ी गंभीरता से उसका विश्लेषण शुरू करते हैं। उनके बारे में आप ही कल ई.पी.डब्ल्यू. में लिखेंगे।"
ख़ैर, उसके इतना ज्ञान बघारने पर भी मैं उससे प्रभावित नहीं हुआ।
पर मैंने जानबूझकर जम्हाई लेते हुए कहा, "मैंने तो आपकी बड़ीवाली बहन के बारे में पूछा था, पर आपने उस बारे में कुछ कहा ही नहीं!"
"क्या बताऊँ, मेरा दुर्भाग्य! शादी के एक महीने बाद ही वह चल बसी।" धरती पर आँखें गाड़े शंकर बाबू ऊपरी मन से बोला, "उसने सुसाइड कर ली। मेरी सारी फजीहतों का वही कारण है।"
कामरूपी अपने असली रूप में एक क्षण-भर के लिए ही सही मुझसे बात करेगा, मेरा यह सोचना भ्रम ही रहा। उसे मुझसे क्या चाहिए था। क्षण-भर में ही उसकी आँखें शीशे से सोफा और सोफे से शीशे तक भटकने लगीं। उसका भाषण बड़ा साफ-सुथरा था। सरोज मनोरोगी रही होगी।
"हमारा घराना शिक्षित नहीं था। माँ को पता ही नहीं चला। मेरा तो सारा समय समाज-सेवा में ही चला जाता था। रोज दौड़-धूप लगी रहती। उसके लिए कोई कमी न थी। यहाँ तक कि रसोईघर में आकर मंत्री महोदय कॉफी माँगते थे। सास-ससुर का कोई झंझट नहीं था। जो चाहिए वह साड़ी, शरीर भर कर गहने -"
मेरा स्वर काँप उठा। मैंने जरा कटु होकर कहा, "आप अच्छी तरह जानते हैं कि वह क्यों मरी। अगर आप मुझसे बात करना चाहते हैं तो सच सच कहिए।"
शंकर बाबू के हाव-भाव बदल गए। अपरिचित व्यक्ति के प्रति जो किंचित मात्र नम्रता रहनी चाहिए, वह भी उड़ गई। घनिष्ठता में जो घृष्ठता राहती है उसी ढंग से मुझे भी एक सभा मानकर वह मेरे सामने आ खड़ा हुआ। कनखियों से शीशे में देखते हुए किसी दूसरे से बात करने की तरह मुझसे कहने लगा।
उसकी कच्ची आयुवाली बहन गीता की तरह मुझे बात करते देखकर उसे आश्चर्य हुआ। "बिना नीति खोये भी कुछ लोग सफल होते हैं। उदाहरण के लिए आप ही को लीजिए।" कहकर फिर से अपनी गलत-सलत अंग्रेज़ी में उसने कहना शुरू किया।
उसकी बात से यह ध्वनित हो रहा था कि वह अंग्रेज़ी में बात करने की प्रैक्टिस के लिए बात कर रहा है। उसके इस कटु सत्य को मुझे सह भी लेना चाहिए।
टेबल के पीछे मंत्री जी बैठे हैं। वहाँ एक कोने में बैठा सब देख रहा है। "उदाहरण के लिए आप! आप नहीं तो आपकी क्लास का कोई और। वहाँ आते हैं। खड़े होकर झुककर नमस्कार करते हैं। (शंकर बाबू दाँत निपोरता हुआ हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़ा हो गया) मंत्री जी आराम से सिर उठाते हैं। आँख से बैठने का इशारा करते हैं। तब मैं डरता-डरता बैठ जाता हूँ। (शंकर बाबू सामनेवाले सोफे पर अपराधी की भाँति सिर झुकाये दुबककर बैठता है।) अब मेरे लिए समस्या है। अंग्रेज़ी में बात करूँ? या फिर तेलुगु में? तेलुगु में बात करने से यह भाव निकलता है कि मंत्री जी को अंग्रेज़ी नहीं आती। इसलिए मैं अंग्रेजी में शुरू करता हूँ।
"सर, आपका नेक्सलाइटों के द्वारा पहुँचाई हानि का विश्लेषण बहुत बढ़िया था। राजनीति में डाक्टेट लेनेवाले हम जैसों की भी आप जैसी इनसाइट नहीं। (अब शंकर बाबू अपना स्वर बदलकर, 'वह स्पीच इस पूअरमैन ने लिखी है' कहकर अपनी ओर उँगली से इशारा करता है) मंत्री जी बेशर्म होकर फूल उठते हैं। ऐनक साफ़ करके पहन लेते हैं। तेलुगु में ही कहते हैं, "मित्रता बनाये रखिए। मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?" तब मैं 'हाँ' 'हूँ' करता खखारकर गला साफ करता हुआ प्रार्थना करता हूँ (शंकर बाबू ने मेरे स्वर की नकल की)। "लास्ट टाइम ही मुझे पब्लिक सर्विस कमीशन का चैयरमैन बनना था, सर। हमारे मुख्यमंत्री को बैकवर्ड लोगों में दिलचस्पी नहीं है, सर। एक भी बैकवर्ड किसी युनिवर्सिटी का वी.सी. नहीं बना। आप तो बैकवर्ड लोगों का साथ नहीं छोड़िए। आप ही पर हम लोगों का विश्वास है। इस समय पी.एस.सी. में मुझे चांस देना ही होगा, सर।"
मंत्रीजी हँसते हैं। (शंकर बाबू ने मंत्री जी की नकल करते हुए)" आप अपनी सारी डिटेल्स हमारे पी.ए. को दे दीजिए।" कहकर विदा देने की मुद्रा में मंत्री जी के चले जाने के बाद हाथ जोड़ता है।
"तब तो आप जैसे नीति पर चलनेवाले भी मेरे जीजा के चेंबर में जाते हैं। उस समय हमारे जीजा इस तरह बैठे रहते हैं।"
उसने अपने ब्रीफकेस से एक और चित्र निकालकर दिखाया जो मेरे लिए एक आश्चर्य की चीज़ थी। जीजा भी लाल सोफे पर सफ़ेद फोन कान पर लगाए बैठे हैं। पास एक फूलों का हार रखा है। उनके माथे पर भी कंकुम लगा है। पर उनके पीछे की दीवार पर चरखा कातते गांधी जी की फोटो लगी है। उसके जीजा भी 'चप्पंडि, चंप्पंडि' कहते होंगे। शंकर बाबू ने वह फोटो जीजा के एक्शन में रहते ही ली होगी।
"जीजा को अंग्रेज़ी नहीं आती। मुझे ज़ोर से बैठ जाने को कहता है। मुझसे सारा ब्यौरा लेकर घर आकर मिलने को कहता है।" शंकर बाबू की आँखें प्रश्नार्थक रूप से उठी : "आपको मालूम नहीं? एकदम मालूम नहीं? अगर आप इतने मूर्ख हो तो 'गैट ऑन' कैसे होओगे। आज के ज़माने में बिना पैसे चटाये कोई काम होता है क्या? बैंक स्कैम में किसका हाथ ऊपर है? आप जैसे साउथ इंडियन ब्राहृमणों का ही न। गैट ऑन, गैट ऑनर, गैट ऑनेस्ट, यही ज़माने की तीन डिग्रियाँ हैं। मैं पहले ही स्तर में तड़प रहा हूँ। आप तीसरी स्टेज में पहुँच गए। मेरा जीजा भी पहुँच जाएगा। वह अपने गाँव में एक अनाथालय बनवाना चाहता है, रास्कल..."
इस प्रकार बातें करते हुए चेतना का उत्स-सा बनकर हल्का होकर वह काले शरीरवाला व्यक्ति इधर-उधर देखता लाउंज में चक्कर काटने लगा। मैं उसी को देखता गम्भीरता से बैठा था। कहावत है जो मान-मर्यादा छोड़ देता है वह भगवान के समान हो जाता है।
उस कंबख्त शनि से उसी दिन अखबार में छपी बच्ची अमीना की बात उठाकर मुझमें विद्रोह की भावना जगाकर मुझे दुर्बल क्यों बना दिया? यह मुझे उसके दफा होने के बाद पता चला। उसके दफा होने से पहले वह करुणा उत्पन्न करनेवाला किसी दूसरे व्यक्ति-सा लगा था।
"बलात्कार के कारण ही अमीना ने खाड़ी के एक बूढ़े से विवाह किया, यह तो सच है। अगर वह यही बात कोर्ट में कह देती तो उसके बाप को ज़रूर जेल जाना पड़ता। वह बेचारा रिक्शा-चालक था। उसके ढेर-सी बेटियाँ थीं। बाप अगर जेल चला जाता तो उनका क्या बनता? बस, वेश्या ही बनना पड़ता। शक्तिशाली ऊँची जातिवाले अमीर उसका दुख समझ नहीं सकते पर वह सरल बच्ची समझ गई। इसलिए बेचारी ने 'मैंने ही अपनी इच्छा से इस बूढ़े से शादी की' कह दिया। असल में सैक्रीफाइज माने यही होता है। एअरपोर्ट लाउंज में बैठकर हमारे लिए और आपके लिए ऐसी बातें करना वड़ा आसान है ब्रदर। पर अमीना जैसी लड़की का अपना जीवन ही अपने परिवार के लिए त्याग देना - "
शंकर बाबू ने गंभीरता से अपना मुँह शीशे में कनखियों से देखते यह कहानी बड़े गदगद स्वर में कही। बाद में उसने मेरी आँखों से जब आँखें मिलायीं तो उसके चेहरे का रंग बदल गया। घनिष्ठता के कारण उसके पूरे दाँत उसकी मोटी-मोटी मूँछों के नीचे से झलक गए। आँखों में चंचल रसिकता झाँक गई। बगल में बैठकर मेरे कान के पास आ गया। उसके अपने सिर में लगाए पता नहीं किस कंबख्त तेल की खुशबू से मेरी नाक फटने लगी। उसने अपना एक हाथ मेरी बाँह पर रखकर और पास खिसककर धीमें स्वर में कहा- "कुछ लड़कियों को बूढ़े ही पसंद आते हैं। आपका क्या ख़याल है?" ज़रा रुककर मुझे ही देखते हुए 'मिस्टर' कहकर शब्दों को चबाते हुए आँख मारी। सिगरेट सुलगाकर धुआँ निकालकर सीटी बजाता हुआ मुझे भी सिगरेट देने लगा।
वह मेरे बेटे की आयु का होगा। मुझे लगा वह एक गंदा पुराने ज़माने का बूढ़ा है।
मैंने उसको लात मारकर बाहर क्यों नहीं निकाल दिया, यह सोचकर मुझे आज शर्म आती है। कहानी सुनने का कौतुहल जो मुझमें पैदा हो गया था वह शायद मुझे ही लात मारने की शक्ति रखता था, यह सोचकर मुझे ही डर लगा। किसी भी चीज़ को देख सकनेवाली या दिखा सकनेवाली हो सकती है। इस प्रकार मैं उसकी गलीज नज़रों से घबरा रहा था। तभी याद आयीं बूढ़े एट्स की अदम्य कामुकता भरी कविताएँ। जर्जर बूढ़ा बदमाश लड़की से कहता है, पठ्ठे जवान छोकरे सुख लूट तो सकते हैं पर सुख न दे सकनेवाले कामुक हैं। मेरे पास आ और देख सुख क्या है। ऐसी बातें लिखनेवाला, लार टपकानेवाला कवि मुझे असह्य लगने लगा। तभी शंकर बाबू ने घनिष्ठता से मेरी ओर देखकर सिगरेट का कश लिया।
मेरा दुर्भाग्य यह है कि यह कहानी यहीं समाप्त नहीं हुई। लाउंज के भीतर घुसते समय शंकर बाबू किसी दुविधा में फँसा था - या फिर मुझे ही ऐसा लग रहा था।
उसकी सुनायी कहानी का सारांश यह है :
उसके पिता की जाति का पेशा मकान बनाने की मिस्त्रीगिरी था। वह भी माँ के साथ वहीं, काम करता था। बाप की कमाई पीने में ही उड़ जाती थी। माँ की कमाई से सबका पेट चलता था। उसीसे उसकी और उसकी बहनों की पढ़ाई चली। पिता लीवर डैमेज हो जाने से मर गया। (यह कहानी मेरे अंदर करुण रस पैदा करने के लिए शंकर बाबू ने ज़रा ऊँचे स्वर में ही सुनाई, आगे अपना साहस दिखाने को पीठ पीछे हाथ बाँधे खड़े होकर) शंकर बाबू ने देशसेवा की प्रेरणा अपनी जाति के मंत्री जी से पाई। अपने बुद्धि-चातुर्य से यह उसका ब्रेन बन गया और घर के लिए आवश्यक सभी सामान मुहय्या करने लगा। जब घर की व्यवस्था सुधरने लगी तब मंत्री महोदय ने ही ज़रा रुचि लेकर सरोज का ब्याह अपने निजी सहायक से करा दिया। उसकी जाति में पढ़े-लिखे लोग कम होने से उसे सरोज से बढ़िया पत्नी नहीं मिल सकती थी। सरोज के लिए भी उस बास्टर्ड से बढ़िया स्थितिवाला दूसरा नहीं मिल सकता था। (यह बास्टर्ड शब्द उसी के मुँह से निकला था।)
अब शंकर बाबू एक उलझान में फँस गया था। उस बास्टर्ड की एक ही हठ है। छोटी बहन गीता से उसकी दूसरी शादी करा दो। मंत्री महोदय भी वहीं आग्रह कर रहे हैं। वे मुझे सैकिंड लाइन ऑफ लीडरशिप के लिए तैयार करना चाहते हैं न।
शंकर बाबू इस बात की चर्चा घर में उठा नहीं सकता था। माँ मंत्री और जीजा को ऐसी - ऐसी गालियाँ देती है जो कि सिर्फ़ उसकी ही जाति में संभव है। वह भी बीमार रहती है - हार्ट वीक है, ब्लड प्रेशर, 'डायबटीज'। पैसा क्या आकाश से बरसता है? जीजा ही दे सकते हैं। पर माँ कहती है : उस हरामजादे की पाप की कमाई नहीं चाहिए। मैं आस-पड़ोस के घरों में चौका-बर्तन करके कमा लूँगी। गीता भी 'मैं नेल्लूर में अपनी जाति के लोगों के साथ रहकर क्रांति करूँगी', कहती है। एकदम डरपोक है, रात को माँ के साथ ही सोती है। पर कॉलेज में उसकी संगति ठीक नहीं, बस।
"जीजा भी इंतज़ार करते-करते थक गया। मुझे भी 'घर में पाँव मत रखना' कह दिया था। उस हरामजादे करप्ट मंत्री ने भी मुझसे बात करना बंद कर दिया था।" कल सुबह शंकर बाबू मान-मर्यादा ताक पर रखकर जीजा के पास बंगले में गया। जीजा पूजा कर रहा था। बास्टर्ड पूजा किए बिना कॉफी भी नहीं पीता। शंकर बाबू धीरे से सीधा रसोई में गया। उसकी पसंद की फिल्टर कॉफी तैयार करके इंतज़ार करने लगा। कॉफी बनाने में सरोज पारंगत थी। हर बात में ब्राह्मणों जैसी। बास्टर्ड जीजा कुंकुम चंदन लगाकर अपनी हर रोज़ की कलेक्शन के लिए चमचमाती पेंट-बुश्शर्ट पहनकर तैयार हो गया। स्टेनलेस स्टील के गिलास में मैंने महकती कॉफी सोफे के सामने तैयार करके रखी थी। उसने रोते से स्वर में पूछा, "गीता मान गई क्या? मंत्री मुझे डिसमिस कर देंगे। उनकी तो एक ही ज़िद है।" शंकर बाबू ने माँ की बीमारी बताकर आँसू गिराए। (मेरी सहानुभूति पाने को शंकर बाबू अपने और जीजा दोनों के हाव-भाव दिखा रहा होगा - यह शक मेरे मन से हटा नहीं)
"गीता मान जाएगी। उसे हमारे मंत्री जी के क्रांतिकारी विचारों में विश्वास है।" इस प्रकार शंकर बाबू ने रील छोड़ी। माँ की दवा-दारू के बहाने उस कंजूस से एक हज़ार रुपए ऐंठें। वह नए-नए ताज़ा नोटों की गड्डी थी। (ब्लैक मनी बड़ा शुभ होता है ब्रदर" कहकर एक हँसी की फुलझड़ी छोड़ता आगे चल दिया।)
उस दिन पूरे समय हैदराबाद के स्लमों में घूम-घूमकर जो काम करना था, किया। उसकी बात सुननेवाला एक दल है। नेक्सलाइट भला क्या खाकर इनके सामने टेरर पैदा करेंगे? गीता ओर उसके दोस्तों को डराने-धमकाने का प्लान उस दल को बताकर शाम को घर गया। माँ रसोई में खाँसती हुई दूध गरम कर रही थी। दूध स्टोव पर रखा था। गीता कुछ पढ़ती हुई नोट बना रही थी। सदा की तरह उसके बाल बिखरे थे और साड़ी फटी हुई थी।
"माँ" कहकर उसने पुकारा। फिर धीरे से बोला : "यह लो एक हज़ार हैं। ये तुम्हारे ट्रीटमेंट के लिए हैं, जीजा ने दिए हैं। गीता को मनवा लो कहा है।" यह कहकर शंकर बाबू चुप खड़ा हो गया।
पर एकदम से वह बिखरे बालोंवाली गीता उठ खड़ी हुई। वह चंडी-सी दीख रही थी। बड़े भाई के हाथ से हज़ार की गड्डी छीन ली। आँधी की तरह स्टोव की ओर बढ़ी। खाली हाथों से ही उबलते दूध का पतीला उतारकर पटका और नोटों की गड्डी जलते स्टोव पर रख दी।
यह सब सुनाते समय शंकर बाबू मुझे वास्तव में दिग्भ्रांत-सा दीखा। पूरे दिन मजदूरी करने पर भी माँ को दस रुपए मजदूरी नहीं मिलती। पैसा-पैसा जोड़कर बाप से छीन-झपटकर कुछ पैसे ले लेती। पर ऐसी माँ भी नोटों की उस गड्डी में आग लगते देखकर चुप थी। गीता उस गड्डी को ऐसे देख रही थी मानो उस गड्डी के साथ भाई को भी जला डालेगी। दोनों हाथ ज़मीन पर टिकाये माँ चुपचाप बिलख रही थी। बुढ़िया का दिमाग़ ख़राब हो गया था। पहले तो शंकर बाबू हक्का-बक्का रह गया। पर सह न सका। स्टोव को लात मारकर उसने जलाती हुई नोटों की गड्डी को खाली हाथों से झपट लिया और पोचे से लपट खा गये नोटों को पोंछ जेब में डाल लिया।
वह अपने को रोक न सका। वहीं सब्ज़ी काटने का हँसिया रखा था, उसे उठाकर गीता का झोंटा पकड़कर उसकी गर्दन पर वार करने को बढ़ा। पता नहीं तब गीता में कहाँ से शक्ति आ गई। उसने भाई को लात मारी। हँसिया छीनकर उसे मारने उद्यत हुई। माँ ने 'अरे' कहकर उसके हाथ से हँसिया छीन लिया। और अपने सिर पर मारना शुरू कर दिया। वह झगड़ा पड़ोस के ब्राहृमण को सुनाई दिया। गीता इतने से ही चुप नहीं रही। झाडू लेकर उसे मारती हुई घर से बाहर ढकेल दिया।
शंकर बाबू को पता नहीं क्या सूझा कि उसने कुछ सोचते हुए झट से झुलसी नोटों की गड्डी जेब से बाहर निकालकर पूछा, "बैंकवाले इन्हें बदल देंगे न?" बाद में उसने अपनी कहानी आगे बढ़ाई।
शंकर बाबू अपनी पार्टी के दफ्तर में जाकर 'दी वीक' और 'संडे' के पुराने अंक पढ़ता रहा। सुबह तक सब शांत हो जाएगा, सोचकर घर पहुँचा।
दरवाज़ा खुला था। माँ मरी-सी मुँह ढाँपे पड़ी थी। "गीता कहाँ है?" इसने पूछा। माँ से कोई उत्तर न मिला। इसने माँ के मुँह का पल्ला हटाया। माँ को हिलाया। उसने आँखें खोली। इसने डाँटकर पूछा, "गीता कहाँ है?" उसने तब भी उत्तर न दिया। वह हिली-डुली भी नहीं। अपने आप आँखें खोल और बंद कर रही थी। "तुम्हें इस तरह मरने की हालत में छोड़कर वह लोफर, छिनालपना करने कहाँ गई है?" कहते हुए इसने दीवार से सिर दे मारा। तब भी माँ ने होठ न खोले। वह बाल बिखरे मुनि जैसे हो उठी थी।
शंकर बाबू को लगा कि उसका एक चैप्टर खतम हो गया। उसने निश्चय किया कि आगे से उस लोफर मंत्री से बात नहीं करेंगे और उस बास्टर्ड जीजा के पास भी नहीं जाएगा। अब उसके पास एक ही उपाय बचा था। "मंत्री का 'राइवल' एक और इनकी ही जाति का है। उसे पोटेंशियल राइवल कहना चाहिए। वह ग्रेनाइट मर्चेंट हैं। वह तेलुगु-देशम का सिंपेथाइजर भी है। बहुत पैसेवाला है। उसे मेरे जैसे युवकों की सहायता चाहिए थी। समझ में नहीं आ रहा था कि उसे कैसे इम्प्रैस किया जाय। इसीलिए आपसे ये फोटो खिंचवायी।"
शंकर बाबू के भविष्य की कहानी सुनाने का उत्साह मुझमें बचा नहीं था। उसकी बतायी हर बात एक से दूसरी गुथी हुई-सी लगी। मेरे एकमुखी होने पर भी, वह अनेक चेहरे लिए मेरे सामने आया।
आगे चलकर वह कुआँ खुदवा सकता है, साड़ियाँ बँटवा सकता है, मकान बँटवा सकता है, पेड़ लगवा सकता है, इतिहास में अपने नाम की एक छोटी-सी चेंपी लगवा सकता है।
अपने क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए स्लम के लोगों का जीना हराम कर सकता है। यही बाल - बच्चेदार किसी दूसरे की झोंपड़ी में आग लगा सकते हैं। उस घास की झोंपड़ी में सोया बच्चा आग में भुन भी सकता है।
कुछ दिन बाद एक ठंडी सुबह मफलर-सा लपेटे वाकिंग जानेवाला एक सद्गृहस्थ कह रहा था : "छि, बेचारे! पर इतना न होता तो इन कंबख्तों की अकल ठिकाने कैसे लगती! अब देखो कैसे ठंडे पड़ गए हैं।" इतिहास में यह सब अनिवार्य है।
स्मृति के सुखद झरोखों में झाँकें तो हिटलर अपनी माँ से बहुत प्यार करता था। पत्नी के मरते समय स्टालिन दुख में अकेला पड़ गया था। उसने उस मध्यरात्रि के बहुत बड़े भोज में पैपर के स्वादवाली वोदका को 'थम्सअप' कहकए गटागट पीने के बाद मूँछें पोंछ ली थीं। उसने ही अच्छी तरह खिला-पिलाकर अचार के मर्तबान से दीखनेवाले ख्रश्चेव को भालू की तरह नचाया था। वह कभी-कभी अपने लाल सैनिकों के साहस की बातें याद आने पर रो देता था। महान दुष्ट राजा चिक्कवीर राजेन्द्र ने भी बुढ़िया से पूछा था, "दादी, मैंने तुम्हारे किस कान में बचपन में मूता था?"
या फिर उत्कट प्रार्थना करके जो अपेक्षा होती है, उससे मिलनेवाला आश्चर्य भविष्य के चरित्र में जिसे हम घास समझते हैं, वह भी दूर्वा बन सकती है। शंकर बाबू भी एक साँझ अपनी ढलती आयु में अकेला बैठकर जब सोच में डूबेगा, तब उसे उसका उधम दिखाई दे पाएगा। तब गीता का नोटों की गड्डी को जलते स्टोव पर रखना, और माँ का चुपचाप उसे निहारना और स्वयं उसका हैरान होना, गुस्से की आग में ताज़े नोटों के झुलसते समय विकसित प्रेम का भी शुद्ध हो जाना, सरोज का मरकर इन सबको जागृत कर देना यह सब याद आ सकता है।
अब शंकर बाबू जागृत हो धारदार बर्छी की तरह दिखाई देता-सा लगा। मुझे देखकर वह आत्मीयता से हँस रहा था। शीशे के सामने खड़े हो उसने बाल सँवारे। उत्साह का उत्स बन वह आंध्र के पक्षों का बलाबल और अपने लोगों की मूर्खता का विश्लेषण करने लगा।
"मुझे एक विद्यारण्य मिल जाय तो मैं एक राज्य का निर्माण कर सकता हूँ सर। मैं इस तरह हारनेवाला आदमी नहीं हूँ।" कहकर वह ब्रीफकेस लेकर उठ खड़ा हुआ और मुझे 'गुडलक' कहकर चला गया।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1412,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,348,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,340,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,98,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,2,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,38,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: यू. आर अनंतमूर्ति की कहानी - कामरूपी
यू. आर अनंतमूर्ति की कहानी - कामरूपी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMVUJEkM0Ju4rUV1wbzZZuAxwN_gy6WFp8eT7qNv4zZAp2DRi_yYkHMJieMSpNWkhBAjoDYap7i22Gst8KQvB5LTcgJk6C2i1KSVo4UElvRs78FihQgMkYnSkox2_2MWiWlzSsDBDPewX6/s200/U-R-Anantmurti1.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMVUJEkM0Ju4rUV1wbzZZuAxwN_gy6WFp8eT7qNv4zZAp2DRi_yYkHMJieMSpNWkhBAjoDYap7i22Gst8KQvB5LTcgJk6C2i1KSVo4UElvRs78FihQgMkYnSkox2_2MWiWlzSsDBDPewX6/s72-c/U-R-Anantmurti1.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/04/u-r-ananthamurthy.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/04/u-r-ananthamurthy.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका